आरटीआई कार्यकर्ता बरी

सक्रिय समाजकर्मी निखिल डे, नौरती बाई,रामकरण और छोटूलाल हरमाड़ा आरटीआई केस में बरी

jaipur samacharफ़िरोज़ खान
जयपुर 3 अगस्त । 19 वर्ष पुराने हरमाड़ा के जबरन अनधिकृत प्रवेश व साधारण चोट पहुंचाने के मामले में दोषी पाए जाने और सजा मिलने के एक माह बाद ही अब एडीजे कोर्ट किशनगढ़ ने यह नया आदेश जारी किया है। इन चारों सक्रियकर्मियों को सीआरपीसी की धारा 320 के तहत हुए अदालती समझौते के तहत दोषमुक्त कर दिया गया है। इससे पूर्व इन्हें निचली अदालत द्वारा चार माह की जेल की सजा सुनाई गई थी।

इन चारों सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सजा के विरोध में किशनगढ़ एडीजे कोर्ट में अपील दायर की थी। इसके बाद शिकायतकर्ताओं ने इन सबसे संपर्क किया और कहा कि वे केस वापस लेना चाहते हैं। निरंतर चलने वाले इस अनावश्यक विवाद को खत्म करने के लिए समझौता करना चाहते हैं। अपनी शिकायत को वापस लेने के लिए एडीजे कोर्ट में केस वापस लेने और समझौते के लिए अपने हस्ताक्षर सहित एक अर्जी देना चाहते हैं। कानून में सीआरपीसी की धारा 320 के तहत इस तरह के समझौते का प्रावधान है। इस आवेदन में लिखा था कि क्योंकि अब विवाद का कोई मुद्दा है ही नहीं इसलिए दोनों प्रभावी व्यक्ति ओमप्रकाश और मनीषा (पूर्व सरपंच के भाई और भतीजी) लंबे समय से चल से इस विवाद और दुश्मनी को खत्म करके यह केस वापस लेना चाहते हैं।

एडीजे कोर्ट में औपचारिक रूप से दोनों पक्षों ने एडीजे के सामने अपने हस्ताक्षर की हुई संयुक्त अर्जी पेश की। इसी क्रम में सीआरपीसी की धारा 320 के तहत राजीनामे के आधार पर यह आदेश पारित किया गया। (कॉपी संलग्न) एडीजे कोर्ट के दो अलग- अलग आदेशों के द्वारा निखिल डे, नौरती बाई, रामकरण और छोटूलाल को निचली अदालत द्वारा मिली चार माह के कारावास की सजा को निरस्त किया गया व इन सब को आईपीसी की धारा 451 व 323 के तहत लगाए गए आरोपों से12 जुलाई को पारित आदेश द्वारा दोषमुक्त कर दिया गया। जुलाई के अंतिम सप्ताह में इस आदेश की प्रति चारों समाजकर्मियों को प्राप्त हुई।

मजदूर किसान शक्ति संगठन व सूचना के अधिकार समूह के लिए 19 सालों के लंबे संघर्ष व सजा के बाद यह आदेश एक बड़ी राहत बनकर आया। लंबी सुनवाई व सजा की यह प्रक्रिया बहुत दुर्भाग्यपूर्ण व न्याय की हत्या जैसी प्रतीत हो रही थी। (पिछले प्रेस नोट संलग्न) हम लोगों ने अपने उद्देश्य व कार्य की बेगुनाही साबित करने का पूरा प्रयास इस दौरान किया क्योंकि यह हमारे लिए न्याय और नैतिक मूल्यों का संघर्ष था। हमें पूरा भरोसा था कि इस केस के अंत में हम निर्दोष साबित होंगे और हमें इस मामले में दोषमुक्त किया जाएगा। इस पूरे घटनाक्रम में हमें यह बात बहुत अच्छी तरह से समझ में आई और पुनःस्थापित भी हुई है कि इस तरह के मामलों में सक्रियकर्मियों को परेशान करने और उन्हें हाशिये पर जी रहे लोगों के साथ हो रहे भ्रष्टाचार व न्याय प्राप्ति के मार्ग से भटकाने के लिए इस तरह के मामलों का इस्तेमाल हथियार के रूप में कैसे किया जाता है।

सजा के बाद अपने मित्रों, साथी, सक्रियकर्मियों के सतत व खुले दिल से दिए गए सहयोग के लिए हम उनके प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं। जन सरोकार के मामलों में प्रभावित व्यक्तियों के अतिरिक्त उस स्थान का समुदाय और लोग जानते हैं कि सत्य क्या है और कहां है। अतः इस आक्रामकता और विवाद को मिल कर सुलझाना यह भरोसा दिलाता है कि भ्रष्टाचार और सत्ता के निरकुंश दुरुपयोग के लंबे संघर्षों और विवाद का समाधान न्यायिक प्रक्रिया/तंत्र के बाहर भी हो सकता है।

इस लंबे संघर्ष ने हमारे इस संकल्प को और सुदृढ़ किया है कि हम मानव अधिकार, सूचना के अधिकार कार्यकर्ता तथा विसिल ब्लोअर कार्यकर्ताओं की एकजुटता व आपसी सहयोग से अपने इस संघर्ष को जारी रखेंगे। जरूरत इस बात की है कि इस संदर्भ में व्यवस्थागत ढांचा बनाने की दिशा में कार्य किया जाए। विभिन्न सामाजिक समूहों को सत्ता के दुरुपयोग व ढांचागत असफलताओं के मामलों में निगरानी रखनी होगी ताकि कानून का राज कायम रहे। यह हमारे कार्य का एक अतिमहत्वपूर्ण आयाम होगा।

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