तीसरा राष्ट्रीय युवा अधिवेशन सम्पन्न

उदयपुर – ‘‘हम जानेंगे और हम बदलेंगे’’ ये संकल्प लिया है देश भर से आए हजारों युवाओं ने। उल्लेखनीय है कि मजदूर किसान शक्ति संगठन, आस्था, जोश, एक्शनएड, डगर व सूचना एवं रोजगार अधिकार अभियान द्वारा उदयपुर के महाराणा भूपाल स्टेडियम में भण्डारी दर्शक मण्डप में युवा एवं लोकतंत्र विषय पर दो दिवसीय ‘‘तृतीय राष्ट्रीय युवा अधिवेशन’’ का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें देश के 15 राज्यों के लगभग 2 हजार युवा भाग ले रहे है। रविवार को सुबह सूचना केंद्र के रंगमंच पर आयोजित ‘‘समझ और अभिव्यक्ति’’ कार्यक्रम के दौरान युवाओं ने सूचना के अधिकार का उपयोग कर जानकारियां लेने और लोकतांत्रिक मूल्यों को अपने जीवन में उतार कर स्थितियों को बदलने का संकल्प लिया।

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए दिल्ली के उच्च न्यायालय के जस्टिस मुरलीधर ने कहा कि डॅा. भीमराम अम्बेडकर ने संविधान में समानता के अधिकार की व्यवस्था की। असमानताएं बड़ रही है। बदलाव के लिए जरूरी हो गया है कि लोकतांत्रिक मूल्यों को अपने जीवन में उतारा जाए। उन्होंने युवाओं से संविधान को जीवन में उतारने तथा असमानताओं व चुनौतियों का सामना कर बदलाव करने का आव्हान् किया। विदित रहे कि जस्टिस मुरलीधर ने सुप्रीम कोर्ट को सूचना के अधिकार के दायरे में लाने का फैसला दिया था।

उषा रामनाथन ने कहा कि बिना सोचे, बिना समझे किसी भी बात को ना माने। यूआईडी की घोर विरोधी रामानाथन ने कहा कि सरकार यूआईडी के माध्यम से गरीबी को मिटाने की बात कर रही है, जो सरकार गलत है। उन्होंने कहा कि यूआईडी से देश की गरीबी नहीं मिटने वाली है। लोग यूआईडी कार्ड बनवा रहे है, उन्हें यूआईडी कार्ड के बारे में जानकारी नहीं है। उन्होंने युवाओं से कहा कि वे पहले सोचे, समझे और फिर निर्णय ले। सरकार की कई नीतियों का सोचा समझा नहीं जा रहा है। उन्होंने युवाओं के सामने एक सवाल छोड़ा कि – ‘‘अंगूठे के निशान से गरीबी कैसे मिटेगी ?’’

नाटक, गीत व नारे बदलाव के औजार

दिल्ली के नेशनल स्कूल फॅार ड्रामा की डायरेक्टर त्रिपुरारी शर्मा ने कहा कि असहमति की आवाज आज की नहीं बहुत पुरानी है। मेवाड़ की धरती पर मीरां ने कई बरसों पहले सड़क पर उतर कर असहमति की आवाज को अभिव्यक्त किया। उन्होंने कहा कि असहमति को व्यक्त करना आसान नहीं है, असहमति को व्यक्त करने के लिए साहस व जानकारियां चाहिए।

शर्मा ने कहा कि हर क्षेत्र में युवाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है, अगर सभी युवा एक साथ अभिव्यक्ति करने लगे तो असहमति को बल मिलेगा। उन्होंने कहा कि नाटक, नुक्कड़, कटपुतली, नारे और गीत भी अभिव्यक्ति के तरीके हैं। इनका उपयोग जन आंदोलनों में होता आया हैं। उन्होंने कहा कि युवा देश के भविष्य के बारे में सोचे, समझे और अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का उपयोग कर बदलाव में योगदान करे।

पीरों का यह कहना है

अहमदाबाद से आए लोकनाद समूह के विनय महाजन ने अभिव्यक्ति की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि मन से डर को निकालकर असहमति को भी अभिव्यक्त करना चाहिए। इस मौके पर उन्होंने एक गीत भी सुनाया जिसके बोल थे – पीरों का यह कहना है, फकीरों का यह कहना है, बुल्ले का यह कहना है, कबीरों का यह कहना है। रांझे का यह कहना है, हीरों का यह कहना है, बिरसा, मुण्डा, तिलकों के, तीरों का यह कहना है . .साथी डर मत जाना।

पहले स्वयं को बदलें फिर समाज को बदलें

मैं घर की चारदिवारी से बाहर निकली और समाज में गई, लोगों से सीखा अपने अधिकारों के बारे में जाना। घर का कामकाज करते हुए पढ़ना लिखना सीखी, गुनगुनाते हुए एबीसीडी सीखी और कम्प्यूटर सीख कर माइक्रोसॅाफ्ट वर्ड में डाटा एन्ट्री का काम करती हूं, व्यक्ति दृढ़ निश्चय कर लक्ष्य के लिए कार्य करे तो वह लक्ष्य को प्राप्त कर ही लेता है – ये कहना था अजमेर जिले की हरमाड़ा ग्राम पंचायत की सरपंच नौरती देवी का।

उल्लेखनीय है कि नौरती देवी समाज कार्य एवं अनुसंधान केंद्र के साथ जुड़ी रही। नौरती देवी ने न केवल न्यूनतम मजदूरी के लिए लड़ाई लड़ी बल्कि न्यूनतम मजदूरी की लड़ाई जीती थी। उन्होंने युवाओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि पहले वे स्वयं को बदले फिर समाज को बदले।

युवा अधिवेशन में युवाओं को सम्बोधित करते हुए महिलावादी लेखिका कमला भसीन ने कहा कि देश में औरत बेआबरू है और उनकी जिन्दगी नाशाद है। इन स्थितियों को बदलने के लिए युवाओं को आगे आना होगा और अपने घर से समानता का व्यवहार लागू करना पड़ेगा। उन्होंने युवाओं से आव्हान् किया कि आगामी 14 फरवरी को विश्व के 100 करोड़ लोग महिलाओं पर हो रही हिंसा के खिलाफ सड़कों पर उतरेंगे, इस ऐतिहासिक मौके पर उन्हें भी घरों से निकलकर अपनी आवाज उठानी चाहिए।

अर्थशास्त्री रितीका खैरा ने कहा कि गांवों गांवों में जाकर सामाजिक अंकेक्षण करने, जनसुनवाई करने और युवाओं को जागृत करने से देश भर में बड़े बदलाव हुए है। उन्होंने बताया कि देश भर में युवा बदलाव की दिशा में कार्य कर रहे है। मीडिया भी युवाओं के इन नए प्रयासों को स्थान दे रहा है।

ग्रामीण भारत से सिर्फ 3 प्रतिशत खबरें !

एनडीटीवी के सम्पादक रहे वरिष्ठ पत्रकार सत्येन्द्र रंजन ने बताया कि आम आदमी के संघर्ष हांसिए पर चले गए है। उन्होंने बताया कि ग्रामीण भारत में 3 प्रतिशत खबरें प्रकाशित हो पाती है। मीडिया का सुनियोजित तरीके से सकारात्मक उपयोग किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि हमारे सामने कई माध्यम है जिसका उपयोग कर जनसंघर्षों और ग्रामीण भारत की खबरों को फैला सकते है। उन्होंने मोबाइल न्यूज, न्यूज वेबसाइट व कम्यूनिटी रेडियों जैसे माध्यमों से खबरों को फैलाने की बात कही। कार्यक्रम में मारवाड़ के लंगा और मांगणियार कलाकारों ने राजस्थानी व कबीर के गीत गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

वहीं जनता को जागरूक करने, उनके हकों के लिए लड़ने और उनके पक्ष में लिखने वालों के खिलाफ सरकार द्वारा राजद्रोह के मामले दर्ज कर उनकी आवाज को दबाने वाले कृत्य को दर्शाने वाला ‘‘क्या यहीं राजद्रोह’’ नामक नाटक का मंचन दिल्ली के आतिश  ग्रुप ने प्रस्तुत किया।

सूचना के अधिकार कानून की ताकत से रूबरू कराने वाले ‘‘दस्तक’’ नाटक का मंचन किया गया। जिसका निर्देशन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की प्रोफेसर प्रसिद्ध रंगकर्मी त्रिपुरारी शर्मा ने किया।

समापन सत्र में आगामी एक वर्ष की कार्य योजना तैयार की गई तथा युवाओं ने संकल्प लिया कि इन दो दिनों में जो कुछ कहा और सुना गया उसे हम करके दिखायेंगे। समापन सत्र को ओजस, नवीन नारायण, कमल टांक, अहेली चौधरी, परशराम बंजारा, अंकिता आनन्द, इनायत साबिकी, चैतन्य पटेल, दिग्विजय, हरिओम सोनी, अमृता इत्यादि ने विचार व्यक्त किए। समापन सत्र का संचालन सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी ने किया।

लखन सालवी

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