पति-पत्नी पुनीत कार्यों में एक-दूजे की हां में हां मिलाए – नागर

श्रीबड़ां के बालाजीधाम पर श्रीमद भागवत कथा में
ठिठुरती सर्दी व बरसात के बावजूद दोगुना हुआ श्रद्धालुओं का सैलाब

Untitledबारां 05 दिसंबर। श्रीबड़ां बालाजीधाम पर आयोजित श्रीमद् भागवत कथा एवं गौरक्षा सम्मेलन के दूसरे दिन मंगलवार को ठिठुरती सर्दी एवं बरसात होने पर भी भक्तों एवं श्रद्वालुओं का जनसैलाब उमड पडा। कार्यक्रम आयोजन के प्रेरणास्त्रोत पूर्व मंत्री श्री प्रमोद जैन भाया, धर्मपत्नी समाज सेविका उर्मिला भाया ने व्यासपीठ की पूजा अर्चना के बाद कथा पाण्डाल में बैठकर कथा का अमृतपान किया।
दिव्य गौसेवक संत पूज्य पं.कमल किषोर नागरजी ने कहा कि हम विवाह में पति-पत्नी के रूप में सुंदर जोड़ी बनाते हैं। लेकिन आज दिषा उलटी हो जाने से कई घरों मंे अषांति, दुख और क्लेष बना रहता है। यदि जोड़ी एकमत रहे, पति-पत्नी अच्छे कार्यों में एक दूसरे की हां में हां मिला दे तो ऐसी जोड़ी अखंड रहती है। कथा के
मंगलवार को बारां के पास बड़ां बालाजी धाम में चल रहे श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ महोत्सव में पूज्य नागरजी ने कहा कि जूते दोनो पैरांे मंे एक ही नंबर के हों तो सही चलते हैं। घर में कोई भी काम हो तो एक 8 नंबर और दूसरा 9 नंबर की तरह मत बनो। नंबर-1 जोडी बने रहो। घरों में एकमत होने की हवा चले। कहीं मंदिर बनाना हो या गौषाला, दोनों की हां होने से ईष्वर भी प्रकट होते हैं। घर में पिस्तौल या लकड़ी रखना केवल सुरक्षा के साधन हैं लेकिन काल यातना से बचना है तो हर घर में माला हो, उससे यमदूत भी डरेंगे। ‘मुझे ला दो भजन की वही माला, जिसने विश पीकर अमृत कर डाला..’ भजन से खचाचाच भरे में विराट पांडाल मंे भक्ति की हिलौरें उठने लगी।
उन्होंनंे कहा कि परिवार में खुषहाली के लिए पति-पत्नी एक दूसरे का साथ निभाओ, धोखा मत देना। अपनी पत्नी को लक्ष्मी समझकर स्वीकार करो। अज्ञानी पत्नी को सहना भी पति की तपस्या है। इसी तरह, पति षराबी हो और पत्नी ने मजदूरी करके घर चलाया, जिसने छल या धोखा नहीं दिया, वह अनुसूईया है। मंगलवार को बरसात एवं सर्दी के बावजूद गांव-गांव से हजारों श्रद्धालु प्रवचन सुनने पहुंचे। भक्तों की संख्या दोगुना हो जाने से आयोजकांे ने दूसरे दिन कथा के पांडाल का विस्तार किया।
सतीत्व से गृहस्थ जीवन स्वर्ग है-उन्होंने कहा कि आजकल महिलाओं के साथ जो घटनाएं हो रही है, उसे केवल सतीत्व रोक सकता है। लेकिन आधुनिक दौर में मोबाइल के गलत प्रयोग से सतीत्व कम हो रहा है। हम वही देखें और सुने, जिससे सतीत्व का स्तर न गिरे। यदि घर में सतीत्व है तो गृहस्थ जीवन धरती पर स्वर्ग के समान है।
षब्द को गुरू मानो, उसे जपते रहो-पूज्य नागरजी ने कहा कि आज धर्म मंे आडम्बर व तनाव भी बढ़े हैं। हम बीच के रास्ते से निकलने वाले जीव हैं। षरीर मंे दोश आ सकता है लेकिन षब्द को गुरू मानोगे तो कभी दोश नहीं आएंगे। षब्द ब्रह्यांड में छाई आभा है, वायु है। यही हवा हमंे तैराने का काम करेगी। जिस तरह वाहनों मंे पौंड देख जरूरी हवा भरते हो, उसी तरह हमें साढे़ तीन करोड़ जप करना भी जरूरी है। इसलिए भक्ति से निरंतर जुडे़ रहो। जब मन मंे मंदिर बनाओगे तो वह आएगा जरूर।
‘जब महावीर स्वामी इत्र बन गए-उन्हांेने कहा कि महावीर स्वामी एक पर्वत किनारे तप कर रहे थे। मंत्र जाप के समय उनके अंदर मनोमय कोश उद्र्धाधर हुआ तो कुछ लोगों ने उनके उपर षिला गिरा दी। वहां सत्य में निश्ठा नहीं थी, फिर भी वे ध्यान मग्न रहे। उन्होंने कहा, मेरे अंदर का मनोमय कोश खुल चुका है। मैं षत्रु को मित्र मानता हूं। अभी वर्धमान हूं। गिराने वाले ने पूछा- आप महान कैसे बनोगे? वे बोले- जो पुश्प मेरे अंदर खिला है, वो भजन से खिला है। जब चट्टान गिरेगी तो ये इत्र बन जाएगा। इसी मनोमय कोश के खुलने से वे वर्धमान से महावीर कहलाए। महावीर नाम उपाधि नहीं, तपस्या की एक उपलब्धि थी। उसी इत्र को हम चांदी के श्रंगार से कान में लगाते हैं। चंादी प्रतीक रूप में वास्तवित इत्र है।
द्वितीय सोपान सूत्र-
– कान से कथा सुनना हो इत्र लगाना है।
– षब्द ब्रह्यांड में छाई हुई आभा है, हवा है, जो हमें तैराएगी।
– आप भक्ति में कहीं भी रहें, ईष्वर का आषीर्वाद, दया आप तक पहुंच जाएगी।़
– आज हर मन काम, क्रोध, लोभ से हाउसफुल हो रहा है, भक्ति इससे बचाएगी।
– गृहस्थी गलती करेगा तो चलेगा लेकिन साधू गलती न करे।

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