जिंदादिलों के जीवन की गाथा ‘सिंध दरिया से रेत के समंदर तक’

( डॉ. मदन केवलिया की आत्मकथा एवं व्यंग्य संग्रह का हुआ विमोचन )

_MG_3434_1200x800बीकानेर, 25 दिसम्बर। ‘आत्मकथा ईमानदार लेखन है। इसमें झूठ नहीं चलता। आत्मकथा में लेखक को खुद को खंगालना पड़ता है और डॉ. केवलिया ने अपनी आत्मकथा में इस पक्ष का निवर्हन पूरी जिम्मेदारी के साथ किया है।’ यह कहा वरिष्ठ साहित्यकार भवानी शंकर व्यास ‘विनोद’ ने और नरेन्द्र सिंह ऑडिटोरियम तालियों से गूंज उठा। इस अवसर को उपलब्ध करवाया प्रतिमान संस्थान ने वरिष्ठ लेखक, कवि एवं चिंतक डॉ. मदन केवलिया के व्यंग्य संग्रह ‘संन्यासः फर्स्ट क्लास लेखन से’ तथा आत्मकथा ‘सिंध दरिया से रेत के समंदर तक’ के विमोचन का समारोह के रूप में। विमोचन अतिथियों ने किया। व्यास विनोद ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि आत्मकथा में डॉ. केवलिया की बचपन की मस्ती है। विभाजन का दर्द है। बीकानेर और डेरा इस्माइल खां का इतिहास इस पुस्तक में देखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि डॉ. केवलिया की व्यंग्य यात्रा 60 वर्ष पूर्ण करने की ओर अग्रसर है। इस दौरान उन्होंने आलोचना के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किया है।

इतिहासकार डॉ. गिरिजाशंकर शर्मा ने डॉ. केवलिया की आत्मकथा को इतिहास के शोधार्थियों के लिए महत्त्वपूर्ण दस्तावेज बताया। उन्होंने कहा कि डॉ. केवलिया की आत्मकथा दो निष्क्रमण के मध्य लिखी आत्मकथा है। इसे लम्बे समय तक याद रखा जाएगा।

व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा ने कहा कि डॉ. केवलिया की कलम में ऎसी ताकत है कि उनका व्यंग्य हंसाता है तो उनकी आत्मकथा के अंश करूणा से ओतप्रोत कर देते हैं ।

कथाकार प्रमोद चमोली ने डॉ. केवलिया के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि डॉ. केवलिया का समूचा जीवन साहित्य एवं लेखन को समर्पित रहा। उन्होंने हिंदी के अलावा उर्दू, राजस्थानी, सिंधी व पंजाबी में भी लेखन को नए आयाम स्थापित किए। उन्होंने डॉ. केवलिया को अपने शोध पत्र की प्रथम प्रति भेंट की। कवि-कथाकार संजय पुरोहित ने डॉ. केवलिया के व्यंग्य संग्रह ‘संन्यासः फस्र्ट क्लास लेखन से’ तथा हरीश बी. शर्मा ने आत्मकथा ‘सिंध दरिया से रेत के समंदर तक’ के अंशों का वाचन किया।

अपने उद्बोधन में डॉ. मदन केवलिया ने कहा कि हास्य एवं व्यंग्य की जुगलबंदी होती है। व्यंग्य हमारी जिंदगी से ही सहज रूप से निकलकर आता है। उन्होंने कहा कि घनीभूत पीड़ा को वही जानता है, जिसने दर्द झेला है, इसलिए यह दर्द उनके साहित्य में मिलता है।आरंभ में कथाकार शरद केवलिया ने स्वागत उद्बोधन दिया। समारोह के अंतिम चरण में डॉ. केवलिया का अनेक साहित्यकारों, शिक्षाविदों ने सम्मान किया। जाह्नवी केवलिया ने आभार जताया। कार्यक्रम का संचालन राजेन्द्र जोशी ने किया। समारोह में बडी़ संख्या में साहित्यकार, शिक्षाविद, पत्रकार मौजूद थे।

– मोहन थानवी

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