श्रीडूंगरगढ़. राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर एवं स्थानीय राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को मध्यकालीन साहित्य और सामाजिक समरसता विषय पर दो दिवसीय राज्य स्तरीय संगोष्ठी का आयोजन शुरू हुआ। इसका शुभारम्भ अकादमी के अध्यक्ष डॉ. इन्दु शेखर तत्पुरूष की अध्यक्षता में किया गया।
संस्कृति भवन में आयोजित संगोष्ठी के प्रथम दिन सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि डॉ. नन्दकिशोर आचार्य ने कहा कि मध्यकाल हो या कोई अन्य समय समाज कभी द्वंद्व विहीन नहीं रहा है। प्रमुख कवि कबीर व तुलसी के कई उदाहरणों से अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा कि जहां तुलसी जाति धर्म को परस्पर समानता का दर्जा देते हुए अपनी बात कहते हैं, तो कबीर किसी भी पंत, समाज, जाति व धर्म की रूढियों का पूरजोर कड़े शब्दों में विरोध करते है। डॉ. आचार्य ने कहा कि समाज में द्वंद की स्थिति सदैव रहती है और इसी द्वंद से उभरने के लिए समाज के नायकों और साहित्य लेखन में रत विद्वजनों को अपने अनुभव से किए गए समरता के रूप में परिणाम मिलते रहे हैं। जोधपुर के डॉ. क्षीरसागर ने मध्यकालीन सामाजिक परिवेश का बारीकी से विवेचन करते हुए भक्ति साहित्य को रेखांकित किया और संगीत की महत्ता बताई। अध्यक्षता करते हुए डॉ. तत्पुरूष ने संत वाणियों को रेखांकित करते हुए रविदास को उद्धत किया। उन्होंने कहा कि रविदास ने कर्म को प्रधान देते हुए समाज में समरसता संदेश दिया। विषय प्रवर्तन राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के पूर्व अध्यक्ष श्याम महर्षि ने किया।
इसी तरह द्वितीय सत्र में अध्यक्षता करते हुए डॉ. गिरिजा शंकर शर्मा ने कहा कि मध्यकालीन युग में साहित्य और समाज में जो प्रेरक कार्य किए है उनमें एक धर्म ग्रंथ है। इसमें दोनों प्रमुख जाति समुदाय के साहित्यकारों ने अध्ययन कर उन्हें आत्मसात किया है। संगोष्ठी का तीसरा सत्र डॉ. कृष्णलाल विश्नोई की अध्यक्षता में हुआ। इस दौरान डॉ. मदन सैनी, डॉ. गजादान चारण ने अपने पत्र वाचन किए। इसके अलावा मालचन्द तिवाड़ी, मोहन थानवी, मुइनूदीन कोहरी, कुन्दन माली, संयुक्त मंत्री रवि पुरोहित, डॉ. महावीर पंवार, सत्यदीप ने भी सम्बोधित किया। संगोष्ठी में मंत्री बजरंग शर्मा, कोषाध्यक्ष रामचन्द्र राठी, श्रीभगवान सैनी, महावीर माली, एडवोकेट रेवन्तमल नैण, भीकमचन्द पुगलिया, विजयराज सेठिया, करणीसिंह बाना, तुलसीराम चौरडिय़ा, भरतसिंह राठौड़ आदि उपस्थित थे।