मध्यकालीन समाज में समाहित समरसता का आज अभाव सालता है

श्रीडूंगरगढ़./बीकानेर 8/7/18। राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर एवं स्थानीय राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित मध्यकालीन साहित्य और सामाजिक समरसता विषय पर दो दिवसीय राज्य स्तरीय संगोष्ठी का समापन रविवार को हुआ। संस्कृति भवन में दूसरे दिन की संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रो. ांवर भादानी ने की और मुय अतिथि डॉ. भंवरसिंह सामौर एवं पत्र वाचक बृजरतन जोशी थे। संगोष्ठी को सबोधित करते हुए प्रो. भंवर भादानी ने कहा कि अगर द्वंद्व नहीं है तो कोई व्यक्ति कैसे आगे बढ़ सकता है। द्वंद्व के साथ भी समरसता हो सकती है। डॉ. सामौर ने कहा कि बिश्नोई व जसनाथी सप्रदाय राजस्थान के प्रारभिक सप्रदायों में से है। मध्यकालीन युग के संकटकाल में संतों ने समाज का नेतृत्व किया था। मुय अतिथि डॉ. जोशी ने बताया कि मध्यकालीन का काल पाश्चात्य के प्राच्यविदों का गढ़ा हुआ पद है। उन्होंने कहा कि सहजोबाई अपने समय, समाज एवं संस्कृति में रूढ़ धार्मिक ढ़ांचे व पितृसत्ता को चुनौती देती है। वह गुरु को परमात्मा से ऊपर स्थान देती है और गुरु की गद्दी के लिए संघर्ष कर वैध तरीके से गद्दी हासिल करती है। लेकिन अक्सर वह उपेक्षित, अलक्षित व अस्पर्शी रह जाती है।
समापन सत्र में बोलते हुए साहित्यकार मालचन्द तिवाड़ी ने कहा कि मध्यकालीन समाज में समाहित समरसता का आज अभाव सालता है। कुन्दन माली ने कहा कि मध्यकालीन साहित्य में महिला रचनाकार सामूहिक चेतना की प्रवाहित धारा में निर्भीक और मुखर थी और किसी विमर्श विशेष की कल्पना तक नहीं थी। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति के पूर्व अध्यक्ष श्याम महर्षि ने कहा कि भारतीय संस्कृति में समाज की वर्गीकृत प्रणाली में कर्म आधारित निम्रतम श्रेणी के व्यक्ति को समान देना परपरा रही है। यह सामाजिक समरसता का अनुपम उदाहरण है। इस दौरान सादुलपुर के डॉॅ. रामकुमार घोटड़ की पुस्तक सामाजिक सरोकार का अतिथितियों ने लोकार्पण किया। इसमें गजादान चारण, मोनिका गौड़, रवि पुरोहित, सत्यदीप, कुन्दन माली, श्रीभगवान सैनी, महेश जोशी, श्याम सुन्दर शर्मा आदि ने सबोधित किया। इस दौरान डॉ. चेतन स्वामी, रामचन्द्र राठी, दयाशंकर शर्मा, महेन्द्र सिंह मान, सागर मल भाटी, मगनसिंह शेखावत, सोहनपुरी ठेकेदार आदि मौजूद थे।

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