दलित अत्याचार में राजस्थान दूसरे स्थान पर

इसलिए संविधान की 9वीं सूची में डाला जाए SC, ST अत्याचार निवारण क़ानून
बंद हो दलितों के साथ भेदभाव, 2 अप्रैल को दलितों पर दर्ज़ किए मामले वापस लिए जाएँ

फ़िरोज़ खान
जयपुर 18 अक्टूबर । डाँगावास में मारे गए और घायल हुए लोगों के परिजन आज भी न्याय के लिए भटक रहे हैं। साथिन भँवरी भटेरी 26 साल बाद भी न्याय के इंतज़ार में है। वहीं, रामदेवरा मंदिर परिसर में डाली बाई की समाधि के (जिसकी पूजा मेघवाल समाज करता है) निकासी द्वार के रास्ते में बने निर्माण को कथित उच्च जाति के लोगों ने तोड़दिया और पुलिस प्रशासन ने दवाब में मामले में FR लगा दी। 1 साल बाद भी हेमंत मोहनपुरिया की दोस्त सरोज जो पुलिस सेवा में थी की ऑनर किलिंग कर दी गयी और मामले में कथित तौर पर दोषी उसके परिजनों पर कोई कार्रवाई नहीं हुयी है।
राजस्थान में दलित आज भी घोड़ी पर नहीं बैठ पाते। आज भी मैला सिर पर ढोने की प्रथा चालू है। दलितों का सामाजिक बहिष्कार 21वीं सदी में भी हो रहा है। दलितों को कहीं भी पीट-पीट कर मारा जा रहा है। गाँवों में आज भी दलितों के बाल नहीं काटे जा रहे। डेल्टा मेघवाल की हत्या होती है। राजस्थान आज भी दलितअत्याचार में देश में दूसरे नम्बर पर है। जन निगरानी अभियान के चौथे दिन दलित मुद्दों पर कुछ इस तरह की बातें प्रदेश भर से आए लोगों ने साझा की। गुरुवार को शहीद स्मारक पर चल रहे धरने में कई सामाजिक संगठनों और दलित संगठनों के प्रतिनिधियों ने दलित मुद्दों को सामने रखा और प्रदेश भर में दलितों पर हो रहेअत्याचारों की एक तस्वीर पेश की। गुरुवार को धरने में कविता श्रीवास्तव, गोपाल वर्मा, राम तरुण, नवीन नारायण, नौरती बाई, एडवोकेट सतीश, भँवरी देवी, परशराम, हेमाराम और तेलाराम ने दलितों की माँगों को लोगों के सामने रखा। सामाजिक कार्यकर्ता तोलाराम ने कहा कि, हमें हर रोज़ भेदभाव और छुआछूत का सामनाकरना पड़ रहा है। समाज में बराबरी का माहौल लाने की हम सबको कोशिश करनी चाहिए,लेकिन जो क़ानून भेदभाव और छुआछूत को मिटाने के लिए बने हैं उन क़ानूनों को सरकार ने मूल भावना का अनुरूप लागू नहीं किया है, थाने में मामले दर्ज़ नहीं किए जाते।

धरने में आज ये प्रस्ताव पारित हुए :
2 अप्रैल को हुए दलित आंदोलन में दलितों पर दर्ज़ किए सभी मामलों को वापस लिया जाए। बाबा साहब अम्बेडकर की मूर्ति तोड़ने, हॉस्टल और अन्य सम्पत्ति को नुक़सान पहुँचाने वालों को गिरफ़्तार किया जाए। SC, ST अत्याचार संरक्षण क़ानून को संविधान की 9वीं सूची में डाला जाए, जिससे कोई भी सरकार इस क़ानून से छेड़छाड़ नहीं कर सके। मुफ़्त स्कूटी योजना, प्रोत्साहन योजना में SC की बच्चियों को भी शामिल किया जाए। घूमंतु जाति के लोगों को स्कूल, घर दिया जाए। तेलंगाना की तर्ज़ पर SC -ST सब प्लान का क़ानून बने। सभी प्राकृतिक व अन्य उत्पादन संसाधनों एवं आय के स्रोतों पर दलितों की उपयुक्त भागीदारी सुनिश्चित की जाए। सरकार द्वारा समय -समय पर संविदा पर नियुक्त किये जाने वाले कर्मचारियों की भर्ती में भी आरक्षण व्यवस्था की जावे। अनुसूचित जाति उपयोजना तथा अनुसूचित जनजाति उपयोजना का बजट इन वर्गों की जनसंख्या के अनुपात मे सभी विभागों द्वारा आंवटित किया जाएं तथा इनके हितार्थ खर्च किया जाए। दलित भूमि सम्बन्धित प्रकरणों के निपटारे हेतु फास्ट ट्रेक कोर्ट स्थापित किये जावे। जिन दलितों और आदिवासियों की जमीन पर गैर दलित व गैर आदिवासियों का नाजायज कब्जा है उसे मुक्त करवाया जाए। तथा डमी दलितों के नाम से होने वाली खरीद फरोख्त को रोका जाए। राजस्थान काश्तकारी अधिनियम की धारा 42 बी. के प्रावधान के अनुसार दलितों की जमीन को गैर दलितों द्वारा खरीदे जाने पर पाबंदी हर हाल में बरकरार रखी जाए।जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 एवं नियम 1995 की सख्ती से अनुपालना निश्चित की जाए।बैकलॉग के चलते सरकार के विभिन्न विभागों में खाली पड़े आरक्षित पदों पर नियुक्ति के लिए एक विशेष अभियान चलाया जाए।अजा जजा के भूमिहीनों को खेती की जमीन और बेघरों को रिहायशी पट्टा निशुल्क दिया जाए।विभिन्न बोर्डों, न्यासों, निगमों और अकादमियों में दलित और आदिवासियों का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए।रोजगार गारंटी कार्यक्रम में पानी पिलाने, सरकारी स्कूलों में मध्यान्ह भोजन (मिड डे मील) बनाने और आंगनवाड़ियों में पोषाहार तैयार करने के काम में अजा जजा की भागीदारी उनकी संख्या के अनुपात में सुनिश्चित की जाए।दलित कर्मचारियों और अधिकारियों की नियुक्ति उनकी वरिष्ठता और योग्यता के अनुसार हो।अनुसूचित जनजाति एवं परंपरागत वन अधिकार कानून का क्रियान्वयन प्रभावी तरीके से किया जाए।बढ़ती हुई महंगाई को देखते हुए दलित विद्यार्थियों की छात्रवृति में बढ़ोतरी की जाए। दलित अत्याचार के प्रकरणों में सभी पीड़ितों को नियमानुसार समय पर आर्थिक सहायता राशि, दैनिक भत्ता व यात्रा भत्ता दिया जाना सुनिश्चित हो। दलित बालिकाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने हेतु आवासीय विद्यालयों की संख्या में बढ़ोतरी की जाए।

इसलिए जायज़ हैं दलितों की माँगे :
क्योंकि राजस्थान दलित अत्याचार में देश में दूसरे नम्बर पर है। क्योंकि आज भी राजस्थान में हज़ारों दलित सिर पर मैला ढोने की प्रथा की जकड़न में हैं। क्योंकि आज भी दलितों को मंदिरों में नहीं घुसने दिया जाता, बिंदोरी नहीं निकालने दी जाती, बंधुआ मज़दूरी कराई जाती है। जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी और टेक्सस यूनिवर्सिटी के एक सर्वे के अनुसार राजस्थान में 66% जनसंख्या छुआछूत करती है।
शुक्रवार को धरने में जवाबदेही, पारदर्शिता, सामाजिक अंकेक्षण को लेकर जन सुनवाई की जाएगी। समाज में व्याप्त बुराइयों के ख़िलाफ़ अच्छाइयों को लेकर कठपुतलीयों के माध्यम से नाटक का मंचन भी किया जाएगा।

error: Content is protected !!