भक्ति भगवान को पाने का सर्वोत्तम मार्ग:किशोरीलाल महाराज

बीकानेर। भक्ति के लिए कोई उम्र बाधा नहीं है। भक्ति को बचपन में ही करने की प्रेरणा देनी चाहिए क्योंकि बचपन कच्चे मिट्टी की तरह होता है उसे जैसा चाहे वैसा पात्र बनाया जा सकता है। पाप के बाद कोई व्यक्ति नरकगामी हो, इसके लिए श्रीमद् भागवत में श्रेष्ठ उपाय प्रायश्चित बताया है। ये प्रवचन श्रीमद्भागवत कथा आयोजन समिति के तत्वाधान में अग्रसेन भवन में चल रही श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन किशोरीलाल जी महाराज ने किये। उन्होनें
अजामिल उपाख्यान के माध्यम से इस बात को विस्तार से समझाया गया साथ ही प्रह्लाद चरित्र के बारे में विस्तार से सुनाते हुए कहा कि भगवान नृसिंह रुप में लोहे के खंभे को फाड़कर प्रगट होना बताता है कि प्रह्लाद को विश्वास था कि मेरे भगवान इस लोहे के खंभे में भी है और उस विश्वास को पूर्ण करने के लिए भगवान उसी में से प्रकट हुए एवं हिरण्यकश्यप का वध कर प्रह्लाद के प्राणों की रक्षा की। महाराजश्री ने कहा कि सांसारिक जीवों को भगवान के चरित्र का श्रवण, कीर्तन के माध्यम से उनकी भक्ति करनी चाहिए।
महाराज ने बताया कि जब भक्त प्रहलाद से नृसिंह भगवान ने वरदान मांगने को कहा तो प्रहलाद ने कहा कि मैं व्यापारी नहीं अपितु आपका प्रेमी भक्त हूं, आप मेरी मांगने की कामना को ही समाप्त कर दे। भक्ति भगवान को पाने का सर्वोत्तम मार्ग है। उन्होंने कहा कि भगवान के नाम, रूप, लीला आदि गुणों का बखान करने से मन का भटकना बंद होता है। मनुष्य में भक्ति का भाव पैदा होता है। मन भगवान में केंद्रित होता है। इससे भक्ति भाव और प्रगाढ़ होता है। उन्होंने कहा कि भगवान में मन लगाने का सबसे सरल उपाय है रूप ध्यान साधना। एकांत में बैठकर अपने नेत्रों को बंद करें और भगवान की छवि बनाएं। उनके रूप, वस्त्र की परिकल्पना करें। मन में उनका भजन कीर्तन करें। महाराज ने कहा कि भगवान श्यामसुंदर को सदैव अपने साथ महसूस करें। इससे मन की सरलता व शुद्धता बनी रहेगी। भक्ति का दूसरा नाम ही शरणागति है। गृहस्थ रहकर भी भक्ति को पाया जा सकता है। कथा के दौरान हुलाशचंद अग्रवाल, राजेन्द,नरेन्द्र व अरूण अग्रवाल ने पूजा अर्चना करवाई। आयोजन से जुड़े ताराचंद अग्रवाल ने बताया कि कल नंदोत्सव मनाया जायेगा।

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