शाहपुरा में भागवतकथा की पूर्णाहुति, भक्तो की उमड़ी भीड़

भागवत कथा के समापन पर बृज की होली में जमकर नाचे श्रद्धालु
गुरु का पदार्पण नहीं होने पर भक्ति के स्वरूप को नहीं जाना जा सकताः पं. शास्त्री

शाहपुरा (भीलवाड़ा)- मूलचन्द पेसवानी
शाहपुरा में खान्या का बाालाजी मंदिर के पास आयोजित भागवत कथा की पूर्णाहुति के दौरान भारी तादाद में भक्तों की भीड़ उमड़ी। श्रीमद भागवत सप्ताह ज्ञान महायज्ञ का समापन हुआ। भागवत कथा के अंतिम दिन नित्यावर्चन हवन के बाद कथा वाचक पं. कमलेश शास्त्री द्वारा सुदामा चरित्र, अवधूत उपाख्यान की कथा को विस्तार से सुनाई। इस दौरान कृष्ण- सुदामा चरित्र की आकर्षक झांकियां प्रस्तुत की गई। तथा पूर्णाहुति के बाद बृज की होली में श्रद्धालुओं ने जमकर नाच गाकर कथा का समापन किया।
शाहपुरा के यजमान लीलादेवी बालकृष्ण तिवाड़ी की ओर से आयोजित श्रीमद भागवत कथा की समारोह पूर्ण पूर्णाहुति की गई। कथा वाचक पं. कमलेश शास्त्री ने कहा कि मनुष्य को सात्विक प्रेम की जगह परमात्मा से प्रेम करना चाहिए, मीराबाई की तरह अटल भक्ति और प्रेम करना चाहिए। ताकि परमात्मा की प्राप्ति हो सके तथा मोक्ष प्राप्त हो सके।
श्रीमद भागवत कथा के अंतिम दिन कथावाचक पंडित कमलेश शास्त्री ने कई प्रसंगो पर विस्तार से कथा कही। श्री कृष्ण सुदामा की मित्रता सहित परिक्षित मोक्ष, भगवान की रानियां व कथा का जीवन पर महत्व पर विस्तार से उदाहरण सहित प्रकाश डाला। कथावाचक शास्त्री ने कहा कि जब परिवार में प्रेम का पानी हो तभी परिवार की सार्थकता होती है और जब प्रेम का पानी नहीं रहता तो परिवार सुखे तालाब सा हो जाता है जिसमें गंदगी के अलावा कुछ नहीं मिलता। व्यास गद्दी पर बैठने के बाद न गला काम करता है और न कला, इस पर बैठने के बाद श्री हरि की कृपा ही कार्य करती है। कथावाचक ने कहा कि श्रीकृष्ण व सुदामा जैसी मित्रता न हुई और न होगी। इस दौरान मित्र सुदामा व श्रीहरि की नयनाभिराम झांकी बनाई गई। जब देखो देखो ए गरीबी भजन गूजां तो सभी भाव में मस्त हो भक्ति के साथ प्रभु को पाने की तमन्ना मात्र से झूमने लगे। आरती कर कथा को विश्राम दिया गया। शोभायात्रा के साथ श्रीमद भागवत की पोथी को यथास्थान रखा गया।
कथावाचक शास्त्री ने कहा कि व्यक्ति को हमेशा धर्म की राह पर चलकर पुण्य कार्य करना चाहिए। बड़ों का आदर करने के साथ ही माता-पिता की सेवा करें। भगवान का स्मरण व श्रीमद् भागवत कथा के श्रवण मात्र से मनुष्य के हर कष्ट दूर हो जाते हैं। कथा के समापन पर महाआरती की गई। इसमें श्रद्धालुओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। जब तक जीवन में गुरु का पदार्पण नहीं होता तब तक भक्ति के वास्तविक स्वरूप को नहीं जाना जा सकता। इसके लिए उसके मन का परिवर्तन होना भी जरूरी है।
कथावाचक शास्त्री ने कहा कि श्रीमद् भागवत अमृतपान के बाद मानव मात्र में किसी पेयपदार्थ पीने की लालशा नहीं रहती। ज्ञान का सर्वोच्च कथामृत पान पीकर जजमान परिवार सहित हजारों श्रवक धन्य हुए। कथा प्रसंग में उद्ववगीता का मर्मिक संगीतमय वर्णन सभी के मन को छू गया। अंत में व्यास पूजन के साथ पूर्णाहुति संपन्न हुई। आयोजक सुखवाल परिवार ने सभी सेवादारों का सम्मान किया गया।
कथावाचक शास्त्री ने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि वर्तमान में ऐसे विश्वास से भरे हुए प्रेरणादायी मित्रता के प्रसंग कम ही देखने को मिलते हैं। हमें भी श्रीकृष्ण-सुदामा की मित्रता से प्रेरणा लेकर मित्र धर्म को समझना चाहिए और उसे निभाना चाहिए। मनुष्य संसार में सिर्फ मित्रता का रिश्ता स्वयं अपनी पसंद से चुनकर बनाता है। शेष अन्य सारे रिश्ते तो हमें परिवार, धर्म और संसार से मिलते हैं। किंतु मित्र हम स्वयं बनाते हैं। आज संसार में मित्रता के रिश्ते को बचाना जरूरी है जो सिर्फ विश्वास और प्रेम पर टिके हैं। संयोजक विवेक शर्मा ने सभी का आभार ज्ञापित किया। इस मोके पर अजमेर के जिला शिक्षा अधिकारी तेजपाल उपाध्याय सहित शाहपुरा के प्रबुद्व नागरिक मौजूद रहे। समापन पर कथावाचक का सम्मान कर भावभीनी विदाई दी गई।

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