आचार्यश्री रामदयाल महाराज ने हंसराज चोधरी को किया सम्मानित

आचार्यश्री रामदयाल महाराज ने हंसराज चोधरी को परमार्थ प्रतिभा की उपाधि से किया सम्मानित
सनातन संस्कृति में पर्यावरण को देवतुल्य स्थान दिया, नवग्रह आश्रम का उत्कृष्ट स्थान-रामदयालजी

शाहपुरा-18 जनवरी
रामस्नेही संप्रदाय के आद्याचार्य स्वामी रामचरण महाप्रभु त्रिशताब्दी प्राकट्य महोत्सव 2020 के अंर्तगत संप्रदाय के पीठाधीश्वर जगतगुरू आचार्यश्री स्वामी रामदयाल महाराज के 25 वें पाटोत्सव के तहत शुक्रवार को एक सादे समारोह में श्रीनवग्रह आश्रम मोती बोर का खेड़ा के संचालक हंसराज चोधरी का आचार्यश्री ने सम्मान कर उनको परमार्थ प्रतिभा की उपाधि से नवाजा।
श्रीनवग्रह आश्रम संचालक हंसराज चोधरी ने आचार्यश्री स्वामी रामदयाल महाराज को आश्रम का साहित्य भेंट किया तथा आश्रम में संचालित गतिविधियों की विस्तार से जानकारी देते हुए आयुर्वेद पर विस्तार से चर्चा की। आचार्यश्री ने हंसराज चोधरी को परमार्थ प्रतिभा से नवाजते हुए गुलाबी रंग की शाॅल ओढ़ा कर उनको सिविल संत बताया। इस मौके पर शाहपुरा के अधिवक्ता दीपक पारीक, जीव दया सेवा समिति के संयोजक अत्तू खां कायमखानी, प्रेस क्लब शाहपुरा के महासचिव मूलचन्द पेसवानी भी मौजूद रहे।
इस मौके पर आचार्यश्री रामदयाल महाराज ने कहा कि श्रीनवग्रह आश्रम की ओर से आज के दौर में केंसर जैसे असाध्य रोगों का निःशुल्क उपचार आयुर्वेद पद्धति से किया जाना मानव सेवा का पुण्य कार्य है। उन्होंने वहां पर ग्रहों, राशियों व नक्षत्रों के आधार पर रोपें गये पौधों को भी बेमिसाल बताते हुए कहा कि सनातन काल की चिकित्सा पद्धति को ऐसे आश्रम द्वारा पुर्नजीवित किया जा रहा है।
आचार्यश्री ने जोर देकर कहा कि संत किसी वेश का नाम नहीं है कि गेरूआ या लाल रंग का वस्त्र पहन कर वो संत कहलाए। आश्रम संचालक चोधरी भी सिविल संत है जो सिविल होकर भी संत से बेहतर सेवा कार्य कर रहे हैं उन्होंने कहा कि आज के दौर में मानव सेवा के इस प्रकार के पुण्य कार्यो में आमजन को भागीदार होना चाहिए।
आचार्यश्री ने कहा कि विश्व की प्राचीनतम् संस्कृति भारतीय सनातन हिन्दू संस्कृति में पर्यावरण को देवतुल्य स्थान दिया गया है। यही कारण है कि पर्यावरण के सभी अंगों को जैसे जल, वायु, भूमि को देवताओं से जोड़ा गया है, देवता ही माना गया है। हिन्दू दर्शन में मूल इकाई जीव में मनुष्य में पंच तत्वों का समावेश माना गया है। मनुष्य पांच तत्वों जल, अग्नि, आकाश, पृथ्वी और वायु से मिलकर बना है। वैदिक काल से इन तत्वों के देवता मान कर इनकी रक्षा का करने का निर्देश मिलता है, इसलिए वेदों के छठे अंग ज्योतिष की बात करें तो ज्योतिष के मूल आधार नक्षत्र, राशि और ग्रहों को भी पर्यावरण के इन अंगों जल-भूमि-वायु आदि से जोड़ा गया है और अपने आधिदैविक और आधिभौतिक कष्टों के निवारण के लिए इनकी पूजा पद्धति को बताया गया है। इसी परिपेक्ष्य में श्रीनवग्रह आश्रम का संचालन आज के दौर में प्रसागिंक है। भारतीय पौराणिक ग्रंथों, ज्योतिष ग्रंथों व आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार ग्रहों व नक्षत्रों से संबंधित पौधों का रोपण व पूजन करने से मानव का कल्याण होता है। आम लोगों को इन वृक्षों के वैज्ञानिक, आध्यात्मिक, ज्योतिषीय व आयुर्वेदिक महत्व के बारे में होना चाहिए, जिससे प्रकृति पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिले।
श्री नवग्रह आश्रम संचालक हंसराज चोधरी ने इस मौके पर कहा कि अध्यात्म और ज्योतिष से जुड़े विद्वान पर्यावरण के क्षेत्र में धार्मिक अनुष्ठान के माध्यम से कार्य करता है कि वह अपने पास आए हुए जातक की कुंडली का भली-भांति अध्ययन कर जो ग्रह या नक्षत्र निर्बल स्थिति में हैं उनसे संबंधित वृक्षों की सेवा करने उनकी जड़ों को धारण करने की सलाह देता है। क्योंकि इनमें से कुछ वृक्ष ऐसे भी हैं जिन्हें घर में लगाना संभव नहीं होता है, तो ऐसे परिस्थिति में किसी मंदिर में इनका रोपण करें या जहां भी ये वृक्ष हो उनकी सेवा करें और और प्रकृति का आशीर्वाद ग्रहण करें। यह एक उत्तम कार्य होगा कि आने वाली पीढ़ी और संस्कृति संरक्षण के लिए प्रकृति व पर्यावरण के साथ आयुर्वेद से जुड़े। उन्होंने जोर कहा कि सरकारी स्तर पर आयुर्वेद को बढ़ावा देने के प्रयास नाकाफी है। प्रकृति के संरक्षण मे समुदाय की सहभागिता नितांत आवश्यक है। आमजनों के सहयोग के बिना पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन की संकल्पना अधूरी है। पर्यावरण संरक्षण केवल व्यक्ति विशेष, शासन की जिम्मेदारी नहीं अपितु समस्त समुदाय की जिम्मेदारी है.
उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान समय मे लगभग सभी नागरिक मनुष्य के विकृत आचरण से पर्यावरण मे पड रहे दुष्प्रभाव से परिचित हैं, परंतु जानकारी का होना और उसको आचरण मे लाना दो पृथक विषय हैं। इसके लिए स्वप्रेरणा आवश्यक है। इसी स्व्प्रेरणा की अनुभूति हेतु यह अभियान लाया गया है। यह जन जन का अभियान है। चोधरी ने बताया यदि कोई भी मरीज, उसके परिजन या दर्शनार्थी अपने घर मे ले जाकर वृक्षो को लालन पालन करना चाहते हैं तो वे पौधे अपने साथ ले जा सकते है।

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