आधुनिकता का प्रयोग अनुशासन के साथ हो: डॉ. खत्री

आचार्य तुलसी की मासिक पुण्यतिथि पर ‘‘जीवन में अनुशासन का महत्त्व’’ विषय पर संगोष्ठी आयोजित
गंगाशहर। आचार्य तुलसी के आगे युग पुरुष लगता है। युग पुरुष इसलिए लगता है क्योंकि वे सौ साल आगे की सोचते थे। सौ साल बाद हमारी पीढ़ी कैसे होगी? उनकी चर्या, उनके संस्कार कैसे होंगे? और इसी लिए उन्होंने ऐसी व्यवस्थाएं समाज को दी कि जिससे समाज सहज रूप से अनेक बुराइयों और भौतिकता से अपने आप को बचाते हुए अपना जीवन धर्म-दर्शन और त्याग मय जीते हुए मोक्ष मार्ग को प्राप्त करें। ये विचार आचार्य तुलसी की मासिक पुण्यतिथि पर गंगाशहर स्थित नैतिकता का शक्तिपीठ पर ’जीवन में अनुशासन का महत्व’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी के मुख्य वक्ता व्याख्याता डॉ. नवेन्दु खत्री ने कही। उन्होंने कहा कि आचार्य तुलसी ने अपने जीवन में अनुशासन को महत्व दिया है। राम-रावण युद्ध, कौरव पाण्डव युद्ध अनेक प्रसंगों के माध्यम से वाणी का अनुशासन और शब्दों के अनुशासन पर उदाहरण देते हुए कहा कि जहां-जहां अनुशासन को तोड़ा जाता है वहां युद्ध अवश्य हुआ है। उन्होंने कहा कि हम आधुनिकता का विरोध नहीं करते, अर्थात् मोबाइल व इंटरनेट का प्रयोग मर्यादा के साथ करें। डॉ. खत्री ने कहा कि कलम भी अनुशासन में चले तो शास्त्र का निर्माण कर सकती है वरना पीत पत्रकारिता का जन्म हो जाता है। आधुनिकता के प्रयोग अनुशासन के साथ किया जावे तो हमारे बीच में से बिल गेट्स जैसे अनेक महान् लोग निकलेंगे।
शासनश्री मुनिश्री मणिलालजी स्वामी ने कहा कि मुझे आचार्य तुलसी के अनुशासन में 25 वर्ष तक रहने का अनुभव रहा। आचार्य तुलसी ने केवल मात्र आंखों से अनुशासन किया। शुद्ध साधन से ही शुद्ध साध्य प्राप्त किया जा सकता हैं। उन्होंने कहा कि साधन और साध्य के प्रर्याय थे आचार्य तुलसी। आचार्यश्री के सूत्र ‘‘निज पर शासन फिर अनुशासन’’ को अपने जीवन में अपनाकर ही जीवन निर्वहन करना चाहिए। अगर इस सूत्र को अपने आप पर लागू कर दिया तो दूसरों पर अपने आप ही लागू हो जाएंगे। आचार्य तुलसी ने मूल को पकड़ा। उन्होंने समता का प्रयोग किया। मुनिश्री ने कहा कि ‘‘समता जीवन का श्रृंगार-बढ़ती जिससे’’ गीतिका का संज्ञान किया। उन्होंने अन्दर का श्रृंगार करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि मानव अपने भीतर से सुधार करना शुरू करे इससे हम अपने सभी लक्ष्य प्राप्त कर सकेंगे।
मुनिश्री कुशलकुमारजी ने कहा कि दो शब्द है हमारे सामने, अनुशासन व आत्मानुशासन। अनुशासन तो दूसरों के द्वारा किया जाता है लेकिन आत्मानुशासन पर किसी की बंदिश नहीं लगनी पड़ती। जहां आत्मानुशासन की बात आती है वहां अपने आप देखने, बोलने व सुनने पर अनुशासन हो जाता है। आपका अपने आप विकास होना शुरू हो जाता है। मुनिश्री ने सभी को अपने जीवन में कभी भी गाली का प्रयोग नहीं करने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि आंखों के अनुशासन से जीवन को रूपान्तरित करने की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि तुलसी के पौधे का उदाहरण देकर गुरूदेव तुलसी के अनुशासन को समाज के सामने रखा। मुनिश्री ने व्यक्ति को अपना जन्म दिवस अनुशासन दिवस के रूप में मनाने की प्रेरणा दी।
संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए डॉ. धनपत जैन ने कहा कि अनुशासन की बात करने के लिए अध्यापक से अच्छा कोई नहीं होता। अध्यापक बच्चों को अनुशासन का पाठ पढ़ाता है लेकिन उसे अपने जीवन मंे लागू बच्चों को स्वयं करना होता है। तेरापंथ धर्मसंघ का पर्यावाची है अनुशासन। आचार्यश्री तुलसी ने अनुशासन के साथ कैसे सहज रूप से जीवन जीया जाता है सभी को सीखाया।
आचार्य तुलसी शान्ति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष जैन लूणकरण छाजेड़ ने बताया कि नैतिकता का शक्तिपीठ में कार्यरत कर्मचारियों में से अनुशासनबद्ध ढंग से श्रेष्ठ चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी प्रेमकुमार तेजी का अभिनन्दन किया गया। प्रेम का पताका, आचार्य तुलसी की फोटो एवं नकद राशि प्रदान कर जीवराज सामसुखा, भैंरूदान सेठिया एवं जैन लूणकरण छाजेड़ ने सम्मानित किया।
मुख्य वक्ता डॉ. नवेन्दु खत्री का सम्मान जैन पताका, स्मृति चिन्ह एवं साहित्य भेंट करके डॉ. पी.सी. तातेड़ ने किया तथा डॉ. आशा खत्री व डॉ. पूनम शर्मा को साहित्य दीपिका बोथरा एवं मधु छाजेड़ ने भेंट किया। अध्यापक हरीश दैया व जगदीश पंचारिया का सम्मान तोलाराम सामसुखा व राजेन्द्र बोथरा, मनोज सेठिया एवं जतन संचेती ने किया। आभार ज्ञापन देवेन्द्र डागा ने किया तथा सभी से प्रत्येक कृष्णा तीज को नैतिकता का शक्तिपीठ आने के लिए संकल्पित होने का आह्वान किया। मंच का सफल संचालन भरत गोलछा ने किया। संगोष्ठी में चौपड़ा स्कूल के विद्यार्थियों ने भाग लेकर जीवन में अनुशासन के महत्व को समझा।
जैन लूणकरण छाजेड़ अध्यक्ष

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