मोलेला शैली से नवग्रह आश्रम में तैयार होगा नवग्रह मन्दिर

पदमश्री शिल्पकार मोहनलाल ने नवग्रह आश्रम संस्थापक का किया सम्मान

मोती बोर का खेड़ा(भीलवाड़ा) / मिट्टी की पारंपरिक कला के लिए मशहूर राजसमंद जिले के मोलेला गांव में वहां के प्रसिद्ध पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त वयोवृद्ध शिल्पकार मोहनलाल कुम्हार की प्रेरणा से भीलवाड़ा जिले के मोती बोर का खेड़ा के नवग्रह आश्रम में संस्थापक हंसराज चोधरी के प्रयासों से नवग्रह मंदिर की स्थापना होगी। इससे वहां पहुंचने वाले रोगी अध्यात्म चिकित्सा के तहत मंदिर में नवग्रह के पौधों के सानिध्य में रहकर उपचार करा सकेगें।
पदमश्री मोहनलाल ने मृण शिल्प में तैयार किये जाने वाले शिल्प के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि यह शिल्प कला बरसो पुरानी है। यहां मिट्टी को आकार देते हुए पारंपरिक और आधुनिक भाव परिवेश को रूपांकित किया जाता है। उनकी कृतियों में चिंतन और विचारों का समावेश भी किया जाता है। उन्होंने बताया कि उनके यहां धर्म, संस्कृति, परिवेश और परिस्थितियों पर आधारित चित्र उकेरे गए है। उन्होंने मोलेला की पारंपरिक मृणकला के बारे में विस्तार से जानकारी भी दी।
इसी के तहत पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त वयोवृद्ध शिल्पकार मोहनलाल कुम्हार द्वारा नवग्रह आश्रम की परिकल्पना के आधार पर नो ही ग्रहों के अनुरूप शिल्प तैयार किये गये है। ये मोलेला की पारंपरिक कलाकृतियां ही कहलायेगी। नवग्रह आश्रम संस्थापक हंसराज चोधरी ने बताया कि शिल्प के इस बेजोड़ कलाकृतियों को साकार रूप देने के लिए आश्रम परिसर में नवग्रह मंदिर की स्थापना शीघ्र की जायेगी जिसमें इनको प्रतिस्थापित किया जायेगा। मंदिर में इन कलाकृतियो के साथ उस ग्रह से संबंधित पौधा, उसका नाम व विवरण का चार्ट तैयार करने के साथ ही उस ग्रह का पोधा भी लगाया जायेगा ताकि आश्रम में आने वाला प्रत्येक रोगी नवग्रह मंदिर में पहुंच कर अपने से संबंधित ग्रह का पौधा देख सके व उनके सानिध्य में कुछ समय बीता कर आनंद की अनुभूति कर सकें क्योंकि ग्रहों के पौधों का सानिध्य निश्चित रूप से व्यक्ति को आनंददायी जीवन ही देता है।
इस बीच प्रसिद्ध पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त वयोवृद्ध शिल्पकार मोहनलाल कुम्हार ने नवग्रह आश्रम संस्थापक हंसराज चोधरी का आयुर्वेद के माध्यम से केंसर सहित अन्य असाध्य रोगियों का उपचार करने के फलस्वरूप सम्मान किया। सम्मान स्वरूप चोधरी को पदमश्री मोहनलाल ने मोलेला शैली में निर्मित मृण शिल्प का अशोक स्तंभ व सुर्य और चंद्र की संयुक्त कृति भी भेंट की।

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