नवग्रह आश्रम संस्थापक चोधरी 3 मई को नेपाल के लिए करेगें प्रस्थान

हर्बल वाटिका व रोगोपचार के लिए नवग्रह आश्रम द्वारा मुहैया करायी जा रही औषधियां अजूबा ही है-डा गोरेला
मोती बोर का खेड़ा(भीलवाड़ा)
देहरादून में स्थित भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद के महानिदेशक डा. सुरेश गैरोला ने कहा है कि स्वस्थ पर्यावरण, स्थानीय समुदायों की सतत् आजीविका तथा जैव विविधता के संरक्षण के लिए वनों की सलामती आवश्यक है। इसमें औषधीय पौधों का संरक्षण करना विषम होने के बाद भी लाभकारी सिद्व हो रहे है। ऐसे कार्य में नवग्रह आश्रम द्वारा तैयार की हर्बल वाटिका व रोगोपचार के लिए आश्रम द्वारा मुहैया करायी जा रही औषधियों से निश्चित रूप से आम आदमी लाभान्वित हो रहा है।
यह बात महानिदेशक डा. सुरेश गैरोला ने गुरूवार को देहरादून में भीलवाड़ा जिले के मोती बोर का खेड़ा के नवग्रह आश्रम में संस्थापक हंसराज चोधरी से मुलाकात करने के समय कही। चोधरी ने महानिदेशक डा. सुरेश गैरोला को आश्रम की आयुष्मान भव पुस्तिका भेंट करते हुए बताया कि उनके यहां वर्तमान में 411 प्रजातियों के औषधीय पौधे है, तो डा. गैरोला ने कहा कि यह दुनियां का अजूबा ही कहा जायेगा। भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद परिसर में भी वर्तमान में 187 प्रजातियों के ही पौधे है।
भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद के महानिदेशक डा. सुरेश गैरोला के निर्देश पर वहां परिषद के सचिव डा. राजीव तिवारी, वैज्ञानिक डा. बीपी टम्टा, अनुभाग अधिकारी डा. राकेश वर्मा ने आश्रम संस्थापक हंसराज चोधरी को भारतीय वानिकी अनुसंधान परिसर में होने वाले रिसर्च के बारे में विस्तार से जानकारी दी। हंसराज चोधरी ने बताया कि वहां दो सौ वर्ष पूर्व लगाये गये वटवृक्ष आज भी मौजूद है। यह परिसर आजादी से पूर्व ब्रिटिश हुकुमत के दौरान ही स्थापित किया गया तभी के समय के कई पोधे आज भी मौजूद है। उन्होंने वहां पर आरक्षित स्मृति वृक्ष का भी अवलोकन किया।
इस दौरान डा. सुरेश गैरोला ने कहा कि भारत के लिए राष्ट्रीय रेड़ कार्यनीतियां पूर्व से ही जारी की जा चुकी हैं। वनों की कटाई और वन क्षरण से उत्सर्जन को कम करना, वन कार्बन स्टाॅक का संरक्षण, वनों का सतत प्रबंधन और विकासशील देशों में वन कार्बन स्टाॅक में वृद्धि का उद्देश्य वन संरक्षण को प्रोत्साहित करना है। डा. गैरोला ने कहा कि स्वस्थ पर्यावरण, स्थानीय समुदायों की सतत् आजीविका तथा जैव विविधता के संरक्षण के लिए वनों की सलामती आवश्यक है। रेड़ भारत जैसे विकासशील देशों में अत्यधिक ध्यान दिया जा रहा है जहां स्थानीय समुदाय, वनवासी जनजातियां उनकी आजीविका हेतु वनों पर ज्यादातर निर्भर है।
हंसराज चैधरी ने कहा कि वन क्षेत्र के आसपास रहने वाले लोगों की आजीविका और आर्थिक स्थिति को बढ़ाने देने के लिए ध्यान अनुसंधान पर केन्द्रित होना चाहिए ताकि लोगों को और अधिक विकसित करते हुए जंगलों के बाहर वृक्ष लगाने के प्रेरित किया जा सके।
चोधरी ने कहा कि वैज्ञानिकों का कर्तव्य है कि हम ऐसी अनुसंधान परियोजनाएं बनाएं जो सीधे तौर पर हित धारकों से संबंधित हो, वैज्ञानिक केवल मात्र अपनी अकादमिक रुचि की परियोजनाओं पर ही अपना ध्यान केंद्रित करें, क्योंकि सरकारी कर्मचारी होने के नाते असल में हमारा प्रत्येक कार्य व्यापक जनहित एवं देश हित में ही होना चाहिए।
चोधरी आज नेपाल के लिए करेगें प्रस्थान
श्रीनवग्रह आश्रम के हंसराज चोधरी 3 मई को नई दिल्ली से नेपाल के लिए प्रस्थान करेगें। चोधरी वहां पर औषधीय पौधों पर रिसर्च करने के साथ ही वहां के औद्योगिक संगठनों की राष्ट्रीय संस्था के तत्वावधान में होने वाली तीन महत्वपूर्ण बैठकों में केंसर सहित अन्य असाध्य रोगों पर विस्तार से जानकारी देकर नवग्रह आश्रम की औषधियों के बारे में जानकारी देगें।

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