स्वामी द्वार खुलवाने लक्ष्मी को मनाने हुए विवश, लोग खुशी से जैकारे लगाते रहे

बीकानेर 12 जुलाई 2019 । खुशी से जैकारे लगाते लोग हैरान थे। जगत का पालनहार अपने धाम के बाहर खड़ा था मगर द्वार बंद था। लोगों ने पूछताछ की तो ज्ञात हुआ भगवान वापस आए तो नाराज लक्ष्मी ने मंदिर का दरवाजा ही बंद कर दिया । दरअसल रथ यात्रा के पांचवें दिन माता लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ को लेने मौसी के घर गई थी, लेकिन भगवान साथ चलने को राजी नहीं हुए। इस पर नाराज लक्ष्मी रथ भंग कर वापस चली गईं थी। इसी वजह आज माता लक्ष्मी को मनाने के लिए भगवान को लक्ष्मीजी के नाज-नखरे उठाने पड़े, मिष्ठान्न खिलाते हुए मान-मनोव्वल करनी पड़ी। जी हां, ये सब हुआ देवशयनी एकादशी को, जब मौसी के घर ( रसिक शिरोमणि मंदिर रतन बिहारी पार्क ) बीते दिनों तक रहने के बाद भगवान जगन्नाथ अपने धाम जगन्नाथ मंदिर में लौट आए। भगवान के आने पर धनीनाथ पंच मंदिर के सामने स्थित जगन्नाथ मंदिर को आकर्षक ढंग से सजाया गया। लौटती शोभायात्रा में जगन्नाथ जी का जगह-जगह स्वागत किया गया।
गाजे-बाजे के साथ निकली रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ के जयकारे गूंज उठे। वापस घर लौट रहे भगवान का रथ खींचने के लिए भक्तगणों में होड़ लगी रही। बच्चे, युवा, महिलाएं सभी उत्साहपूर्वक रथ को खींचने में उत्साहित नजर आए। भगवान के लौटने की खुशी में शुक्रवार को महाभंडारा का आयोजन किया गया । परंपरा के अनुसार सभी अनुष्ठान करते हुए भगवान को गर्भगृह में सिंहासन पर बैठाया गया। आचार्यों ने वेद मंत्रोच्चार से भगवान को पुनःप्रतिष्ठापित किया। इससे पहले मौसी के घर से भगवान की यात्रा की पूरी तैयारियां करते हुए मंदिर में हवन और पूजा-पाठ किया गया । रथ पूजन की परंपरा का निर्वहन कर भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र को गगनभेदी जयकारों के बीच रथ पर बैठाया गया। सभी अनुष्ठान और परंपराओं को पुरी मंदिर की तर्ज पर ही संपन्न किया गया ।

अब चार माह लगी शुभ कार्यों पर रोक
शुक्रवार को श्रद्धालुओं ने देवशयनी एकादशी का व्रत रख भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की। मान्यता है कि देवशयनी एकादशी से देवी-देवताओं के विश्राम करने का समय शुरू हो जाता है और इसके बाद चातुर्मास मनाया जाता है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार अब अगले चार माह तक चलने वाले चातुर्मास में सभी तरह के मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाएगी और देवउठनी एकादशी (जेठउनी) के दिन भगवान के जागने की परंपरा निभाने के बाद ही मांगलिक कार्य किए जाएंगे।

-✍️ मोहन थानवी

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