मास्टर ट्रेनर बुनकर मोडाराम मेघवाल नेशनल मेरिट एवार्ड 2017 से सम्मानित होंगे

बाङमेर जिले की हस्तशिल्प कला को नई पहचान देने और परंपरागत पट्टू निर्माण को सरंक्षण के लिए भारत सरकार ने सरहदी क्षेत्र के बुनकर मोडाराम को 2017 का राष्ट्रीय मेरिट अवार्ड देने की घोषणा की है।।जबकि 2017 में राज्य सरकार ने मोडाराम के पुत्र गोविंद मेघवाल को सम्मानित किया था। पारंपरिक बुनाई कला नई पहचान बना रही हैं ।
पट्टू बुनकर जो अधिकांश अनपढ़ या अल्प शिक्षित है वो इन सीमाओं से परे जाकर राष्ट्रीय गौरव हासिल कर रहे हैं जो प्रेरणादायी है । विगत 45 सालों से स्थानीय हस्तशिल्प कला को न केवल प्रोत्साहित कर रहे बल्कि उनके सरंक्षण में भी मोडाराम का परिवार जुटा है। इन्होंने करीब 150 से ज्यादा युवाओ को प्रशिक्षण देकर इस कला में निपुण बनाया है।अकेले मोडाराम ही नही बल्कि इनका पूरा परिवार पारंपरिक रूप से हस्तशिल्प कला के इस काम मे जुटे है।मोडाराम के पुत्र गोविंद मेघवाल को पट्टू निर्माण में 2017 में राज्य स्तरीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। मोडाराम और गोविंद बुनाई का कार्य करते है तो मोडाराम की पत्नी श्रीमती कमला मेघवाल कताई के कार्य मे इनकी मदद करती है।।मोडाराम मास्टर ट्रेनर के रूप में ख्याति प्राप्त है।।उनके द्वारा कुशलता के साथ पट्टू निर्माण के साथ साथ साड़ी, दुप्पटा,कोट,आदि का निर्माण भी किया जाता है। इन्हें अफसोस है कि हस्तशिल्प का बिक्री केंद्र नहीं होने के कारण तैयार उत्पाद का सही मोल उन्हें नही मिलता।।मोडाराम ने बताया कि गत साल हाथ करघा समिति के माध्यम से क्लस्टर योजना में डब्लू वी एस जयपुर में आवेदन किया था।मगर जो बुनकर नही थे वो अपनी पहुंच के चलते क्लस्टर स्वीकृत करा के ले आये ।जो मशीनें क्लस्टर में खरीदी वो भी बेच चुके है जबकि हम पारंपरिक रूप से इस कला के सरंक्षण के लिए प्रयासरत है मगर हमे न तो मशीन दी गई न ही क्लस्टर स्वीकृत हुए।एक साल से हमारी राशि मे डब्लू वी एस में जमा थी।बार बार तकादा करने पर भी हमे कोई रेस्पिन्स नही मिला।कुछ दिन पूर्व मशीन देने से मना कर राशि पुनः ले जाने का बोल दिया विभाग ने।।मोडाराम के परिवार में पति पत्नी सहित तीन पुत्र और तीन पुत्रियां इस पारंपरिक कार्य मे उनका हाथ बंटाते है।उनकी हस्तशिल्प कला का कोई सानी नही।।मोडाराम को नेशनल मेरिट अवार्ड 2017 के लिए भारत सरकार ने चयनित कर थार का गौरव बढ़ाया है।।अलबत्ता मोडाराम का कहना है कि उनका प्रयास रहता है कि बाडमेर जिले की पट्टू निर्माण कला में जो खास पहचान है वह कायम रहे इसके लिए अब तक 150 युवा शार्गिद तैयार कर चुके है।

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