अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग अठारह

ओम माथुर
श्री ओम माथुर
अजमेर के प्रतिष्ठित व स्थापित पत्रकारों में शुमार श्री ओम माथुर यहां के पत्रकार जगत में अपनी किस्म के अनूठे पत्रकार हैं। अन्य पत्रकारों की तरह उन्हें भी अच्छे ऑफर मिले, लेकिन उन्होंने अपनी उस जमीन को नहीं छोड़ा, जिसने उन्हें स्थापित किया और आज पत्रकारों की शीर्ष पंक्ति में हैं। पत्रकारिता का आरंभ उन्होंने दैनिक रोजमेल से किया। कुछ समय दैनिक न्याय में भी रहे, मगर बाद में दैनिक नवज्योति से जुड़े तो वहीं के हो कर रह गए। आज वे नवज्योति के स्थानीय संपादक हैं। उन्होंने काफी समय तक रिपोर्टिंग की है। अब तक अनगिनत एक्सक्लूसिव स्टोरीज कर चुके हैं। काफी समय से संपादन का काम भी बखूबी कर रहे हैं। वे लंबे समय तक आकाशवाणी के संवाददाता भी रहे हैं। वर्तमान में सोशल मीडिया पर स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के ज्वलंत विषयों पर बेबाकी से लिख रहे हैं।
उनकी छवि एक सख्त पत्रकार के रूप में है। केवल काम से काम। हालांकि हैं सुमधुर व व्यवहार कुशल, मगर खबर के मामले में कोई समझौता नहीं। न किसी अधिकारी के दबाव में आते हैं और न ही किसी राजनेता के। इसे यूं भी कह सकते हैं कि मानसिक रूप से पूरे पत्रकार हैं। कोई कितना भी बड़ा लाट साब हो, उनकी कलम जब चलती है तो नश्तर ही भांति पूरा पोस्टमार्टम करके ही चैन लेती है। यही वजह है कि कई बार सार्वजनिक जीवन से वास्ता रखने वाले उनसे नाराज हो जाते हैं, लेकिन बाद में अहसास करते हैं कि उन्होंने तो अपने धर्म का पालन किया है, प्रयोजन विशेष से उनके खिलाफ नहीं लिखा है। पत्रकारिता को धर्म की भांति धारण किए हुए श्री माथुर अमूमन जनसामान्य में मिक्सअप नहीं होते। मगर इसका अर्थ ये भी नहीं कि उनके मित्र नहीं हैं। बहुतेरे मित्र हैं, और मित्रता के नाते दुनियादारी वाला सारा व्यवहार भी पूरा निभाते हैं, यानि कि सभी की गमी-खुशी में आते-जाते हैं, लेकिन खबर लिखते समय संबंधों को ताक पर रख देते हैं। और यही खासियत उन्हें खांटी पत्रकार की श्रेणी में खड़ा करती है। उनके एक राजनीतिक मित्र ने एक बार मुझे बताया कि श्री माथुर हैं तो बहुत अच्छे मित्र, मार्गदर्शन भी अच्छा करते हैं, सही सलाह देते हैं, लेकिन बात ही बात में दी गई जानकारी को मौका लगने पर पत्रकारिता में उपयोग करने से नहीं चूकते। लेकिन साथ ही ये भी बताया कि श्री माथुर ने गोपनीय जानकारियों का कभी दुरुपयोग नहीं किया।
जहां तक नवज्योति संस्थान का सवाल है, एक इंचार्ज के रूप में वे सहयोगियों को पूरे अनुशासन में रखते हैं, लेकिन बाद में सभी से छोटे भाई सा व्यवहार करते हैं।
यह भी एक संयोग की बात है कि जिस मिजाज के पत्रकार वे हैं, उन्हें उसी के अनुरूप दैनिक नवज्योति का मंच मिला। दैनिक नवज्योति के प्रधान संपादक श्री दीनबंधु चौधरी के जीवन पर प्रकाशित गौरव ग्रंथ में अपने मन्तव्य में वे स्वयं लिखते हैं कि लगातार एक ही संस्थान में तीस साल तक काम करना कोई मामूली बात नहीं है। दैनिक नवज्योति, अजमेर में करीब तीस साल तक काम करने के बाद जब मैं पुनरावलोकन करता हूं, तो अहसास होता है कि अपनी बात कहने और लिखने की जो आजादी मुझे नवज्योति में मिली, शायद कहीं और होता, तो नहीं मिलती। वे लिखते हैं कि जब मैंने नवज्योति में प्रवेश किया था, तब वहां अजमेर की पत्रकारिता के दिग्गज काम कर रहे थे। उस समय ऐसा लगता था कि उनके बीच काम करते हुए शायद अपनी पहचान बनाना ही मुश्किल होगा। लेकिन खुद पर यकीन और दीनूजी के विश्वास के चलते न सिर्फ पत्रकारिता में पहचान बनाई, बल्कि पहली बार जिसे नवज्योति का स्थानीय संपादक बनाया गया, वह मैं ही था।
वे लिखते हैं कि जहां दूसरे अखबारों में खबर लिखने की कई पाबंदियां हैं, वहीं नवज्योति में दीनूजी ने कभी किसी के हाथ नहीं बांधे। मैंने नवज्योति में सालों तक इधर-उधर कॉलम लिखा है, जिसमें राजनीतिज्ञों व अफसरशाही से लेकर समाज के हर वर्ग से जुड़े लोगों पर कड़ी टिप्पणियां कीं। इसमें कई लोग ऐसे भी थे, जिनके दीनूजी से अच्छे रिश्ते थे। लेकिन उन्होंने कभी मुझे ये नहीं कहा कि मैंने फलां व्यक्ति के लिए क्यों लिख दिया। इसके उलट ऐसा कई बार हुआ है कि जब किसी ने उन्हें इस बात का उलाहना दिया कि वे मालिक के दोस्त हैं, फिर उनके अखबार में उनके खिलाफ लिखा जा रहा है। तो दीनूजी ने उन्हें ही उलाहना देते हुए कहा कि, अगर ओम ने गलत लिखा है, तो बताओ और अगर सही है, तो उसका काम ही ये है।
एक किस्सा बताना चाहूंगा। अजमेर से सांसद रहे एक राजनीतिज्ञ को इधर-उधर में उनके बारे में लिखने पर बहुत तकलीफ होती थी। उन्होंने पांच साल तो जैसे-तैसे मेरे लेखन की बर्दाश्त किया, लेकिन जब अगला चुनाव भी अजमेर से ही लडऩा पड़ा, तो दीनूजी से मिलने गए और उनसे आग्रह किया कि वे मुझे ये निर्देश दें कि मैं चुनाव तक उनके बारे में कुछ नहीं लिखूं। इस पर दीनूजी का जवाब था, मैं तो उससे नहीं कहूंगा। अगर आप कह सकते हो, तो कह दो। जाहिर है दीनूजी का रूख देख कर वे नेता खामोश लौट गए। इसी तरह एक बार मेरे लेखन से पीडि़त एक व्यक्ति ने दीनूजी को चि_ी भेजकर मुझ पर भ्रष्टाचार और दूसरे आरोप लगाए। तो उन्होंने चि_ी को मेरे समक्ष इस टिप्पणी के साथ भेजा, कि जब हाथी निकलता है, कुत्ते ऐसे ही भौंकते हैं। तुम अपना लेखन और धारदार करो। आज के दौर में शायद ही कोई अखबार मालिक इस तरह अपने स्टाफ के लिए खड़ा होता होगा।
श्री माथुर के शब्दों से ही उनके व्यक्तित्व व कृतित्व का शब्द चित्र खड़ा हो रहा है। पत्रकार जगत में नव प्रवेशियों को श्री माथुर से प्रेरणा लेनी चाहिए।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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