खींचन में कुरजां की घटती संख्या पर्यावरण पक्षी प्रेमियों के लिए चिंता बनी

चन्दन सिंह भाटी
*जेसलमेर जेसलमेर जोधपुर मार्ग पर स्थित फलौदी उप खण्ड का खिंचन गांव दुनिया भर में अपनी खास पहचान बना चुका है।।पहचान का कारण है स्थानीय तालाबो पर आने वाली लाखो की तादाद में साइबेरियन (डेमोसाइल क्रेन) क्रेन (कुरजा).सदियों से कुरजा शीतकालीन प्रवास पर छह हज़ार किलोमीटर की दुरी तय कर अपने दल के साथ सितंबर माह के अंत तक यहां डेरा डालती है।।साइबेरियन क्रेन के प्रवास के कारण खिंचन अपना पर्यटन नक्शे पर खास स्थान बना चुका है। तो पर्यटन विभाग राजस्थान भी अपने प्रचार प्रसार में खींचन और कुरजा को खास तवज्जो देता है।।प्रतिवर्ष हजारों की तादाद में पर्यटक कुरजा की अठखेलियाँ देखने खिंचन के तालाब पर पहुंचते हैं।।इस वर्ष भी खिंचन में बड़ी तादाद में साइबेरियन क्रेन खिंचन अपने नियत समय पर पहुंचे थे।मगर सितंबर से लेकर अब तक साइबेरियन क्रेन की संख्या में काफी गिरावट आई है।बुधवार को खिंचन में बड़ी मुश्किल से तीन चार हजार क्रेन नजर आई जबकि सितंबर में यह तादाद लाखो में थी।।साइबेरियन क्रेन की घटती संख्या से पक्षी प्रेमी काफी चिंतिंत और व्यथित है।।
कुरजां की घटती संख्या का मुख्य कारण इन विदेशी पक्षियों के लिए पर्यटन विभाग और पशु पालन विभाग की और से कोई खास प्रबंध न करना।।इन विभागों से पक्षियों के दाने पानी की कोई व्यवस्था नही है नहीं घायल पक्षियों के लिए उपचार की कोई व्यवस्था कर रखी है।।साथ ही साथ तालाब में घटता पानी भी इनकी संख्या में कमी का मुख्य कारण है।।इन पक्षियों को अठखेलियों और स्वछंद विचरण के लिए पानी से भरे तालाब चाहिए।मगर इस बार खिंचन के तालाब में पानी बहुत ही कम है।।जिसके चलते यहां पहुंचे पक्षियों ने अपने नए आशियाने ढूंढने के लिए उड़ाने भर दी।।बाडमेर जिले के पचपदरा के रेवाडा ,त्रिसिंगाडी और मानसरोवर तालाब पर बड़ी तादाद में क्रेनों ने डेरा जमाया है तो जोधपुर के ही बाप तहसील के कुछ तालाबो पर कुरजा ने अपने नए आशियाने बनाये है।।

खिंचन के विकास की योजनाए ठंडे बस्तों में
साइबेरियन क्रेनों के प्रवास के कारण खिंचन को अंतराष्ट्रीय स्तर की पहचान मिली।।राज्य सरकार और जिला प्रशासन द्वारा समय समय पर खिंचन को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजनाएं बनाई गई।।मगर कोई भी योजना धरातल पर नही आई।।खिंचन आने वाले पर्यटकों को कोई सुविधा मुहैया नही है।न ही कुरजो के लिए कोई प्रबंध किया गया।।अलबत्ता स्थानीय जैन समाज के प्रवासियों द्वारा इनके लिए चुगे (दाना पानी) की पुख्ता व्यवस्था की जा रही है।।इन क्रेनों को जैन समाज द्वारा संचालित पक्षी चुग्गा घर की और से दिन में दो बार चुग्गा डाला जाता है।।इसके लिए धर्मार्थ ट्रस्ट भी बना हुआ है।।सरकार और जिला प्रशासन की उदासीनता के चलते खिंचन अपना प्रभाव खोता जा रहा है। जरूरत है इस आकर्षक पक्षी आश्रय स्थल को विकसित करने की।।

50 से अधिक कुरजां की मौत हो चुकी
गत महीनों में खिंचन में करीब 50 से अधिक कुरजां की मौत हो चुकी है।।कहने को पशु पालन विभाग ने रेस्क्यू सेंटर खोल रखा है।मगर मौके पर रेस्क्यू टीम का कोई सदस्य नजर नही आया।ग्रामीणों ने बताया कि रेस्क्यू टीम वाले कुरजा के बीमार पड़ने पर जयपुर से आते है घायल कुरजा को साथ ले जाते हैं।।वन विभाग ने भी रेस्क्यू सेंटर बना रखा है मगर कुरजा के उपचार की व्यापक व्यवस्थाएं इन सेंटर पर नही हैं।।तालाब में पानी की कमी के कारण कुरजा बीमार पड़ रही है।।सांभर लेक के हादसे के बाद भी खिंचन कोई सबक नही ले रहा।।

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