भारत में बढ़ते अस्थमा के बोझ में महत्वपूर्ण कारणों के निदान और उपचार के अनुपालन की कमी

जयपुर, मई, 2022 – ग्लोबल बर्डन ऑफ़ डिजीज के अध्ययन ने अनुमान लगाया है कि भारतमें 30 मिलियन से अधिक अस्थमा रोगी हैं, जो संपूर्ण विश्व का 13.09 प्रतिशत है। हालांकि, जब मृत्यु दर की बात आती है, तो यह भारत में अस्थमा से होने वाली सभी मौतों का 42 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है । रूग्णता और मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण होने के बावजूद, यह रोग वर्षों से बिना निदान और उपचार के जारी है । विश्व स्तर पर किए गए जनसंख्या आधारित अध्ययनों ने अनुमान लगाया है कि अस्थमा के 20 प्रतिशत से 70 प्रतिशत रोगियों का निदान नहीं किया जाता है और इसलिए उनका इलाज नहीं किया जाता है।
अस्थमा के कम निदान और उपचार के लिए विभिन्न योगदान कारकों में रोग जागरूकता की कमी इंहेलेशन थेरेपी का खराब पालन निरक्षरता गरीबी और सामाजिक स्टीग्मा शामिल है। रोगी अक्सर अपने शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज कर देते हैं जो अंततः उन्हें और अधिक गंभीर स्थिति में ले जाता है । ग्लोबल अस्थमा नेटवर्क के अध्ययन के अनुसार, भारत में शुरुआती लक्षणों वाले 82 प्रतिशत और गंभीर अस्थमा के 70 प्रतिशत मरीजों का पता नहीं चल पाता है। निदान किए गए रोगियों में सर्वोत्तम उपचार के पालन का प्रतिशत भी बहुत कम है, जिसमें 2.5 प्रतिशत से कम रोगी दैनिक इनहेलेशन थेरेपी का उपयोग करते हैं।
अस्थमा, जिसे अक्सर आम जनता द्वारा स्वास, दमा या सर्दी और खांसी के रूप में संदर्भित किया जाता है, एक पुरानी साँस की बीमारी है जो सांस लेने में कठिनाई, सीने में दर्द, खांसी और घरघराहट का कारण बनती है। यह रोग फेफड़ों की श्वास नलियों को प्रभावित करता है जिससे दीर्घकालीन सूजन हो जाती है, जिससे श्वास नलिया ट्रिगर कारको के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है जिससे अस्थमा के दौरे की संभावना बढ़ जाती है।
ग्लोबल अस्थमा नेटवर्क अध्ययन का हवाला देते हुए इसके नेशनल कोऑर्डिनेटर डॉ वीरेंद्र सिंह ने अस्थमा के प्रति सामाजिक स्टिग्मा को दूर करने के महत्व पर जोर दिया। जब एक अस्थमा का रोगी एक डॉक्टर से परामर्श करता है, तो केवल 71 प्रतिशत डॉक्टर ही अस्थमा का निदान अपनी बीमारी के नाम के रूप में देते है जबकि एक तिहाई (29 प्रतिशत) अन्य शब्दावली का उपयोग करते साथही रोगी स्तर पर केवल 23 प्रतिशत दमा के रोगी ही अपनी बीमारी को अस्थमा कहते है। अस्थमा और इनहेलर के उपयोग से जुड़े सामाजिक सिग्मा प्रचलित है । इसके अलावा, रोगी मुश्किल से दवा का पालन करते हैं और ज्यादातर लक्षण आधारित उपचार लेते हैं । अस्थमा के खिलाफ जीत के लिए जागरूकता, स्वीकृति और पालन को श्रेणीबद्ध करने की जरुरत है।
डॉ वीरेंद्र सिंह, निदेशक अस्थमा भवन एवं अध्यक्ष राजस्थान हॉस्पिटल ने प्रकाश डाला, अस्थमा को एक स्टिग्मा के रूप में माना जाता है और कई रोगी इस बीमारी को छुपाते हैं। यह केवल तब होता है जब लक्षण बढ़ जाते हैं या असहनीय होते है, एक रोगी एक चिकित्सक से परामर्श करता है और निर्धारित दवा लेगा। हमें रोगियों को यह याद दिलाते रहना चाहिए कि लक्षण मुक्ति अस्थमा मुक्ति नहीं है । यह अस्थमा प्रबंधन में सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। कई मरीज बेहतर महसूस करने पर इनहेलर का इस्तेमाल बंद कर देते हैं । दवा बंद करना अक्सर लक्षणों को बदतर कर देता है । इसके अलावा गलत धारणा जैसे इनहेलर हानिकारक होता है और आदत बनाने वाली भी, यह सब उपचार के गैर पालना में भूमिका निभाती है । इसलिए इसे सही तरीके से संबोधित करने की जरूरत है ।
रोगियों के लिए समय की आवश्यकता है कि वह एक चिकित्सक के साथ समय पर परामर्श प्राप्त करें, जो उसे अपने लक्ष्यों के लिए सही जानकारी और निदान प्राप्त करने में मदद करेगा और सही उपचार के साथ शुरुआत करेगा । अस्थमा के प्रबंधन के लिए समय पर निदान बहुत महत्वपूर्ण है। अपने अस्थमा के लक्षणों को समझे और अपने डॉक्टर से सलाह ले ।

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