जयपुर की कला व शिल्प की अमूर्त विरासत का परिचय पाएं आईएचसीएल के साथ

जयपुर, 10 अगस्त, 2022: पुराने समय से भारतीय विरासत की संरक्षक मानी जाने वाली भारत की सबसे बड़ी हॉस्पिटैलिटी कंपनी इंडियन होटल्स कंपनी (आईएचसीएल) भारत की समृद्ध संस्कृति के तानेबाने में बेहद मजबूती से गुंथी हुई है। इसकी अगुआई करते हैं पथ्य के मूल्य जो की आईएचसीएल का ईएसजी+ फ्रेमवर्क है। यह उन पहलुओं में से एक है जिन पर आईएचसीएल खास ध्यान देती है, इसके तहत भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित व बढ़ावा दिया जाता है। इस उद्देश्य के साथ आईएचसीएल ने यूनेस्को के साथ हाथ मिलाया है, इस गठबंधन के अंतर्गत आईएचसीएल के विभिन्न होटलों में ठहरने वाले यात्रियों को अनुभवात्मक पर्यटन कराया जाएगा, इन होटलों में जयपुर का रामबाग पैलेस भी शामिल है।
रामबाग पैलेस में ठहरे अतिथियों को आदिवासी गांव में वास्तविक कालबेलिया नृत्य देखने का अनुभव मिलेगा या ब्ल्यू पॉट्री बनाने की बारीकियां सीख सकेंगे या स्थानीय शिल्पकारों के गांव जाकर बागरु हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग में भी हाथ आज़मा सकते हैं, ये सब जयपुर से कुछ ही दूरी पर मौजूद हैं।
यूनेस्को के सहयोग से इन अनूठे अनुभवों के बारे में श्री अशोक एस राठौड़, एरिया डायरेक्टर, जयपुर व अजमेर तथा जनरल मैनेजर-रामबाग पैलेस, ने कहा, ’’गुलाबी नगरी जयपुर न केवल अपने समृद्ध इतिहास बल्कि यहां की स्थानीय शिल्प कलाओं के लिए भी विश्व विख्यात है। यहां के शिल्पकारों के मौलिक शिल्प के संरक्षण के लिए आईएचसीएल के पथ्य के अंतर्गत हम यूनेस्को के साथ सहयोग कर के बहुत प्रसन्न हैं। अपने मेहमानों को इन सदियों पुरानी कलाओं की बारीकियों और विरासत से रूबरू कराना हमारे लिए गौरव का विषय है।’’
रामबाग पैलेस में प्रस्तुत किए जा रहे ये तीनों भ्रमण कार्यक्रम इस तरह से तैयार किए गए हैं की अतिथि गण जयपुर के शिल्प की जीवंत विरासत को बेहतर ढंग से अनुभव कर सकें।

ब्ल्यू पॉट्री
ब्ल्यू पॉट्री एक तुर्क-फारसी परंपरा है, जिसे जयपुर से 15 किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव सांगानेर के शिल्पकारों ने जिंदा रखा है। इसका नाम आकर्षक अल्ट्रामरीन नीली डाइ पर पड़ा है, इसे कोबाल्ट ऑक्साइड से निकाला जाता है और बर्तनों रंगा जाता है। अपरंपरागत तरीके से इसे क्वार्टज़ से बनाया जाता है न की चिकनी मिट्टी से, हर एक पीस को हाथों से बड़ी मेहनत से बनाया जाता है। शिल्पकार बहुत दक्षता से मुग़ल शैली के पैटर्न के साथ-साथ पशु-पक्षियों का रूपांकन भी प्लेट, फूलदान, चमकती टाइल आदि पर पेन्ट करते हैं।

बागरु कला
जयपुर शहर के बहुत पास है बागरु गांव जहां अत्यंत कुशल शिल्पकार बसते हैं, इनके समुदाय को छिपा कहते हैं। इन्हें ब्लॉक प्रिंटिंग और कीचड़ से बेअसर प्रिंटिग तकनीकों के लिए जाना जाता है जिसे ये 500 वर्षों से भी अधिक वक्त से करते आ रहे हैं। ये शिल्पकार शीशम की लकड़ी से बने ब्लॉक इस्तेमाल करते हैं जिन पर हाथों से पेचीदा रूपांकनों की नक्काशी की जाती है, फिर इन्हें प्राकृतिक डाइ में डुबोया जाता है उसे भी यही लोग बनाते हैं, तत्पश्चात् उन्हें टेक्सटाइल पर प्रिंट किया जाता है। दाबू तकनीक में स्थानीय स्तर पर कीचड़ का मिश्रण तैयार कर के उसे टेक्सटाइल पर रंग-प्रतिरोधी के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इस काम में काफी परिश्रम और धूप में सुखाने में बहुत समय लगता है, इसलिए यह तकनीक वक्त और मेहनत बहुत लेती है।

कालबेलिया नृत्य
कालबेलिया नृत्य उन लोगों की सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है जो पहले सपेरे हुआ करते थे, ये अक्सर गांवों व नगरों के बाहर अस्थायी डेरों में रहते हैं। इस जनजाति की महिलाएं मुख्यतः यह नृत्य करती हैं। इस नृत्य के जरिए एक सांप की गतिविधि दर्शाई जाती है जो बीन की धुन पर मंत्रमुग्ध हो नाचता है, बीन पुरुषों द्वारा बजाई जाती है। राजस्थान के परंपरागत लोक वाद्यों पर महिलाएं सुंदरता के साथ अपने खास काले लहंगे और विस्तृत आभूषणों को लहराते हुए नृत्य करती हैं, यही इस नृत्य को विशिष्ट बनाता है।

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