शब्द संसार भावनाओं का महा समुंद्र – रमा पांडेय

सम्पर्क साहित्यिक संस्थान का अंतरराष्ट्रीय संवाद कार्यक्रम आयोजित
शब्द संसार भावनाओं का महा समुंद्र – रमा पांडेय जयपुर । सम्पर्क साहित्यिक संस्थान द्वारा ऑस्ट्रिया कल्चर फोरम,रमा थियेटर नाट्य विधा एवं राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक संवाद और काव्य गोष्ठी कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम के अतिथि भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी टीकम चंद बोहरा , राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी के निदेशक बी एल सैनी, राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष दुलाराम सहारण, ऑस्ट्रेयाई लेखक पीटर रोसोई व लेखिका रमा पांडे
प्रख्यात गायिका व अभिनेत्री इला अरुण, दीपा पाण्डेय, सम्पर्क अध्यक्ष अनिल लढ़ा, समन्वयक महासचिव रेनू शब्द मुखर ने सरस्वती माता के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय लेखिका रंगकर्मी रमा पांडेय ने कहा की
” जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल बड़े लोगों का साहित्य उत्सव है लेकिन राजस्थान के सब रचनाकार मिलकर प्रयास करें तो हम अपना राजस्थान लिटरेचर फेस्टिवल भी आयोजित कर सकते हैं। रमा पाण्डेय हिन्दी ग्रंथ अकादमी सभागार जयपुर में ऑस्ट्रिया के वरिष्ठ लेखक पीटर रोसोइ के साथ उनकी नई पुस्तक पर चर्चा कर रही थी। इस दौरान पीटर रोसाई ने पुस्तक के बारे में विस्तृत जानकारी दी । संपर्क संस्थान के अध्यक्ष अनिल लड्ढा ने संपर्क की 21 वर्षों की यात्रा को सबसे साझा किया।
इस अवसर पर राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष दुलाराम सहारण ने कहा कि यह गौरव की बात है कि ऑस्ट्रिया के लेखक की किताब का हिंदी अनुवाद हुआ है और उस पर यहां चर्चा हो रही है। अकादमी का यह प्रयास रहेगा कि हिंदी में अधिकाधिक अनुवाद हों और जिस तरह ऑस्ट्रिया से लेखक यहां आकर अपनी पुस्तकों पर चर्चा कर रहे हैं वैसे ही हमारे लेखकों के दल भी अकादमी के नेतृत्व में विदेशों में जाकर अपनी कृतियों पर साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित करें। इस अवसर पर लेखक पीटर रोसोई का कहना है कि उनकी औपन्यासिक कृति ” महानगर के परतें अनदेखी वियना पर” में युद्ध के बाद जर्जर वियना के समाज , प्रदूषित हुई संस्कृति और गिरते जीवन मूल्यों की कहानी है। यह उपन्यास कल्पना से अधिक इतिहास के करीब है। लेखक के साथ हुए संवाद में लेखिका रमा पाण्डेय ने बताया कि किसी भी दूसरे देश की संस्कृति और उसके लेखक के परिवेश और मनोभावों का अनुवाद संभव ही नहीं है। इसलिए मैंने मूल जर्मन में लिखे इस उपन्यास के अंग्रेजी अनुवाद से इसका हिंदी में छायानुवाद किया है।
समन्वयक महासचिव रेनू शब्दमुखर ने बताया कि कार्यक्रम में शहर व बाहर से आये रचनाकारों ने अपनी कविताएं सुनाई व कार्यक्रम का सफल मंच संचालन संगीता गुप्ता व आभार प्रदर्शन डॉ. आरती भदोरिया ने किया। कार्यक्रम में जाने माने साहित्यकार गणमान्य हस्तियां डॉ.अमला बत्रा,डॉ. राकेश कालरा, नवल किशोर पांडे,डॉ. राकेश शर्मा, प्रोफ़ेसर अशोक मीणा, वरिष्ठ साहित्यकार कल्याण प्रसाद वर्मा उपस्थित थे।
इन्होंने सुनाई 🎤🎤🎤 कविताएं🤗
डॉ.सुशीला शील जी ने “आपने जब छुआ, डॉ स्मिता शुक्ला ने बचपन,मंदिर के भगवान बताओ ,सुरेंद्र शर्मा जी ने युवा लेखक प्रयास कोठारी ने वैश्या की वेदना को अपनी कविता में प्रस्तुत किया वही पूर्ति खरे ने “परदेशी की पीर” को प्रस्तुत किया वरिष्ठ साहित्यकार पुषोत्तम जी पुरु ने यह सही है मान लीजिए “यह जग सराय जान लीजिए” ,नेहा पारीक ने “दुनिया उहापोह में “कविता प्रस्तुत की वही युवा ,ऊर्जावान कवयित्री विजयलक्ष्मी जांगिड़ विजया ने सैनिक का अपने परिवार के नाम संदेश ,” ऐ मेरे दोस्त तू मेरे घर जाना” कविता सुना कर सभी की आंखे नम कर दी , अर्जुन ठाकुर ने तमाशा व “ज्ञानवती सक्सेना ने नारी की संवेदना को “तुम मेरी कायनात तो मैं वस्तु क्यों? राशिका ने मैं आगे बढूंगी, अनिल जैन जी द्वारा “नाम बड़े दर्शन है छोटे” कविता से जग की सच्चाई दिखाई तो डॉ.आरती भदौरिया ने नव कोपल सा शरबती सी ऋतु और आरती आचार्य ने ठूंठ एवम प्रीति जैन ने “मैं कौन हूं “कविता में स्त्री के मन की पीड़ा को व्यक्त किया,डॉक्टर अंजू सक्सेना ने मैं इश्क हूं तथा रेनू शब्दमुखर ने रिश्तों का थर्मामीटर व संगीता गुप्ता ने बसंत पर कविता सुना कर कार्यक्रम का ऊर्जापूर्ण समापन किया ।

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