तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा

dr. j k garg
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगाके उद्घोषक नेताजी जन जन के नायक महान स्वतन्त्रता सेनानीनेता जी कहते थे कि राष्ट्रवाद मानव जातिके उच्चतम आदर्शों सत्यम, शिवम, सुन्दरमसे प्रेरित होना चाहिये | उन्होंने हमेंअपने जीवन में सदेव आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी थीचाहे हमारा सफर कितना ही भयानक, कष्टदायीदुखी और बदतर हो | सुभाषबोस नेहमें संदेश दिया था कि सफलता, हमेशा असफलताके स्‍तंभ पर खड़ी होती है |जो अपनी ताकत पर भरोसा करते हैं, वो आगे बढ़तेहैं किन्तु उधार की ताकत वाले घायल हो जाते हैं | नेताजी नेबतलाया कि मेरा अनुभव है कि हमेशा आशा की कोई नकोई किरण आती है, जो हमें जीवन से दूर भटकने नहीं देती | नेताजी बारबार बोलते थे कि अन्याय और अपराध को सहना और गलत के साथ समझौता करना हैसबसे बड़े पाप हैं| भारतीयों का कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं | हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिले, हमारे अन्दरउस आजादी की रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए | एक सैनिक केरूप में आपको हमेशा तीन आदर्शों को संजोना और उन पर जीना होगा ये आदर्श हैं सच्चाई, कर्तव्य औरबलिदान | जो सिपाही हमेशा अपने देश के प्रतिवफादार रहता है, जो हमेशा अपना जीवन बलिदान करने कोतैयार रहता है, वो सिपाही अजेय है | अगर तुम भीअजेय बनना चाहते हो तो इन तीन आदर्शों को अपने ह्रदय में समाहित कर लो |आजादी के आन्दोलन क्ले समयनेताजी बोलते थे कि” हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनीचाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके! एक शहीद की मौत मरने कीइच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशस्त हो सके.” “मुझे यह नहींमालूम की स्वतंत्रता के इस युद्ध में हममें से कौन कौन जीवित बचेंगे ! परन्तु में यह जानता हूँ ,अंत में विजयहमारी ही होगी भारत में राष्ट्रवाद ने एक ऐसी सृजनात्मक शक्ति का संचार किया है जो सदियों से लोगों के अन्दर से सुसुप्त पड़ी थी .””मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि हमारे देश की प्रमुख समस्याओं जैसे गरीबी ,अशिक्षा , बीमारी , कुशल उत्पादन एवं वितरण का समाधान सिर्फ समाजवादी तरीके से ही की जा सकती है जीवन मेंप्रगति का आशय यह है की शंका संदेह उठते रहें और उनके समाधान के प्रयास का क्रमचलता रहे !””हमारी राह भले ही भयानक और पथरीली हो ,हमारी यात्राचाहे कितनी भी कष्टदायक हो , फिर भी हमेंआगे बढ़ना ही है ! सफलता का दिन दूर हो सकता है ,पर उसका आनाअनिवार्य है !”
“सुबह से पहले अँधेरी घड़ी अवश्य आती है ! बहादुर बनो औरसंघर्ष जारी रखो ,क्योंकि स्वतंत्रता निकट है ! ”
में जीवन की अनिश्च से जरा भी नहीं घबराता !””मुझे जीवनमें एक निश्चित लक्ष्य को पूरा करना है ! मेरा जन्म उसी के लिए हुआ है ! मुझेनेतिक विचारों की धारा में नहीं बहना है ! “भविष्य अब भीमेरे हाथ में है !”
मेरे जीवन के अनुभवों में एक यह भी है ! मुझे आशा है कीकोई-न-कोई किरण उबार लेती है और जीवन से दूर भटकने नहीं देती !”
हमें केवल कार्य करने का अधिकार है ! कर्म ही हमाराकर्तव्य है ! कर्म के फल का स्वामी वह (भगवान ) है ,हम नहीं!””जिस व्यक्ति में सनक नहीं होती ,वह कभी भी महान नहीं बन सकता ! परन्तुसभी पागल व्यक्ति महान नहीं बन जाते ! क्योंकि सभी पागल व्यक्ति प्रभावशाली नहींहोते ! आखिर क्यों ? कारण यह है की केवल पागलपन ही काफीनहीं है ! इसके अतिरिक्त कुछ और भी आवश्यक है !”याद रखें अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना सबसे बड़ा अपराध है एक सच्चे सैनिक को सैन्य और आध्यात्मिक दोनों ही प्रशिक्षण की ज़रुरत होती है || जी अक्सर कहते थे कि सफलता हमसे दूर जरुर हो सकती है किन्तु वह दिनअधिक दूर नहीं जब हम भी सफल होंगे | याद रखिये कि जीवन में सफलता का आना अनिवार्य ही है | नेताजी के मुताबिक मां का प्यार सबसेगहरा और है स्वार्थ रहित होता है | माँ के प्यार को मापने का कोईपैमाना हो नहीं सकता है मां की ममता और प्यार को किसी भी तरह से मापा नहींजा सकता | नेताजी ने हमकोसमझाया कि हमारे देश की प्रमुखसमस्याएं गरीबी, अशिक्षा, बीमारी, कुशल उत्पादन एवंवितरण सिर्फ समाजवादी तरीके से ही की जा सकती है | आजाद हिन्द फौज के प्रणेता क्रांतिकारी जन नायक सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को कटक के निवासी जानकीनाथ बोस प्रभावती के यहाँ हुआ था | सुभाष 14 लड़के लड़कियों में से नौवीं संतान थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा कटक में रेवेनशा कॉलेजिएट स्कूल में हुई | उन्होंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से 1919 में बीए की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की थी इस परीक्षा में उन्हें यूनिवर्सिटी में उन्हें दूसरा स्थान मिला था |1920 की आईसीएस परीक्षा में उन्होंने चौथे स्थान मिला| सुभाष का मन अंग्रेजों के अधीन काम करने का नहीं था इसलिए उन्होंने ICS से एक साल के भीतर 22 अप्रैल 1921 को त्यागपत्र दे दिया क्योंकि उनके दिल अंग्रेजों की गुलामी और भारत माता का आजाद करने का जुनून था | गुरुदेव रवीन्द्रनाथ की सलाह के अनुसार भारत वापस आने पर वे सर्वप्रथम बंबई गये और गांधीजी से मिले। वहाँ 20 जुलाई 1921 को गांधी जी और सुभाष के बीच पहली मुलाकात हुई। बहुत जल्द ही सुभाष देश के एक महत्वपूर्ण युवा नेता बन गये। नेहरूजी के साथ सुभाष ने कांग्रेस के अंतर्गत युवाओं की इण्डिपेंडेंस लीग शुरू की। 1928 में जब साइमनकमीशन भारत आया तब कांग्रेस ने उसे काले झंडे दिखाये। कोलकाता में सुभाष ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। साइमन कमीशन को जवाब देने के लिये कांग्रेस ने भारत का भावी संविधान बनाने का काम आठ सदस्यीय आयोग को सौंपा। मोतीलाल नेहेरू इस आयोग के अध्यक्ष बनाये गयेसुभाष बाबू को इस आयोग का सदस्य बनाया गया| 1930 में जब कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में लाहौर में हुआ तब इस अधिवेशन के अन्दर तय किया गया कि भारत में 26 जनवरी का दिन स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जायेगा। अपने सार्वजनिक जीवन में सुभाष को कुल 11 बार कारावास का दण्ड मिला । सबसे पहले उन्हें 16 जुलाई 1921 में छह महीने के लिये क्रष्ण मन्दिर जाना पड़ा । 1930 में सुभाष कारावास में ही थे कि चुनाव में उन्हें कोलकाता का महापौर चुना गया। इसलिए सरकार उन्हें रिहा करने पर मजबूर हो गयी। वे जब कलकत्ता महापालिका के प्रमुखख अधिकारी बने तो उन्होंने कलकत्ता के रास्तों का अंग्रेजी नाम हटाकर भारतीय नाम पर कर दिया |1934 ई. में सुभाष अपना इलाज कराने के लिए ऑस्ट्रिया गए थे | उस समय उन्हें अपनी पुस्तक टाइप करने के लिए एक टाइपिस्ट की जरूरत थी | उन्हें एमिली शेंकल नाम की एक टाइपिस्ट महिला मिली | उन्होंने से सन् 1942 में बाढ़ गस्टिन नामक स्थान पर हिन्दू रीति रिवाजके अनुसार एमिली शेंकल से विवाह किया। एमिली शेंकल से उनकोपुत्री रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम अनीता रक्खा | सुभाष ने उसे पहली बार तब देखा जब वह मुश्किल से चार सप्ताह की थी। 1938 में हरिपुराअधिवेशन में कांग्रेसअध्यक्ष पद के लिए चुना गया । इस अधिवेशन में सुभाष का अध्यक्षीय भाषण बहुत हीप्रभावी हुआ। । 3 मई 1939 को सुभाष नेकांग्रेस के अन्दर ही फॉरवर्ड ब्लाक के नाम से अपनी पार्टी की स्थापना की। कुछ दिन बाद सुभाष को कांग्रेस से ही निकाल दिया गया। बंगाल की भयंकरबाढ़ में घिरे लोगों को उन्होंने भोजन, वस्त्र और सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने कासाहसपूर्ण काम किया था | समाज सेवा का काम नियमित रूप से चलता रहे इसके लिएउन्होंने ‘युवक-दल’ की स्थापना की |द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन किया था उनके द्वारादिया गया जय हिन्द का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। उन्होंने भारतवासियों को”तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा” का नारा दिया था जो आज भीहमारे मन मस्तिष्क में गूंज रहा है | 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बोस ने आजादहिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकारबनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्छेको और आयरलैंडसमेत 11 देशों ने मान्यता दी।जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये। सुभाष उन द्वीपोंमें गये और उनका नया नामकरण किया। 6 जुलाई 1944 को उन्होंने रंगूनरेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी किया जिसमें उन्होंने इसनिर्णायक युद्ध में विजय के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं | इस भाषण के दौराननेताजी ने गांधीजी को राष्ट्रपिता कहा तभी गांधीजी ने भी उन्हे नेताजी कहा, तभी से उन्हें नेताजीकहा जाने लगा । नेताजी ने कहा था कि हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपनेखून से चुकाएं | हमें अपने बलिदान औरपरिश्रम से जो आज़ादी मिले, हमारे अन्दर उसकी रक्षाकरने की ताकत होनी चाहिए | सुभाष बाबू ने कहा था “याद रखिए सबसे बड़ाअपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है |नेताजी कहा करते थे किएक सैनिक के रूप में उनको आपको हमेशा सच्चाई, कर्तव्य और बलिदान जेसेतीन आदर्शों को संजोना और उन पर जीना होगा |
23 अगस्त 1945 को टोक्यो रेडियो ने बताया कि सैगोन में नेताजी एक बड़ेबमवर्षक विमान से आ रहे थे कि 18 अगस्त को ताइहोकू हवाई अड्डे के पास उनकाविमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। विमान में उनके साथ सवार जापानी जनरल शोदाई, पायलट तथा कुछ अन्य लोगमारे गये। नेताजी गम्भीर रूप से जल गये थे। उन्हें ताइहोकू सैनिक अस्पताल ले जायागया जहाँ उन्होंने अंतिम श्वास ली और नेताजी पंच महाभूतों में विलीन हो गये।सितम्बर के मध्य में उनकी अस्थियाँ संचित करके जापान की राजधानी टोक्यो के रेगोंजीमंदिर में रख दी गयी भारतीय महालेखाकार से प्राप्त दस्तावेजों केअनुसार नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू के सैनिकअस्पताल में रात्रि ग्यारह बजे हुई थी। आजाद हिन्द फौज के माध्यम से भारत कोअंग्रेजों के चंगुल से आजाद करने के नेताजी का प्रयास हालांकि प्रत्यक्ष रूप मेंसफल नहीं हो सका किन्तु उनका दूरगामी परिणाम हुआ। सन् 1946 के नौसेना का विद्रोह इसका जीता जागता प्रमाणहै। नौसेना विद्रोह के बाद ही ब्रिटेन को विश्वास हो गया कि अब भारतीय सेना के बलपर भारत में शासन नहीं किया जा सकता और भारत को स्वतंत्र करने के अलावा उनके पासकोई दूसरा विकल्प नहीं बचा।आजाद हिन्द फौज को छोड़कर विश्व-इतिहासमें ऐसा कोई भी दृष्टांत नहीं मिलता जहाँ तीस-पैंतीस हजार युद्धबंदियों ने संगठितहोकर अपने देश की आजादी के लिए ऐसा प्रबल संघर्ष छेड़ा हो।सुभाषचंद्र बोस के उनके संघर्षों और देश सेवा के जज्बे के कारण ही महात्मा गांधी ने उन्हेंदेशभक्तों का देशभक्त कहा था | जन जन के दुलारेनेताजी के 23 जनवरी 2022को समूच राष्ट्र उनके 126 वें जन्मदिन पर उनके श्री चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करता है |

डा. जे. के. गर्गपूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा जयपुर

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