तुलसीमाला निर्माण की मशीनों में नवीन तकनीक का किया समावेश

Tulsi Mala photos (4)improved tulsi malaभरतपुर जिले में तुलसीमाला निर्माण का कार्य करने वाली महिलाओं को परम्परागत मशीन से कम उत्पादन मिलने और मशीन पर काम करते समय शारीरिक समस्याओं से निजात दिलाने के लिए लुपिन ह्यूमन वैलफेयर एण्ड़ रिसर्च फाउण्डेशन ने आई.आई.टी., नई दिल्ली के सहयोग से तुलसीमाला बनाने की नवीनतम तकनीक पर आधारित मशीन तैयार कराई हैं जो कम श्रम में अधिक उत्पादन देने के साथ महिलाओं को होेने वाली समस्याओं से भी निजात दिलाएगी।
लुपिन के अधिशाषी निदेशक सीताराम गुप्ता ने बताया कि भरतपुर जिले में तुलसीमाला निर्माण का कार्य मुख्य रूप से कांमा, डीग, नदबई, कुम्हेर तहसील क्षेत्रों में होता है। इस कार्य में करीब दो हजार महिलाऐं तुलसीमाला निर्माण कर अपना जीवनयापन कर रही हैं। भरतपुर जिले के आसपास उत्तरप्रदेश के मथुरा, वृन्दावन, नन्दगांव, बरसाना जैसे धार्मिक स्थल होने की वजह से तुलसीमालाओं की काफी मांग बनी रहती है। इस दृष्टि से यह कार्य लुपिन ह्यूमन वैलफेयर एण्ड़ रिसर्च फाउण्डेशन के सहयोग से पिछले कई वर्षों से किया जाता रहा है।
तुलसीमाला निर्माण में काम आने वाली परम्परागत मशीनों से एक महिला औसतन 30 से 40 माला बना पाती थी। जिससे उसे अपने घरेलू कामकाज के बाद 60 से 80 रुपये आसानी से मिल जाते थे। इस मशीन पर कार्य करते समय महिलाओं को शारीरिक दर्द जैसी समस्याऐं भी रहती थीं। इन सभी को देखते हुए लुपिन ह्यूमन वैलफेयर एण्ड़ रिसर्च फाउण्डेशन ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान(आई.आई.टी.), नई दिल्ली के रूरल टैक्नोलॉजी अपगश्ेडेशन यूनिट से सम्पर्क किया। इस यूनिट को लुपिन की डीग व नदबई तहसील की तुलसीमाला बनाने वाली 5 महिलाओं ने नई दिल्ली जाकर परम्परागत मशीनों में आने वाली समस्याओं की जानकारी दी। जिस पर यूनिट के प्रभारी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भरतपुर जिले में आकर इन मशीनों की समस्याओं को जानकर नवीन तकनीक के आधार पर तुलसीमाला निर्माण की मशीनें तैयार कीं।
नवीन तकनीक के आधार पर तैयार की गई मशीनें परम्परागत मशीनों के मुकाबले चार गुना अधिका तुलसीमाला निर्माण के साथ ही महिलाओं को होने वाली शारीरिक समस्याओं से निजात दिलाने में सहायक है। अब एक मशीन से प्रतिदिन महिलाऐं 200 से 250 मालाओं के मोती आसानी से बना लेती हैं और इन मोतियों को विभिन्न डिजायनों में पिरोकर तुलसीमालाऐं तैयार की जाती हैं। नवीन तकनीक पर आधारित बनाई गई तुलसीमाला की मशीनें बैटरी व बिजली से संचालित होती हैं ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में इनका आसानी से उपयोग हो सके। इसके साथ ही इन मशीनांें पर तैयार होने वाले तुलसीमाला के मोतियों की पॉलिश भी मशीन ही कर देती है ताकि महिलाओं का श्रम काफी बच जाता है। इन नवीन तकनीक पर आधारित मशीनों का निर्माण बैलारा गांव की श्रीमती ओमवती ने शुरू कर दिया है। एक मशीन की कीमत करीब दो हजार रुपये है। जिस पर लुपिन ह्यूमन वैलफेयर एण्ड़ रिसर्च फाउण्डेशन अनुदान भी देती है।
तुलसीमाला उत्तरप्रदेश के धार्मिक स्थलों पर विक्रय के अलावा अब राजस्थान के श्रीनाथद्वारा, गुजरात के द्वारकाधीश, महाराष्ट्र के शिरडी सांई मन्दिरों पर भी बेचे जाने लगी है। कुछ वर्षों से तो भरतपुर में निर्मित तुलसीमालाओं का अमेरिका के लिए निर्यात भी शुरू कर दिया गया है।
इन नवीन तकनीक पर आधारित मशीनों का वितरण प्रथम चरण में भरतपुर के जिला कलक्टर नीरज के. पवन ने किया है। जिसमें पांच महिलाओं को तुलसीमाला निर्माण की मशीनें प्रदान की हैं।
रामचरण धाकड़
सूचना एवं जनसम्पर्क केन्द्र, भरतपुर

Kalyan Singh Kothar, Media Consultant, Phone: 9414047744

 

6 thoughts on “तुलसीमाला निर्माण की मशीनों में नवीन तकनीक का किया समावेश”

  1. हमे भी तुलसी माला बनाने की मशीन चाहिये

  2. तुलसी माला बनाने की मशीन चाहिए

    कितने में आएगा बताये

  3. नमस्कार सर, तुलसी माला मशीन प्राप्त करने के लिए, कहा पर जाना पड़ता है? ओर ईसका किमत कितना रुपया है, वर्तमान में. कया हम अनलाईन प्रा
    प्त कर सकते हैं?

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