सिंधी समुदाय नव हिंदू वर्श के आरंभ में चैत्र माह की प्रतिपदा यानि चेटीचंड को इस्ट देव झूलेलाल जी की जयंती बडे उत्साह के साथ मनाता है। इसके अतिरिक्त सिंधी समुदाय हर माह की अमावस्या के बाद पहली चांद रात यानि शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा या द्वितीया को चांद उत्सव मनाता है। इसी दिन माह की षुरूआत मानी जाती है। यह उत्सव चंद्र दर्शन से जुड़ा होता है और इसका धार्मिक, सांस्कृतिक व आध्यात्मिक महत्व होता है। आराध्य देव झूलेलाल जी को भी इस दिन विशेष पूजा अर्पित की जाती है। वस्तुतः सिंधी संस्कृति में चांद का विशेष महत्व है। सिंध प्रदेश, जो कि अब पाकिस्तान में है, में चांद की पूजा और चंद्र दर्शन को शुभ माना जाता था। यह परंपरा विभाजन के बाद भी भारत व दुनिया भर के सिंधी समुदायों में जीवित है। यह उत्सव एक प्रकार का धन्यवाद होता है। ईश्वर व प्रकृति को एक और माह की शुरुआत के लिए आभार प्रकट करने का तरीका। इस दिन सिंधी परिवार एकत्र होते हैं, चंद्रमा के दर्शन करते हैं, प्रार्थना करते हैं और फिर मिठाई या विशेष व्यंजन बना कर एक-दूसरे को बांटते हैं। सभी छोटे बडों का आषीर्वाद लेते हैं। इससे समाज में भाईचारा बढता है। एक गहरा रहस्य ये है कि चंद्रमा मन, शांति और संतुलन का प्रतीक है। चांद उत्सव में लोग ध्यान, प्रार्थना और सकारात्मक ऊर्जा के लिए चंद्रमा से जुड़ते हैं।
