सिर्फ किशोर होने के आधार पर न मिले सजा से छूट

सामूहिक दुष्कर्म कांड में आरोपी नाबालिग को किशोर होने का लाभ न दिए जाने की मांग वाली दो याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिकाओं में कहा गया है कि नाबालिग के मामले में शारीरिक उम्र के बजाए अपराध की गंभीरता और अभियुक्त की परिपक्वता को प्राथमिकता दी जाए। इतना ही नहीं उसकी मानसिक जांच कराई जाए और जांच में मानसिक विकृति पाए जाने पर उसे किशोर वय का लाभ देकर न छोड़ा जाए। ये याचिकाएं दिल्ली की लेखिका शिल्पा अरोड़ा शर्मा व चंडीगड़ के वकील सलिल बाली ने दाखिल की हैं। न्यायमूर्ति केएपी राधाकृष्णन व न्यायमूर्ति दीपक मिश्र की पीठ ने याचिकाओं पर सुनवाई के बाद केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में याचिकाओं का जवाब मांगा है।

सलिल बाली ने अपनी याचिका पर स्वयं बहस करते हुए कहा कि दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म कांड में नाबालिग का मामला सिर्फ उसकी शारीरिक उम्र के आधार पर न तय हो बल्कि अपराध की गंभीरता और अभियुक्त की परिपक्वता को ज्यादा प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सलिल ने जुविनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 2 को चुनौती दी है जबकि शिल्पा की ओर से वकील विवेक नारायण शर्मा ने बहस की।

विवेक की दलील थी कि नाबालिग अभियुक्त की डाक्टरों के एक पैनल से मानसिक जांच कराई जाए और अगर जांच में अभियुक्त मानसिक रूप से विकृत (साइकोपैथ) पाया जाता है तो उसे जुविनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 16 का लाभ देकर न छोड़ा जाए। विवेक का कहना था कि मानसिक विकृत किशोर अपराधी को समाज में खुला छोड़ देना खतरनाक होगा।

शिल्पा शर्मा की याचिका में किशोर अपराधियों को मानसिक विकृति के आधार पर श्रेणी में बांटने की बात कही गई है। याचिका में मेरठ के मानसिक विकृति के शिकार अपराधी सलीम कुरैशी का उदाहरण दिया गया है जिसे हत्या करने में मजा आता था और इसलिए उसने न सिर्फ करीब 250 लोगों की हत्या की बल्कि अपना एक गैंग भी बनाया था। याचिका में मानसिक विकृति में निठारी कांड का भी उदाहरण दिया गया है। शिल्पा की याचिका में जुविनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 16 को निरस्त करने की मांग की गई है।

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