एक निष्पक्ष आकलन- इस लेख को पढ़ने के बाद कुछ लोग शायद मुझे अरविन्द केजरीवाल का भक्त कहे और कुछ शायद मोदी का मगर मेरा इरादा बड़ा नेक है, दिल्ली विधानसभा चुनाव की चुनावी बिसात में एक आम आदमी के नाते मेरा बड़ा ही स्पष्ट और उन्मुक्त विश्लेषण यहाँ पेश कर रहा हूँ| कुछ लोगो के हिसाब से श्रीमती किरण बेदी का ऐनवक्त पर मुख्यमंत्री की प्रत्याशी भाजपा की तरफ से घोषित करना अमित शाह की एक कूटनीतिक चाल है और इसका फायदा भाजपा को हो सकता है मगर मेरे हिसाब से न सिर्फ किरण बेदी और शज़िआ इल्मी का भाजपा में शामिल होना भाजपा के लिए बहुत बड़ी गलती साबित हो सकती है… कई अनुभवी लोग इसे मेरी बचकाना सोच कहे मगर कही न कही अरविन्द केजरीवाल ने बाज़ी मार ही ली है. अगर सीधी नज़रो से देखा जाये तो ये अमित शाह की बड़ी ही या ये कहे कि राजनीतिक तौर पर अभूतपूर्व चाल है मगर पूरा श्रेय अरविन्द केजरीवाल हो ही जाता है. संभव है राजनीती को एक या ज्यादा वर्ष से जानते हुए अरविन्द इतने तो गुण सिख ही गए है कि अपने लोग विरोधी पार्टी में घुसा के कैसे हवा के रुख को अपनी और मोड़ा जाये । निश्चित ही कहना पड़ेगा कि कही न कही अरविन्द ने रणनीतिक जीत तो हासिल कर ही ली हैं परिणाम चाहे जो भी हो भाजपा का मुख्यमंत्री उम्मीदवार कभी न कभी अन्ना आंदोलन का हिस्सा था और जनरल वी के सिंह के बाद उसका आना कही न कही भाजपा की कांग्रेस से कम गन्दी राजनीति को साफ़ करने का अरविन्द का मकसद पूरा करता नज़र आ रहा है.| खैर सारा मसला स्वच्छ राजनीति और गवर्नेंस का है… हो सकता है इसी बहाने अरविन्द को पूर्ण बहुमत भी मिल जाये, गर नहीं भी मिले तो कम से कम बेदी दिल्ली को अरविन्द के नज़रिये से सुधार ही देंगी । और अगर अरविन्द आये तो संभव है सारा ठिकरा बेदी पर ही फूट जाएगा हार का भी । कहना पड़ेगा भाजपा की या अमित शाह की सोच का या फिर ये कहे की अरविन्द की छिपी हुयी बात का । खैर ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा की सत्ता किसे मिलेगी मगर अब चाहे किसी को भी मिले सोच तो अन्ना आंदोलन के सिपाहियों की ही रहेगी जो किरण बेदी में भी शायद है
Bhupendra singh