अनदेखी पर आंसू बहा रही नवाबों की नगरी

Sunehari Kothiटोंक- मुझे लोग नवाबों की नगरी के नाम से जानते हैं। छोटी-मोटी यादों को अपने में संजोये सालों से मैं दूसरों के भरोसे जीता आ रहा हूं। मुझे याद रखने की बड़ी दास्तां तो कोई खास नहीं, पर मुझे प्रदेश में सबसे गरीब जिले के नाम से भी धनी लोग अक्सर पुकारते रहते हैं। पड़ौसी जिलों के लिए मेरी सबसे बड़ी उपयोगिता मुझसे होकर गुजर रही बनास नदी से है। इसकी बजरी कही जाने वाली मिट्टी को मेरे शहरवासी और पड़ौसी जिलों के अमीर और गरीब लोग अपने रहने के लिए आशियाने बनाने में काम ले रहे हैं। इस मिट्टी से सरकार भी लोगों से लाखों का राजस्व वसूल कर अपनी तिजोरी भर रही है। लेकिन मेरा विकास करने, मुझे संवारने, मेरी पुरा सम्पत्तियों को पुनर्जीवित करने के कभी सराहनीय प्रयास नहीं किए। प्रदेश के कई जिलों को पेयजल उपलब्ध कराकर प्यास बुझा रहा मेरा बीसलपुर भी आज दुरस्तीकरण की बाट जोह रहा है। लेकिन सरकारी आदतों से मजबूर सरकार बिना हादसों के सबक लेने को तैयार ही नहीं है। इसका कुछ हिस्सा भी जर्जर होने की स्थिति में है। जो सालों-साल बढ़ता जा रहा है। जब भी इस पर इंद्रदेव की मेहरबानी होती है तो इसके एक हिस्से के डूब क्षेत्र में आने वाले ग्रामीणों को ये सरकार के कर्मचारी तितर-बितर करने से नहीं चूकते। आखिर ऐसे ही कब तक तड़पता रहूंगा मैं? कब लेगा मेरी कोई सुध?
hadi_rani_baoriमेरा यह दर्द तो दिनों-दिन और बढ़ता जा रहा है। कुछ ग्रंथों और पुराणों के अनुसार अगर आप मानों तो मेरे कई गांवों और धार्मिक स्थानों का विशेष स्थान है। प्राचीन काल में नवाबों के शासन में मैं अगर आपको नगरफोर्ट कस्बे में स्थित मांडकला धाम का इतिहास बताऊं तो आप मेरी हंसी उड़ाएंगें। लेकिन इसका महत्त्व अजमेर के पुष्कर से भी कहीं अधिक है। जहां सर्वप्रथम ब्रह्मा मंदिर की स्थापना के प्रयास किए गए। जहां हर साल कार्तिक मास में सबसे अधिक समय तक लगने वाला मेला आयोजित होता है। ककोड़ कस्बे के पास हाथीभाटा है। देश के इतिहास में इसकी पूरी व्याख्या है। टोडारायसिंह की ख्याति प्राप्त बावड़ी को तो आप फिल्म पहले में शाहरूख खान के साथ देख चुके हैं तो इसके बारे में ज्यादा बताना जरूरी नहीं। लेकिन जरूरी मुद्दा तो यह है कि आखिर इतने ख्याति प्राप्त स्थल होने के बाद भी इनकी सुरक्षा और जीर्णोद्वार करने के लिए पुरातत्त्व विभाग और वन विभाग इस ओर ध्यान देने की जहमत तक उठाने को तैयार नहीं है। बात विभागों तक होती तो भी ठीक थी, लेकिन मेरे अपने शहरवासी और जनप्रतिनिधि भी सुध नहीं लेते। हालांकि प्रदेश सरकार व स्थानीय सरकार ने अपने प्रयासों से कई कागजी कोशिशें की है।
सरकारी वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार….
1. अरबी फारसी शोध संस्थान- वर्ष 1978 में 4 दिसंबर के दिन राजस्थान सरकार के एक ऐतिहासिक निर्णय द्वारा इस संस्थान की स्थापना हुई। इसमें 9699 मेन्यूस्क्रिप्टस, 65032 बैतुल हिकमत और 50647 प्रिंटेड किताबें संग्रहित है। देश-विदेश के शोध छात्र यहां उपलब्ध प्राचीन ग्रंथों, पांडुलिपियों व दस्तावेजों का अध्ययन करने आते हैं। संस्थान ने विभिन्न भाषाओं में 88 प्रकाशन कराए हैं। संस्थान में 8513 हस्तलिखित ग्रंथ, 31452 रेफ्रेंस बुक, 17701 रिसाले, 719 फरमान व भूतपूर्व रियासत टोंक के 65 हजार फैसलों की पत्रावलियां उपलब्ध है। संस्थान द्वारा दो वर्षीय उर्दू खुशनवीसी व ग्राफिक डिजाइन कोर्स, एक वर्षीय कम्प्यूटर डिप्लोमा कोर्स, दो वर्षीय अरेबिक डिप्लोमा कोर्स तथा एक वर्षीय मेन्यूस्क्रिप्टॉलोजी कोर्स का संचालन किया जा रहा है।
Sunehari Kothi2. सुनहरी कोठी- टोंक शहर में बड़ा कुआं के पास नजर बाग में रत्न कांच एवं सोने की झाल देक बनाई गई सुनहरी कोठी स्थित है। पूर्व में यह शीश महल और नक्श निगार के नाम से भी जानी जाती थी। यह अत्यंत मनोहारी एवं दर्शनीय है। सुनहरी कोठी की दीवार एवं छतों में कांच, रत्न जडि़त सोने की बेल बूटियां, फूल पच्चीकारी एवं मीनाकारी का कलात्मक स्वरूप आज भी आकर्षण का केंद्र है। छत व दीवारों में छोटे-छोटे दर्पण लगे हुए हैं। जिससे देखने को शीश महल का आभास होता है। इस ऐतिहासिक धरोहर को टोंक रियासत के संस्थापक नवाब अमीर खां ने बनवाना शुरू किया और चौथे नवाब इब्राहिम अली खां के कार्यकाल में इसका काम पूर्ण हुआ। मुंशी बासावन लाल शादा ने अमीर नामे में सुनहरी कोठी का उल्लेख किया है। देश-विदेश के पर्यटक आज भी सुनहरी कोठी की स्थापत्य कला को देखकर दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं।
Hathi Bhata3. पाषाण हाथी- टोंक-सवाई माधोपुर रोड पर गुमानुपरा गांव के पास चट्टान पर विशाल पत्थर को उत्कीर्ण कर हाथी बनाया गया है। इस पाषाण हाथी सड़क से गुजरते समय देखा जा सकता है। इस विशाल हाथी का निर्माण सवाई रामसिंह के काल में रामनाथ सलाट ने संख्या 1200 में किया। यह लेख हाथी के दाहिने कान पर उत्कीर्ण किया हुआ है जिसे आज भी देखा जा सकता है। बलुआ चट्टान से निर्मित होने के कारण क्षरण तेजी से हो रहा है।
4. बीसलपुर- बीसलपुर का नाम लेते ही पौराणिक और मध्यकाल के गौरवमय इतिहास के जन आस्थाओं से जुड़े पन्ने खुलने लगते हैं।
A medieval temple at Bisalpur Lake, Tonk, Rajasthan इस गांव के समीप बनास नदी के दाएं छोर पर स्थित अरावली की गुफा के अंदर बने गोकणेश्वल महादेव मंदिर के शिवलिंग पर उत्कीर्ण गाय के कान (गौकर्ण) ने इसकी महत्ता में बढ़ोतरी की है। जन मान्यता है कि यह गौकर्ण उस पौराणिक गाय का है जिसने पृथ्वी को अपने सींगों पर उइा रखा है। किंवदंतियों के अनुसार इस पौराणिक गाय का दूसरा कान बद्रीनाथ के समीप हिमाचल में स्थित शिवलिंग पर उत्कीर्ण है। महाबली रावण ने इस शिव मंदिर में शिव की उपासना की थी। आज बीसलपुर आधुनिक राजस्थान के तीर्थ के रूप में देखा जाता है। जहां विशाल बांध बना हुआ है। जो ना केवल अजमेर व जयपुर को पेयजल की आपूर्ति कर रहा है। अपितु टोंक जिले के खेतों को सिंचित कर आर्थिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।
5. डिग्गी श्री कल्याणजी- राजधानी जयपुर से करीब 75 किलोमीटर दूर मालपुरा तहसील में डिग्गी नामक छोटे से कस्बे में श्री कल्याणजी का मंदिर उन प्रमुख तीर्थ स्थलों में से है। जिसका नाम कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और कच्छ से लेकर नागालैण्ड तक जाना-पहचाना नाम है। मंदिर में प्रतिष्ठित प्रतिमा भगवान विष्णु की है। सोलहवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में निर्मित इस मंदिर के निर्माण के बाद समय-समय पर इसका जीर्णोद्वार होता रहा है। मंदिर में प्रतिहार कला का विशेष प्रभाव है। मंदिर में 9वीं, 10वीं शताब्दी की पतिहार शैली की प्रतिमाएं लगी है। जिनमें शेषशायी विष्णु की प्रतिमा विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इस मंदिर के स्थापत्य पर जहां मुगलकाल का प्रभाव स्पष्ट रूप से झलकता है तो वहीं मंदिर में ताजमहल की मानिंद संगरमर पर खुदाई तथा मुगालिया महराबें मंदिर की शोभा में चार चांद लगा रहे हैं। प्रतिदिन भक्तों की भारी भीड़ से भरे रहने वाले इस मंदिर में हर पूर्णिमा को विशाल मेले का आयोजन होता है। यहां वर्ष में 3 बार बड़ा मेला लगता है।
5. देवधाम जोधपुरिया- गांव जोधपुरिया स्थित देवधाम गुर्जर समाज का भारतवर्ष में सबसे बड़ा पौराणिक तीर्थ स्थल है। यह मांसी, बांडी एवं खोराक्सी तीन नदियों के संगम स्थल पर तथा मांसी बांध के पेटे में स्थित अति रमणीक एवं भव्य तीर्थ स्थल है। यहां यूं वर्षभर श्रद्धालुओं की बड़ी तादाद में भीड़ आती है। गौरतलब है कि ये मेले भाद्रपद शुक्ल षष्ठी एवं माघ शुक्ल सप्तमी को आयोजित किए जाते हैं। मेले में श्रद्धालु विशेषतया भगवान श्री देवनारायण के दर्शन करने तथा मंदिर के भोपे द्वारा नृत्य मुद्रा में हाथ में थाली पर बनाए जाने वाले कमल पुष्प आकृति मंचन को देखने आते हैं।
Kakor Fort6. माण्डकला (नगरफोर्ट)– माण्डव ऋषि की तपोभूमि माण्डकला नामक यह स्थान नगरफोर्ट से पूर्व में लगभग डेढ किलोमीटर दूरी पर स्थित है। देवली पंचायत समिति क्षेत्र के इस गांव में स्थित सरोवर का पुष्कर के समान धार्मिक महत्त्व है। यहां भगवान देवनारायण के मंदिर सहित 16 अन्य मंदिर चारों ओर है। यह स्थल माण्डव ऋषि की तपोस्थली रही है। जन-जन की आस्था के रूप में प्रसिद्ध इस तीर्थ स्थान पर प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर 15 दिवसीय विराट पशु मेला लगता है। श्रावण के महीने में हर सोमवार को महिलाएं व्रत रखकर यहां दूरदराज से आया करती है। माण्डकला से कुछ ही दूरी पर मुचकंदेश्वर महादेव मंदिर राजा मुचकंद द्वारा बनाया गया था। मंदिर में प्रतिष्ठापित शिवालय में लगभग चार फीट ऊंचा शिवलिंग है। माण्डकला के पास टीलों में दबा प्राचीन कस्बा नगर स्थित है। जिसके प्राचीन महलों में तीसरी शताब्दी के शिलालेख व सिक्के मिले हैं। जिन पर मालवंत जय और जय मालव गणराज्य मुद्रित है।
7. जामा मस्जिद- इस ऐतिहासिक जामा मस्जिद का निर्माण कार्य टोंक के प्रथम शासक नवाब अमीर खान ने 1246 हिजरी में शुरू करवाया था। बाद में इसे उनके बड़े पुत्र नवाब वजीरूद्दोला ने 1298 हिजरी संवत में पूरी कराया। उस समय तक केवल यह इबादत खाना ही तैयार हो पाया था। इस मस्जिद की 4 बड़ी मीनारें अपनी ऊंचाई व सुंदरता के लिए भी अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं।

-पुरूषोत्तम जोशी की रिपोर्ट

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