खुद आडवाणी ने ही बदल दिया मिजाज

adwani 6नई दिल्ली /  बीजेपी में कैंपेन कमिटी की कमान गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपे जाने के बाद आडवाणी के तेवर से बीजेपी में भूचाल आ गया था। उन्होंने पार्टी के सारे पदों से इस्तीफा दे दिया था और बेहद कड़ी टिप्पणी की थी। इसके बाद से आडवाणी बिल्कुल शांत थे। लेकिन, शनिवार को जिस जोश के साथ उन्होंने पार्टी को संबोधित किया,ऐसा लगा मानों उनकी नाराजगी थी ही नहीं। आडवाणी ने नागपुर जाकर संघ प्रमुख से कई मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की थी। संघ की तरफ से उन्हें साफ संदेश मिला था कि पहले पार्टी में एकजुटता दिखाएं। आडवाणी के इस बदले रुख से पार्टी में भी अच्छा संदेश गया है। लेकिन, बीजेपी के उन नेताओं के जेहन में क्या चल रहा होगा जो आडवाणी की उपेक्षा का हवाला देकर पार्टी पर लगातार हमला बोल रहे थे। शत्रुघ्न सिन्हा ने तो इसी हफ्ते पार्टी के खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया था। नरेंद्र मोदी का विरोध बीजेपी के कई नेता आडवाणी का सहारा लेकर कर रहे थे। अब आडवाणी के इस बदले रुख के बाद इन नेताओं की कैसी हालत होगी?

लालकृष्ण आडवाणी शनिवार को उत्साह और उम्मीद से लबरेज दिखे। पार्टी के ही फ्रंटल संगठन एससी-एसटी मोर्चा की नैशनल एग्जेक्युटिव मीटिंग में उन्होंने आने वाले लोकसभा चुनाव में न केवल रेकॉर्ड जीत हासिल करने की बात कही, बल्कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की भी जमकर तारीफ की। आरएसएस की तारीफ वाला बयान सियासी हल्कों में इसलिए सुर्खियों में है, क्योंकि माना जा रहा था कि संघ से उनके रिश्ते बहुत अच्छे नहीं थे।

कांग्रेस नाकाम, हमारा बनेगा काम
इस बार राजनीतिक माहौल पार्टी के पक्ष में है और पार्टी रेकॉर्ड तोड़ सीटें जीतेगी। वजह यह है कि यूपीए सरकार महंगाई पर काबू पाने में नाकाम रही है। बीजेपी के लिए इससे ज्यादा अनुकूल माहौल पहले कभी नहीं रहा है। आमतौर पर चुनाव से पहले होने वाले सर्वे ज्यादा भरोसा करने लायक नहीं होते हैं लेकिन इस बार इन सर्वे में भी बताया गया है कि बीजेपी को चुनाव में जीत मिलने वाली है। अनुसूचित जाति मोर्चा के कार्यकर्ताओं के उत्साह को देखकर मुझे लगता है कि बड़ी जीत पक्की है।
मुद्दा तो कांग्रेस न तय किया
बीते 3 साल में यूपीए सरकार ने बीजेपी को जिताने के लिए जितनी कोशिशें की हैं, उतनी इससे पहले कभी किसी ने नहीं की। कांग्रेस ने यह तकरीबन तय कर दिया है कि इस बार लोकसभा चुनाव में करप्शन, महंगाई और सुशासन बड़ा मुद्दा होंगे।

जाति न पूछो संघ में
संघ में जातिगत आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता। आरएसएस ने कभी भी जाति को स्वीकार नहीं किया और वह मानता है कि समाज के सभी तबके बराबर हैं। जब महात्मा गांधी ने वर्धा में आरएसएस शाखा (बैठक) का दौरा किया था तब अलग-अलग जातियों के लोगों को साथ बैठकर भोजन करते देख उन्हें हैरत हुई थी। हिंदुओं ने अपना धर्म परिवर्तन जातीय ज्यादती के चलते किया। एक वक्त में सिखों के अलावा सभी वर्गों के लोग संघ की बैठकों में शामिल होते थे लेकिन अकाली दल के साथ बीजेपी के गठबंधन के बाद सिखों ने भी इन बैठकों में शामिल होना शुरू कर दिया।

मेहनत करें, नारेबाजी नहीं
सरकार खुद भी वक्त से पहले चुनाव करा सकती है और चुनाव आयोग भी मौसम को ध्यान में रखते हुए चुनाव वक्त से पूर्व करा सकता है। ऐसे में बीजेपी कार्यकर्ताओं को बिना देर किए चुनाव की तैयारियों में जुटना होगा। नारे लगाने की नहीं, बल्कि जरूरत मेहनत करने की है और कार्यकर्ता कड़ी मेहनत पर फोकस करें।

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