महिला दिवस पर विशेष
त्रस्त हुई मानवता कितनी, कोई नारी मन से पूछे
हद है कितनी दानवता की, कोई नारी मन से पूछे
बेघर निर्वासित सी जैसे, फिरती क्यों है मारी-मारी
बाहर-भीतर क्यों है भटकी, कोई नारी मन से पूछे
दिखता है वो मानुष लेकिन, उसमें छुपा है एक अमानुष
कैसी उसकी नीयत खोटी, कोई नारी मन से पूछे
चुप रहकर सहती है सबकुछ, किससे अपना दुखड़ा रोये
जीती कितनी, कितनी मरती, कोई नारी मन से पूछे
मीठे बोल को पल पल तरसी, कड़वे बोलों का विष पीती
कैसे कैसे ताने सुनती, कोई नारी मन से पूछे
जीवन शैया पर होता है, ‘देवी’ दाह दामिनी का नित
सुलगी आहों की चिंगारी, कोई नारी मन से पूछे
–देवी नागरानी, फ़ोन: 9987938358, [email protected]