ज्योतिषीय ग्रंथों के अनुसार बृहस्पति नवग्रहों में सबसे शुभ है। यही कारण है कि गोचर में अधिकांश समय बृहस्पति की स्थिति लोगों के लिए शुभ भी बनी रहती है। सामान्यत: बृहस्पति ग्रह लोगों के लिए कष्टकारी नहीं होता। ऊपर से जब बृहस्पति अपनी उच्चावस्था यानी कि कर्क राशि में हो तो लोगों को और भी शुभफल देता है।
19-जून 2014 को देवगुरु बृहस्पति कर्क राशि में प्रवेश करेंगे। यह 14-जुलाई 2015 तक कर्क में रहेंगे। बृहस्पति एक-एक राशि पर एक-एक वर्ष रहते हैं। वक्रगति होने पर इसमें अन्तर आ जाता है।
ब्रह्मांड के दो महत्वपूर्ण ग्रह गुरु और शनि 59 साल बाद एक ही समय में उच्च राशि में होंगे।
बारह साल बाद 19 जून को उच्च राशि कर्क में आने और पहले से उच्च राशि तुला में चल रहे शनि के कारण धार्मिक प्रवृत्ति और दान-पुण्य का महत्व बढ़ेगा। आमजन में सुख समृद्धि का वर्चस्व बढ़ेगा। विवाह योग्य कन्याओं के लिए ये श्रेष्ठ रहेगा।
19 जून 2014 को देवगुरु बृहस्पति के कर्क राशि में प्रवेश के समय पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र, आयुष्मान योग और चंद्रमा कुंभ राशि में विराजमान रहेंगे।
बृहस्पति धनु और मीन के स्वामी है। धनु इसकी मूल त्रिकोण राशि भी है | कर्क राशि में वह उच्च और मकर राशि में नीच के माने जाते हैं।
गुरु परम उच्च या परम नीच केवल 5 अंश तक रहते हैं।
सूर्य, चन्द्र एवं मंगल के मित्र कहे जाते हैं।
बुध और शुक्र से शत्रु भाव रखते हैं
शनि से समभाव रखते हैं।
बृहस्पति अपने स्थान से पांचवें ,सातवें और नवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है और इसकी दृष्टि को परम शुभकारक कहा गया है |
बृहस्पति मूलांक तीन के अधिष्ठाता ग्रह हैं|
जब ग्रहों का राशि परिवर्तन होता है तो उसका विशेष प्रभाव मानव जीवन पर 12 राशियों पर पड़ता है। बृहस्पति के इस गोचर का विभिन्न राशियों पर क्या असर होगा आइए जानते हैं-
गोचर फलित के अनुसार जब गुरू आपकी राशि से 1, 4, 8 या 12 वें स्थान पर आते हैं तो कष्टदायक, हानिप्रद व व्यवसाय में असफलता प्रदान करते हैं। जन्म या नाम राशि से 2,5,7,9, व 11 वें स्थान पर गुरु का भ्रमण शुभ फल देता है |
- जन्मकालीन चन्द्र से प्रथम स्थान पर गुरु का गोचर मान हानि ,व्यवसाय में बाधा,राजभय ,मानसिक व्यथा ,कार्यों में विलम्ब,सुख में कमी तथा भारी व्यय से आर्थिक स्थिति को कमजोर करता है | कर्क राशि वाले जातकों के लिए गुरु पहले भाव में गोचर कष्टदायक हो सकता है।
- मिथुन राशि के वृषभ राशि के द्वितीय स्थान पर गुरु का गोचर शुभ फल देने वाला होगा | धन लाभ ,परिवार में सुख समृद्धि, विवाह ,संतान प्राप्ति , शत्रु को हानि ,दान व परोपकार में रूचि ,चल संपत्ति में वृद्धि होगी| मान-प्रतिष्ठा बढ़ेगी, संतान-सुख प्राप्त होगा, पारिवारिक सुख, सम्पत्ति संबंधी निर्णय से लाभ मिलेगा, धार्मिक कार्यों में बढ़-चढ़ कर भाग लेंगे।
- वृषभ राशि के वृषभ राशि के तृतीय स्थान पर गुरु का गोचर शरीर पीड़ा ,सम्बन्धियों से झगडा ,राज्य से भय ,मित्र का अनिष्ट ,यात्रा में हानि तथा व्यवसाय में बाधा देने वाला हो सकता है| सोच समझ कर निर्णय लें|
- मेष राशि के जातकों के लिए चतुर्थ स्थान पर गुरु का गोचर मानसिक अशांति ,शत्रु से कष्ट, जमीन जायदाद की हानि ,माता को कष्ट तथा स्थान परिवर्तन का योग बनाता है |
- मीन राशि के जातकों के लिए पंचम स्थान पर गुरु का गोचर शिक्षा में सफलता ,संतान सुख ,पद लाभ ,पदोन्नति ,हर काम में सफलता ,सट्टे या शेयर मार्किट में लाभ का शुभ योग बना रहा है|
- कुम्भ राशि के जातकों के लिए षष्ठ स्थान पर गुरु का गोचर रोग ,राज्य से विरोध, संतान से कष्ट ,दुर्घटना का भय तथा विवाद से हानि के योग बनाता है| सावधानी रखे|
- मकर राशि के जातकों के लिए सप्तम स्थान पर गुरु के गोचर से विवाह एवम दाम्पत्य सुख की प्राप्ति , आरोग्यता , दान पुण्य व तीर्थ यात्रा में रूचि ,व्यवसाय व्यापार में लाभ तथा यात्रा में लाभ का शुभ योग बन रहा है |
- धनु राशि के जातकों के लिए अष्टम स्थान पर गुरु के गोचर से रोग, बंधन ,चोर या राज्य से कष्ट ,धन हानि ,संतान को कष्ट तथा कफ विकार हो सकता है |
- वृश्चिक राशि के जातकों के लिए नवम स्थान पर गुरु के गोचर से भाग्य वृद्धि ,धार्मिक यात्रा,संतान सुख,यश मान की प्राप्ति, सफलता, आर्थिक लाभ तथा आध्यात्मिक विचारों के श्रवण सुन्दर योग बन रहा है |
- तुला राशि के जातकों के लिए दशम स्थान पर गुरु के गोचर से मान हानि ,दीनता ,व्यवसाय में बाधा व धन हानि होने की सम्भावना बनती है|
- कन्या राशि के जातकों के लिए एकादश स्थान पर गुरु के गोचर से धन व प्रतिष्ठा की वृद्धि ,विवाह,संतान सुख ,पद लाभ व पदोन्नति ,व्यापार में लाभ ,वाहन सुख ,भोग विलास के साधनों की वृद्धि व सभी कार्यों में सफलता मिलने का उत्तम योग है |
- सिंह राशि के जातकों के लिए द्वादश स्थान पर गुरु के गोचर से आर्थिक हानि ,व्यय में वृद्धि ,अस्वस्थता ,संतान कष्ट , मिथ्या आरोप लगने का भय हो सकता है
बृहस्पति शान्ति के उपाय
जन्मकालीन गुरु निर्बल होने के कारण अशुभ फल देने वाला हो तो निम्नलिखित उपाय करने से बलवान हो कर शुभ फल दायक हो जाता है | इनकी शान्ति के लिये प्रत्येक अमावास्या को तथा बृहस्पति को व्रत करना चाहिये
रत्न धारण – पीत रंग का पुखराज सोने या चांदी की अंगूठी में पुनर्वसु ,विशाखा ,पूर्व भाद्रपद नक्षत्रों में जड़वा कर गुरुवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र के १०८(एक माला) उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप, दीप, पीले पुष्प, हल्दी, अक्षत आदि से पूजन कर लें |
पुखराज की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न सुनैला या पीला जरकन भी धारण कर सकते हैं |
केले की जड़ गुरु पुष्य योग में धारण करें |
दान व्रत ,जाप – गुरूवार के नमक रहित व्रत रखें , ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र का १९००० की संख्या में जाप करें |
गुरूवार को घी, हल्दी, चने की दाल ,बेसन पपीता ,पीत रंग का वस्त्र ,स्वर्ण, इत्यादि का दान करें |
फलदार पेड़ सार्वजनिक स्थल पर लगाने से या ब्राह्मण विद्यार्थी को भोजन करा कर दक्षिणा देने से भी बृहस्पति प्रसन्न हो कर शुभ फल देते हैं |
गुरु के अशुभ फल की शान्ति अथवा गुरु की शुभता बढाने के लिये आप गुरु गायत्री मन्त्र का जाप कर सकते हैं–
” ॐ अंगिरो जाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात्।”
इनकी शान्ति के लिये वैदिक मन्त्र-
‘ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।
यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्॥’,
पौराणिक मन्त्र
‘देवानां च ऋषीणां च गुरुं कांचनसंनिभम्।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्॥’,
बीज मन्त्र-
‘ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:।’
सामान्य मन्त्र-
‘ॐ बृं बृहस्पतये नम:’
इनमें से किसी एक का श्रद्धानुसार नित्य निश्चित संख्या में जप करना चाहिये। जप का समय सन्ध्याकाल तथा जप संख्या 19000 है।
aniljain 1st sept 1949 at dhampur distt bijnore U P .@0035 hours , kripa karke mere bare me kuch batane ka kast kare , aapka atayant abhari honga
good v nice.
mara name ashish hi but date of bairts.9.3.1980
time 2.15 satarday sunday jalliya 2 ajmer [rajathan]
mem aap ka contact nu dijiye na .. ghrh phenne ke bare me detail me puchna tha aap se…..