यह सच है कि ज्यादातर लोगों की अधिकांश चिंताएं आर्थिक मामलों को लेकर होती हैं। किसी को बिजनेस की चिंता तो किसी को नौकरी और बॉस का डर। इस चिंता का सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पडता है। कभी-कभी तमाम प्रयासों के बाद भी हम कार्यस्थल से तनाव लेकर वापस लौटते हैं। इसका कारण हमारे कार्यस्थल का कोई वास्तुदोष भी हो सकता है।
अगर हम अपने तन-मन को स्वस्थ रखना चाहते हैं, तो आवश्यक है कि अपने कार्यस्थल का वास्तु दुरूस्त रखें। आइए जानते हैं, वास्तु सम्मत कार्यस्थल कैसा होना चाहिए।
जहां कहीं व्यावसायिक स्थल वास्तुशास्त्रानुसार नहीं है, उसे जहां तक संभव हो सके सुधारा जाना चाहिए। अगर सुधार संभव न हो तो, ऐसे स्थल को त्याग देने में ही भलाई है। हालांकि बहुमंजिला इमारतों के निर्माण में अधिकांश वास्तु-सिद्धांतों का अनुसरण करना मुश्किल होता है। फिर भी यदि निर्माण वास्तु सम्मत किया जाता है, तो न सिर्फ भू-स्वामी को ऐसी इमारत से अधिकाधिक अर्थ लाभ होता है, बल्कि इमारत में व्यावसायिक गतिविधियां संचालित करने वाले उद्योगपतियों को भी अपेक्षित लाभ होता है।
- १: १ और १: २ के आकार के आयाताकार भूखंड व्यावसायिक प्रयोजन के लिए सर्वोचित रहते हैं। ऐसे भूखंड पर व्यावसायिक उद्देष्य से किया गया निर्माण कार्य न सिर्फ भू-स्वामी को लाभ देता है, उक्त इमारत में बिजनेस संचालित करने वाले व्यावसायियों को भी लाभान्वित करता है।
- व्यावसायिक इमारत के चारों ओर पर्याप्त खुला स्थान होना चाहिए। यहां उल्लेखनीय है कि दक्षिण, पश्चिम की अपेक्षा उत्तर, पूर्व में खुला स्थान ज्यादा रखें।
- उत्तर के खुले भाग को लॉन तथा पूर्व के भाग को पार्किंग स्थल बनाया जा सकता है।
- फर्श का ढलान दक्षिण से उत्तर की ओर तथा पश्चिम से पूर्व की ओर रखें।
- जहां तक संभव हो सके इमारत का प्रवेश द्वार दक्षिण-पश्चिम भाग में न बनाएं। इस बात का भी खयाल रखें कि मुखय द्वार इमारत के भीतर निर्मित किए जाने वाले निजी प्रयोग के ऑफिसों के प्रवेश द्वार से बड़ा हो।
- भूमिगत जलाशय अथवा ट्युब-वैल व्यवसायिक भूखंड के उत्तर अथवा उत्तर-पूर्व भाग में बनाएं, जबकि ओवरहैड वाटर टैंक को उत्तर-पश्चिम में स्थापित करें।
- दूषित पानी की निकासी अथवा बारिश के पानी के निकास की व्यवस्था उत्तर/ पूर्व दिशा में करें।
- इमारत के आसपास घने वृक्ष न लगाएं। अगर लगाए भी गए हों, तो इस बात का खयाल रखें कि उनकी छाया शाम ४ बजे तक इमारत पर न पडे।
- प्रत्येक तल पर हवा और प्राकृतिक रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था हो।
- इमारत के किसी कक्ष के साथ अगर अटैच्ड टॉयलेट का निर्माण करना हो उसे कक्ष के दक्षिणी भाग में बनाएं। स्टोर रूम का निर्माण दक्षिण अथवा पश्चिम में करना चाहिए।
- सीढियों का निर्माण मुख्य इमारत के दक्षिण/पश्चिम भाग में करें। उत्तर/पूर्व में सीढियां होना अशुभ् फल देता है। लिफ्ट का निर्माण भी दक्षिण/पश्चिम में कर सकते हैं।
- जनरेटर, ट्रांसफार्मर आदी को केवल दक्षिणी-पूर्वी कोने में रखना चाहिए।
-
भारोत्तलन मशीनें , खराद मशीनें स्टॉक और भारी चीजें दक्षिण, पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम में रखनी चाहिएं।
यदि सम्पूर्ण बेसमेंट को पार्किंग के लिए इस्तेमाल करना हो तो पश्चिम, दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम की सतह को पूर्व, उत्तर और उत्तर-पूर्व की सतह से ऊंचा रखने का प्रयत्न करें।