समाज में आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि आधुनिक जीवन शैली जीने वाले युवा अपने बुजुर्ग अभिभावकों का ख्याल नहीं रखते हंै। बेटा अपनी पत्नी और बच्चों के साथ मुम्बई, दिल्ली, बैंगलूरु, पूना आदि महानगरों में अपनी ऐशोआराम की जिंदगी जी रहे है और इधर अजमेर जैसे शहरों में बुजुर्ग माता-पिता दो वक्त की रोटी के लिए भी तरस रहे हैं। माता-पिता को दूध और सब्जी मंगाने के लिए भी पड़ौस के बच्चों की मदद लेनी पड़ती है। जो युवा अपने माता-पिता के साथ रहते हैं वे घर में कितना सम्मान करते है इसकी हकीकत तो आस-पड़ौस के लोग ही बता सकते हैं। युवा वर्ग द्वारा अपने माता-पिता का सम्मान नहीं किए जाने के कारण ही सरकार को कानून तक बनाना पड़ा है। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तो यहां तक प्रावधान किया था कि सरकारी नौकरी वाले बेटे की तनख्वाह में से पैसे काटकर सीधे उसके माता-पिता को दे दिए जाएंगे। समाज की इस हकीकत के बीच ही 10 मई को मदर्स डे मनाया गया। यानि मां के सम्मान का दिन। सोशल मीडिया पर सक्रिय शायद ही कोई व्यक्ति होगा जिसने स्वयं को सबसे ज्यादा अपनी मां का सम्मान करने वाला न बताया हो। मां की फोटो से लेकर कविता, विचार आदि इतने प्र्रेषित हुए है कि लगा कि अब समाज में कोई मां परेशान और दुखी नहीं होगी। जो मां अपने बेटे की शराब की लत से बेहद दुखी और परेशान है, उस बेटे ने भी 10 मई को मां को देवी ही माना और यह विचार प्रकट किया कि वह अपनी मां का सबसे दुलारा है। जो लोग अपने परिवार में अपने माता-पिता को साथ नहीं रखते, उन्होंने भी मां का फोटो सोशल मीडिया पर शेयर किया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि भारतीय संस्कृति में मां को एक विशाल हृदय वाली बताया गया है। बेटा कितना भी नालायक हो, लेकिन मां अपने बेटे की बुराई नहीं करेगी। हकीकत में कोई बेटा अपनी मां का कितना सम्मान करता है यह उनका आपसी मामला है, लेकिन यदि मदर्स डे पर इतना भी संकल्प हो जाए कि नशीले पदार्थो का सेवन करने वाला बेटा अपनी मां के खातिर त्याग कर दे तो मदर्स डे पर मां को इससे ज्यादा कोई खुशी हो ही नहीं सकती। एक मां यह कभी नहीं चाहेगी कि उसका बेटा सिगरेट, बीड़ी, तम्बाकू, शराब आदि नशीले पदार्थो का सेवन करे। जिन घर-परिवारों में अपने माता-पिता का सम्मान होता है वे परिवार स्वर्ग के समान हंै। भारतीय संस्कृति में तो माता-पिता का स्थान सबसे पहले माना गया है। आप चाहे कितने भी धामों की तीर्थ यात्रा कर ले अथवा कितने घंटे घर में पूजा कर लें, लेकिन यदि माता-पिता का सम्मान नहीं करते है तो ऐसे धर्म का कोई फायदा नहीं है। कोई माने या नहीं सच्चाई यह है कि एक व्यक्ति को अपने पूरे जीवन काल में सिर्फ दो व्यक्तियों की सेवा करनी होती है। एक मां और एक पिता। यदि एक व्यक्ति दो व्यक्तियों की सेवा का संकल्प ले ले तो फिर न तो सरकार को वृद्धाश्रम खोलने पड़ेंगे और न ही धनाढ्य व्यक्तियों को किसी आश्रम में जाकर बुजुर्गो को सामग्री देनी होगी। जो लोग आश्रमों में जाकर अपने दान-पुण्य की फोटो अखबारों में छपवाते हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि इससे बुजुर्ग नागरिक ही अपमानित होते है।
(एस.पी. मित्तल) (spmittal.blogspot.in) M-09829071511