हाँ मैं फेमिनिस्ट हूँ

भारती चंदवानी
भारती चंदवानी
हाँ मैं फेमिनिस्ट हूँ, पर अंधी फेमिनिस्ट नहीं। पढ़ा है मैंने सिमोन-दी-बेवर को,विर्जिनिया वुल्फ को…अपनी पहचान छुपाते हुए एलिजबेथ ब्राउनिंग का लिखना भी पढ़ा है…फेमिनिज्म के लिए अनेकों आवाजें उठते हुए भी सुना है। होना भी चाहिए…सही है। पर फेमिनिज्म की आड़ में अंधी फेमिनिज्म या बेहरूपियां फेमिनिज्म का नकाब पहनना फेमिनिज्म को गाली देने जैसा है। एंटी-शौविनिस्ट होना ठीक है पर एंटी-मेल होना किसी मानसिक विकृति का लक्षण है। फेमिनिज्म के बहाने हर समय खुद के लिए हक़ की मांग रखना आपकी कमजोर मनस्थिति को दर्शाता है। और हक़ भी कहा मांगती है बैंक काउंटर के सामने की लाइन मैं, टिकट खिड़की के सामने, पानी नहीं आने पर नगर परिषद् में जाकर मटके फोड़ते हुए नारी शक्ति का प्रदर्शन कर फिर चाहे घर जाकर अपनी बहु को ये आदेश दे की एक ही बाल्टी पानी है अपने पति के लिए रख। आवाज उठानी ही है तो तब उठाओं जब अपनी पसंद के मुताबिक जिंदगी को नहीं पाती हो,जब सपनों को चूर होते देखती हो, जब जल्दी ब्याह दी जाती हो, कभी खुल कर तो अपने विचारों को रखने की फजीहत न की है,कभी तो अपने स्त्री होने पर फक्र महसूस नहीं किया और कहती हो दुनियाँ बड़ी जालिम है, मर्द कुत्ती चीज है…खुद को इतना संवेदनशील समझती ही क्यों हो?? कभी प्रिवेंशन किया है जो क्योर की मांग करती हो!! फेमिनिज्म की आड़ में दुनियां को ये क्यों समझाना की आप कमजोर हो और एक गलत पुरुष की वजह से तमाम पुरुष जाती के विरुद्ध हो जाना और हमेशा हाय हाय करना किसी भी स्त्रीत्व के गुण के हक़ में नहीं है। पहले तो मूक बधिर हो जाना और फिर ये आरोप लगाना की हमे छला गया…कौन बेवकूफ निकला?? इतनी निसहाय इतनी कमजोर पड़ती ही क्यों हो?? फिर कहती हो समय बहुत ख़राब है, कभी इस ख़राब समय को टटोल कर देखा भी है? खुद के न बोल पाने की कमजोरी को छुपाने के लिए इल्जाम दुनियाँ पर लगाना, या खुद की वेदना को कम करने के लिए पुरुष को गाली देना कोनसा बहादूरी का काम है! बस सर फोड़ने का मन कर रहा है अंधी फेमिनिस्ट का!!
-भारती चंदवानी

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