कल के आलेख में यह स्पष्ट किया गया था कि ‘गत्यात्मक ज्योतिष’ किसी प्रकार की भविष्यवाणी करने के लिए ग्रहों की गति पर ही आधारित है। पृथ्वी को स्थिर मान लेने से उसके सापेक्ष ग्रहों की गति में प्रतिदिन भिन्नता देखी जाती है। पृथ्वी के जड चेतन या अन्य प्रकार की घटनाओं के खास व्यवहार का कारण ग्रहगति की ये विभिन्नता ही है। 40 वर्षों तक विभिन्न ग्रहों की विभिन्न गतियों का पृथ्वी पर पडनेवाले प्रभाव को देखते हुए ‘गत्यात्मक ज्योतिष’ निम्न निष्कर्ष पर पहुंचा है ….
1. अतिशीघ्री गति … ग्रह जब अतिशीघ्री होते हैं तो उन्हें अत्यधिक गत्यात्मक शक्ति संपन्न माना जाता है । ये अनायास सुख और सफलता देनेवाले ग्रह होते हैं , जिसके कारण लोग निश्चिंत या लापरवाह स्वभाव के हो जाते हैं। लोगों के जो ग्रह अतिशीघी हो उनसे संबंधित संदर्भ और उनका गत्यात्मक दशाकाल निश्चिंति भरा होता है।
2. शीघ्री गति … ग्रह जब शीघ्री होते हैं तो उन्हें भी गत्यात्मक शक्ति संपन्न माना जाता है । ये थोडी मेहनत से अधिक सफलता देनेवाले ग्रह होते हैं , जिसके कारण लोग कम मेहनत हो जाते हैं। लोगों के जो ग्रह शीघी हो उनसे संबंधित संदर्भ और उनका गत्यात्मक दशाकाल भी अच्छा ही होता है।
3. सामान्य गति … ग्रह जब सामान्य होते हैं तो उन्हें सामान्य गत्यात्मक शक्ति संपन्न माना जाता है । ये महत्वपूर्ण ग्रह होते हैं , जिसके कारण लोग समन्वयवादी दृष्टिकोण के हो जाते हैं। लोगों के जो ग्रह सामान्य हो उनसे संबंधित संदर्भ और उनका गत्यात्मक दशाकाल महत्वपूर्ण होता है।
4. मंद गति … ग्रह जब मंदगति के होते हैं तो उन्हें कुछ कम गत्यात्मक शक्ति संपन्न माना जाता है । ये बहुत मेहनती ग्रह होते हैं , जिसके कारण लोगों का किसी भी क्षेत्र में बहुत अधिक ध्यान संकेन्द्रण होता है। लोगों के जो ग्रह मंद गतिशील हो उनसे संबंधित संदर्भ और उनका गत्यात्मक दशाकाल बहुत ही दवाबपूर्ण होता है।
5. वक्री गति …. ग्रह जब वक्री गति में होते हैं तो उन्हें कम गत्यात्मक शक्ति संपन्न माना जाता है । ये कुछ कठिनाई और असफलता देनेवाले ग्रह होते हैं , जिसके कारण लोग थोडे चिडचिडे और निराश हो जाते हैं। लोगों के जो ग्रह वक्री हो उनसे संबंधित संदर्भ और उनका गत्यात्मक दशाकाल कठिनाई भरा होता है।
6. अतिवक्री गति … ग्रह जब अतिवक्री होते हैं तो उन्हें बहुत कम गत्यात्मक शक्ति संपन्न माना जाता है । ये बहुत अधिक कठिनाई और तनाव देनेवाले ग्रह होते हैं , जिसके कारण लोग किंकर्तब्यविमूढ और अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं। लोगों के जो ग्रह अतिवक्री हो उनसे संबंधित संदर्भ और उनका गत्यात्मक दशाकाल पराधीन और लाचार होता है।
यदि गत्यात्मक शक्ति की दृष्टि से यानि सुख के नजर से देखा जाए तो अतिशीघ्री ग्रह को सर्वाधिक मजबूत और अतिवक्री ग्रह को सर्वाधिक कमजोर माना जा सकता है , पर स्थैतिक शक्ति की दृष्टि से यानि कार्यक्षमता और महत्व की नजर से देखा जाए तो सामान्य और मंद ग्रह को सर्वाधिक मजबूत माना जा सकता है , क्योकि अधिकांश ग्रहों के शीघ्री या अतिशीघ्री होने के समय का माहौल खुशनुमा होता है और उस समय जो भी जातक जन्म लें , जीवनभर खुशनुमा माहौल प्राप्त करते हैं। इसी तरह अधिकांश ग्रहों के वक्री या अतिवक्री होने के समय का माहौल कष्टदायक होता है और उस समय जो भी जातक जन्म लें , जीवनभर कष्टप्रद माहौल प्राप्त करते हैं। इन दोनो के ही विपरीत , अधिकांश ग्रहों के सामान्य या मंद होने के समय का माहौल महत्वपूर्ण और दवाबपूर्ण होता है और उस समय जो भी जातक जन्म लें , जीवनभर महत्वपूर्ण और दवाबपूर्ण माहौल प्राप्त करते हैं।