नेहरु जी को 126वीं जन्म जयंती पर श्रद्धा सुमन

Nehruस्वतंत्रता-संग्राम के आंदोलनों में अनेक बार जेल यातनाओं को सहते हुए नेहरू को अपार लोकप्रियता एवं देशवासियों का प्यार मिला|जनता ने उनकी खुशमिजाजी और बदमिजाजी को समान रूप से सहेजा|जब उन्होंने नाराज होकर तकिये फेंके तब भी और जब उन्होंने फूल-मालाएं फेंकी तब भी | युवा उनके जैसे वस्त्र पहनने लगे,उनकी तरह बोलने और लिखने लगे. इस तरह वे अघोषित प्रतिष्ठा के प्रतीक हो गये|
नेहरूजी गांधीजी को श्रद्धा की दृष्टि से देखते थे और गांधीजी अपने बेटों से भी ज्यादा स्नेह अपने अनुयायी पर बरसाते रहेम, लेकिन भविष्य के भारत के प्रति दोनों के रुझान एवं सोच में भारी अंतर था | नेहरू जहाँ धर्म-विरक्त थे, वहीं गांधी अपने विश्वासों के अनुरूप ईश्वर पर आस्था रखते थे|नेहरू भारत की पारंपरिक गरीबी से मुक्ति पाने के लिए औद्योगीकरण को ही एकमात्र विकल्प मानते थे, जबकि गांधी ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था के पक्षधर थे| जहाँ नेहरू आधुनिक सरकारों में सामाजिक-व्यवस्था को सुधारने और गतिशील बनाने की क्षमता में पूरा यकीन करते थे वहीं दुसरी तरफगांधी राज-तंत्र को शंका की नजर से देखते थे,उनका विश्वास व्यक्तियों और ग्राम-समुदायों के विवेक पर केंद्रित था | इन असहमतियों के साथ दोनों के बीच बुनियादी सहमतियां भी थीं, दोनों व्यापक अर्थ में देशभक्त थे,जिन्होंने किसी जाति,भाषा,क्षेत्र,धर्म या कि किसी भी तरह अधिनायकवादी सरकार के साथ होने के बजाय अपने को पूरे देश के साथ एकाकार कर लिया था|दोनों हिंसा और आधिनायकवाद नापसंद करते थे|दोनों अधिनायकवादी सरकारों की तुलना में लोकतंत्रात्मक सरकारों को पसंद करते थे| (सन्दर्भ–मेकर्स ऑफ मॉडर्न इंडिया : रामचंद्र गुहा)
प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू जी के योगदान को तीन भागों में बांटा जा सकता है।
(1)ऐसी शक्तिशाली संस्थाओं का निर्माण,जिनसे भारत में प्रजातांत्रिक व्यवस्था स्थायी हो सके। इन संस्थाओं में संसद एवं विधानसभायें व पूर्ण स्वतंत्र न्यायपालिका शामिल हैं।
(2 )प्रजातंत्र को जिंदा रखने के लिये निश्चित अवधि के बाद चुनावों की व्यवस्था और ऐसे संवैधानिक प्रावधान जिनसे भारतीय प्रजातंत्र धर्मनिरपेक्ष बना रहे|नेहरू जी ने साम्प्रदायिकता का विरोध करते हुए धर्मनिरपेक्षता पर बल दिया। उनके व्यक्तिगत प्रयास से ही भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया था। चूँकि हमने धर्मनिरपेक्षता को अपनाया इसलिए हमारे देश में प्रजातंत्र की जड़ें गहरी होती गईं। जहां अनेक नव-स्वाधीन देशों में प्रजातंत्र समाप्त हो गया है और तानाशाही कायम हो गई है वहीं भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक मुल्क बना ।
(3)मिश्रित अर्थव्यवस्था:——एक मध्यमार्गी राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष और सदस्य रहते हुए जवाहरलाल नेहरू समाजवादी समाज की रचना के लिए अपनी प्रतिबद्धता घोषित करते रहे|वास्तविकता तो यही है किनेहरू का विजन मॉडल राज्य की उस विकासवादी प्रतिबद्धता की घोषणा ही है,जो शोषण-विहीन समाज-रचना की बुनियादी शर्त है|अपनी समाजवादी अवधारणा को स्पष्ट करते हुए नेहरू लिखते हैं“मैं समाज से व्यक्ति संपदा और मुनाफे की भावना खत्म करना चाहता हूं|मैं प्रतिस्पर्द्धा की जगह समाज-सेवा और सहयोग की भावना स्थापित करने का समर्थक हूं|मैं व्यक्तिगत मुनाफे के लिए नहीं,उपयोग के लिए उत्पादन चाहता हूं|मैं यह बात विश्वासपूर्वक कहता हूं कि दुनिया और भारत की समस्याओं का अंत समाजवाद से ही हो सकता है, मैं इस शब्द को किसी अस्पष्ट समाजवादी की तरह नहीं समाज-वैज्ञानिक और अर्थशास्त्री की तरह काम में लेता हूं | समाजवाद केवल आर्थिक सिद्धांत ही नहीं,जीवन-दर्शन भी है| मुझे समाजवाद के सिवाय भारत की गरीबी और बेरोजगारी का अंत नजर नहीं आता|समाजवाद का अर्थ है– व्यक्ति-संपदा का उन्मूलन और व्यक्तिगत मुनाफे की जगह सहयोगी भावना के महान आदर्श की शुरुआत,इसका अर्थ है —-हमारी रुचियों,आदतों हमारी प्रवृत्तियों में बुनियादी तब्दीली|संक्षेप में एक पुरानी पूंजीवादी व्यवस्था से अलग एक नयी सभ्यता की शुरुआत“ |
गौरतलब है कि नेहरू के समय की अर्थनीतियां मिश्रित अर्थव्यवस्था पर आधारित हैं|वे लोकतंत्रात्मक छवि और समाजवादी उत्साह का मिश्रित रूप है|
अधोसंरचनात्मक एवं बुनियादी उद्योगों की सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापना——–
उस समय भारत के सामने एक और समस्या थी और वह थी बुनियादी उद्योगों के लिये वित्तीय साधन उपलब्ध करवाना। पूँजीवादी देश इस तरह के उद्योगों के लिये पूँजी निवेश करने को तैयार नहीं थे। इन देशों का इरादा था कि भारत और भारत जैसे अन्य नव-स्वाधीन देशों की अर्थव्यवस्था कृषि-आधारित बनी रहे। चूँकि पूँजीवादी देश भारत के औद्योगिकरण में हाथ बंटाने को तैयार नहीं थे इसलिये नेहरू जी को सोवियत रूस समेत अन्य समाजवादी देशों से सहायता मांगनी पड़ी और समाजवादी देशों ने दिल खोलकर सहायता दी। समाजवादी देशों ने सहायता देते हुये यह स्पष्ट किया कि वे यह सहायता बिना किसी शर्त के दे रहे हैं।समाजवादी देशों की इसी नीति के अन्तर्गत हमें सार्वजनिक क्षेत्र के पहले इस्पात संयत्र के लिये सहायता मिली और यह प्लांट भिलाई में स्थापित हुआ।

डा. जे. के. गर्ग
डा. जे. के. गर्ग
बिजली का उत्पादन पूरी तरह से सार्वजनिक क्षेत्र में रखा गया। इसी तरह इस्पात,बिजली के भारी उपकरणों के कारखाने,रक्षा उद्योग,एल्यूमिनियम एवं परमाणु ऊर्जा भी सार्वजनिक क्षेत्र में रखे गए। देश में तेल की खोज की गई और पेट्रोलियमरिफाईनरी व एलपीजीबाटलिंग का काम भी केवल सार्वजनिक क्षेत्र में रखे गये। औद्योगिकरण की सफलता के लिये तकनीकी ज्ञान में माहिर लोगों की आवश्यकता होती है। उद्योगों के संचालन के लिये प्रशिक्षित प्रबंधक भी चाहिए होते हैं।
जब पूँजीवादी देशों को यह महसूस हुआ कि यदि वे अपनी नीति पर चलते रहे तो वे समस्त नव-स्वाधीन देशों का समर्थन खो देंगे और उन्हें भारी नुकसान होगा तब उन्होंने भी भारी उद्योगों के लिये सहायता देना प्रारंभ कर दिया।
इस तरह,धीरे-धीरे हमारा देश भारी उद्योगों के मामले में काफी प्रगति कर गया। आजादी के बाद जब हमें समाजवादी देशों से उदार सहायता मिलने लगी तो हमारे देश के प्रतिक्रियावादी राजनैतिक दलों और अन्य संगठनों ने यह आरोप लगाना प्रारंभ कर दिया कि हम सोवियत कैम्प की गोद में बैठ गये हैं।
उच्च तकनीकी शिक्षा के लिये—-आईआईटी स्थापित किये गये। इसी तरह,प्रबंधन के गुर सिखाने केलिए आईआईएम खोले गए। इन उच्चकोटि के संस्थानों के साथ-साथ संपूर्ण देश के पचासों छोटे-बड़े शहरों में इंजीनियरिंग कालेज व देशवासियों के स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिये मेडिकल कालेज स्थापित किये गये।
वैज्ञानिक सोच रखने के साथ नेहरूजी प्रगति के प्रेरणा स्रोत एवं खेल प्रेमी थे— वैज्ञानिक सोच को बड़ावा देने एवं युवाओं में विज्ञान के अध्ययन की रुची जाग्रत करने हेतु नेहरू ने ‘भारतीय विज्ञान कांग्रेस’ की स्थापना की। उन्होंने अनेको बार भारतीय विज्ञान कांग्रेस में अध्यक्षीय भाषण दिया। भारत के विभिन्न भागों में स्थापित वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अनेक केंद्र इस क्षेत्र में उनकी दूरदर्शिता के स्पष्ट प्रतीक हैं।
खेलों में नेहरू की व्यक्तिगत रुचि थी। उन्होंने खेलों को मनुष्य के शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए आवश्यक बताया। एक देश का दूसरे देश से मधुर सम्बन्ध क़ायम करने के लिए 1951 में उन्होंने दिल्ली में प्रथम एशियाई खेलों का आयोजन करवाया |
योजनाबद्ध विकास हेतु पंचवर्षीय योजना की परिकल्पना——
चूँकि अंग्रेजों के शासन के दौरान देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई थी इसलिये उसे वापस पटरी पर लाने के लिये अनेक बुनियादी कदम उठाये गये। उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण था देश का योजनाबद्ध विकास। इसके लिये योजना आयोग की स्थापना की गई। स्वयं नेहरू जी योजना आयोग के अध्यक्ष बने। योजना आयोग ने देश के चहुंमुखी विकास के लिये पंचवर्षीय योजनाएं बनाईं। उस समय पंचवर्षीय योजनाएं सोवियत संघ सहित अन्य समाजवादी देशों में लागू थीं परंतु पंचवर्षीय योजना का ढांचा एक ऐसे देश में लागू करना नेहरूजी के ही बूते का था जो पूरी तरह से समाजवादी नहीं था।
गुटनिरपेक्षता के पक्षधर
दूसरे महायुद्ध के बाद विश्व दो गुटो में विभाजित हो गया था। जहाँ एक गुट का नेतृत्व अमरीका कर रहा था वहींर दूसरे गुट का सोवियत संघ। भारत ने यह फैसला किया कि वह दोनों में से किसी गुट में शामिल नहीं होगा।
इसी निर्णय के अन्तर्गत उन्होंने अपनी विदेशी नीति का आधार गुटनिरपेक्षता को बनाया। भारत द्वारा की गई इस पहल को भारी समर्थन मिला और अनेक नव-स्वाधीन देशों ने गुटनिरपेक्षता को अपनाया। गुटनिरपेक्षता की नीति की अमेरिका द्वारा सख्त निंदा की गई। हमारे देश के अंदर भी कुछ लोगों नें भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की आलोचना की और कहा कि हम समाजवादी देशों के पिछलग्गू बन गये हैं। परंतु हमारी गुटनिरपेक्षता की नीति के कारण सारी दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी और जवाहरलाल नेहरू गुटनिरपेक्ष देशों के सर्वाधिक शक्तिशाली नेता बन गये।
राज्यों का पुनर्गठन

नेहरू के समय में एक और अहम फ़ैसला भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का था। इसके लिए राज्य पुनर्गठन क़ानून (1956)पास किया गया। आज़ादी के बाद भारत में राज्यों की सीमाओं में हुआ यह सबसे बड़ा बदलाव था। इसके तहत 14राज्यों और छह केंद्र शासित प्रदेशों की स्थापना हुई। इसी क़ानून के तहत केरल और बॉम्बे को राज्य का दर्जा मिला। संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ा गया जिसके तहत भाषाई अल्पसंख्यकों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिला |
पंचशील के जनक

जवाहरलाल नेहरू ने भारत को तत्कालीन विश्व की दो महान शक्तियों का पिछलग्गू न बनाकर तटस्थता की नीति का पालन किया। नेहरूजी ने निर्गुटता एवं पंचशील जैसे सिद्धान्तों का पालन कर विश्व बन्धुत्व एवं विश्वशांति को प्रोत्साहन दिया।
नेहरूजी एक लेखक के रूप मे
नेहरुजी नेकई पुस्तकें लिखी जिनमें प्रमुख निम्न हैं——–
भारत कीखोज (डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया—1946 )
आत्मकथा (एन ऑटोबायोग्राफी—1938 )
ग्लिम्प्सेस ऑफ़ वर्ल्डहिस्ट्री—1934
पुत्री के नाम पिता के पत्र (लेटर्स फ़्रोम ए फादर टू हिज डॉटर—1929 )
मुख्यमंत्रीयों के नाम पत्र —1947 से 1964:—– नेहरूजी हर पखवाड़े(15 दिन ) मुख्यमंत्रीयों को पत्र लिखा करते थे
हमेशा बच्चों की तरह हमेशा तरोताज़ा दिखते थे चाचा नेहरू
देशभर में जवाहरलाल नेहरू का जन्म दिन 14नवंबर को बाल दिवसके रूप में मनाया जाता है। नेहरू बच्चों से बेहद प्यार करते थे और यही कारण था कि बच्चें उन्हें प्यार से चाचा नेहरू कहकर बुलाते थे। एक बार चाचा नेहरू से मिलने एक सज्जन आए। बातचीत के दौरान उन्होंने नेहरू जी से पूछा, “पंडित जी,आप सत्तर साल के हो गये हैं,लेकिन फिर भी हमेशा बच्चों की तरह तरोताज़ा दिखते हैं इसका राज क्या है?नेहरू जी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया,इसके तीन कारण हैं।
बच्चों को बहुत प्यार करता हूँ। उनके साथ खेलने की कोशिश करता हूँ,इससे मैं अपने आपको उनको जैसा ही महसूस करता हूँ।
मैं प्रकृति प्रेमी हूँ,और पेड़-पौधों,पक्षी,पहाड़,नदी,झरनों,चाँद,सितारों से बहुत प्यार करता हूँ। मैं इनके साथ में जीता हूँ,जिससे यहमुझे तरोताज़ा रखते हैं।
(3 )अधिकांश लोग सदैव छोटी-छोटी बातों में उलझे रहते हैं और उसके बारे में सोच-सोचकर दिमाग़ ख़राब करते हैं। मेरा नज़रिया अलग है और मुझ पर छोटी-छोटी बातों का कोई असर नहीं होता।” यह कहकर नेहरू जी बच्चों की तरह खिलखिलाकर हंस पड़े।
इस तरह कहा जा सकता है कि आजाद भारत में जहाँ सरदार पटेल ने अपनी सूझबूझ से सभी राजे-रजवाड़ों का भारत में विलय करवाकर एक संघटित राष्ट्र का स्वरूप दिया वहीं नेहरू ने भारत को एक शक्तिशाली आर्थिक नींव देने के लिए आवश्यक योजनायें बनाईं और उनके क्रियान्वयन के लिये उपयुक्त वातावरण भी। नेहरूजी ने अंतर्राष्ट्रीय जगत में भारत के सम्मान को शिखर तक पहुंचाया एवं उनकी नीतियों की वजह से ही देश के भीतर एक ऐसा राजनीतिक-आर्थिक एवं सामाजिक आधार निर्मित किया गया जिससे भारत की एकता,अखण्डता व प्रजातंत्र को कोई ताकत खत्म नहीं कर सकी।
निसंदेह आधुनिक भारत के निर्माण में पटेल और नेहरू दोनों का महत्वपूर्ण योगदान है।
नेहरूजी के जीवन के कुछ अनसुने प्रेरक प्रसंग
बात उस समय की है जब जवाहर लाल नेहरू किशोर अवस्था के थे। पिता मोतीलाल नेहरू उन दिनों अंग्रेजों से भारत को आज़ाद कराने की मुहिम में शामिल थे। इसका असर बालक जवाहर पर भी पड़ा। मोतीलाल ने पिंजरे में तोता पाल रखा था। एक दिन जवाहर ने तोते को पिंजरे से आज़ाद कर दिया। मोतीलाल को तोता बहुत प्रिय था। उसकी देखभाल एक नौकर करता था। नौकर ने यह बात मोतीलाल को बता दी। मोतीलाल ने जवाहर से पूछा, ‘तुमने तोता क्यों उड़ा दिया। जवाहर ने कहा, ‘पिताजी पूरे देश की जनता आज़ादी चाह रहीं है। तोता भी आज़ादी चाह रहा था,सो मैंने उसे आज़ाद कर दिया।’मोतीलाल जवाहर का मुंह देखते रह गये।
इस वर्ष (2015 )नेहरूजी की 126वीं जन्मतिथी है,उन्हें औपचारिकतावश याद करने के बजाय भारत के नवनिर्माण के महान शिल्पकार के रूप में श्रद्दाजलीं अर्पित कर उन्हें नमन करें|
-डॉ. जे. के. गर्ग
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