यों तो होली का त्योहारवसंत पंचमीसे ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बारगुलालउड़ाया जाता है। इस दिन सेफागऔरधमारका गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों मेंसरसोंखिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे,पशु-पक्षी एवं सभी नर-नारी उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों मेंगेहूँकी बालियाँ इठलाने लगती हैं। किसानों का ह्रदय ख़ुशी से नाच उठता है।
होली का पर्वफाल्गुनमासकीपूर्णिमाको मनाया जाता है (फाल्गुनमाह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं) । यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन तक मनाया जाता है। भारत-नेपाल के साथ दुनिया भर के विभिन्न देशों में जहाँ जहाँ हिन्दू रहते हैं वहां यह त्यौहार धूम धाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं!पहलेदिनदुष्कर्मों-अंहकार की प्रतीक होलिका को जलाया जाता है,जिसेहोलिका दहनभी कहते है।
इतिहासकारों का मानना है कि आर्यों में भी होली पर्व का प्रचलन था|इस पर्व का वर्णन अनेक पुरातन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है,जिनमें प्रमुख हैं—जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र,नारद पुराणऔऱभविष्य पुराणआदि|विंध्य क्षेत्रकेरामगढ़स्थान पर स्थित ईसा से 300 वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी इसका उल्लेख किया गया है।सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटकअलबरूनीने भी अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है। भारत के अनेक मुस्लिम कवियों ने अपनी रचनाओं में इस बात का उल्लेख किया है कि होलिकोत्सव को केवल हिंदू ही नहीं वरन मुसलमान भी हर्षोउल्लास के साथ मनाते हैं। सबसे प्रामाणिक इतिहास की तस्वीरें हैंमुगल कालकी हैं,इसी कालमेंअकबरकाजोधाबाईके साथ तथाजहाँगीरकानूरजहाँके साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है। अलवर संग्रहालय के एक चित्र में जहाँगीर को होली खेलते हुए दिखाया गया है। इतिहास में वर्णन है कि शाहजहाँ के ज़माने में होली कोईद-ए-गुलाबीयाआब-ए-पाशी(रंगों की बौछार) कहा जाता था।अंतिम मुगल बादशाहबहादुर शाह ज़फ़रके बारे में प्रसिद्ध है कि होली पर उनके मंत्री उन्हें रंग लगाने जाया करते थे।बूंदीसे प्राप्त एक लघुचित्र में राजा को हाथीदाँत के सिंहासन पर बैठा दिखाया गया है जिसके गालों पर महिलाएँ गुलाल मल रही हैं।
होली के सम्बन्ध में विभिन्न कहानियाँ
प्राचीन काल मेंहिरण्यकशिपुनाम का एक अत्यंत बलशाली दानव था। अपने बल के अंहकार से वशीभूत हो कर वह खुद को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु का नाम लेने पर पूर्ण पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्रप्रह्लादपरमात्मा का परमभक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर उसके पिता हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक तरह की यातनायें एवं अमानवीय कठोर दंड दिए किन्तु अपने पिता के अत्याचारों के बावजूद भक्तप्रहलाद ने ईश्वर की भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिकाको वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने होलिकाको आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे जिससे प्रहलाद आग में जल कर भष्म हो जाये | आग में बैठने पर होलिका तो जल गई किन्तु प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होलिकादहन किया जाता है। प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त होली का पर्व राक्षसीढुंढी,राधाकृष्णकेरासऔरकामदेवके पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है। कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर,नाच-गाकर लोगशिवके गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवानश्रीकृष्णने इस दिनपूतनानामक राक्षसी का वध किया था। इसी खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था।
होली के पर्व की तरह इसकी परंपराएँ भी अत्यंत प्राचीन हैं और इसका स्वरूप और उद्देश्य समय के साथ बदलता रहा है। प्राचीन काल में यह विवाहित महिलाओं द्वारा परिवार की सुख समृद्धि के लिए मनाया जाता था और पूर्णिमा के पूर्ण चंद्र की पूजा करने की परंपरा थी। वैदिक काल में इस पर्व को नवात्रैष्टि यज्ञ कहा जाता था। उस समय खेत के अध पके अन्न को यज्ञ में दान करके प्रसाद लेने का विधान समाज में व्याप्त था। अन्न को होला कहते हैं,इसी से इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा। भारतीय ज्योतिष के अनुसारचैत्रशुदीप्रतिपदाके दिन से नववर्ष का भी आरंभ माना जाता है। इस उत्सव के बाद हीचैत्रमहीने का आरंभ होता है। अतः यह पर्व नवसंवत का आरंभ तथा बंसत के आगमन का प्रतीक भी है। इसी दिन प्रथम पुरुषमनुका जन्म हुआ था,इस कारण इसे मन्वादितिथिभी कहते हैं।
होली के पर्व पर पहला कामडंडा या झंडा गाड़ना होता है। इसे किसी सार्वजनिक स्थल के चोराहे पर या घर के आहाते में गाड़ा जाता है। इसके पास ही होलिका की लकडीयां इकट्ठी की जाती है। होली से काफ़ी दिन पहले से ही यह सब तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। पर्व का पहला दिन होलिका दहन का दिन कहलाता है। कई स्थलों पर होलिका मेंभर भोलिएलाने की भी परंपरा है। भर भोलिए गाय के गोबर से बने ऐसे उपले होते हैं जिनके बीच में छेद होता है। इस छेद में मूँज की रस्सी डाल कर माला बनाई जाती है। एक माला में सात भर भोलिए होते हैं। होली में आग लगाने से पहले इस माला को भाइयों के सिर के ऊपर से सात बार घूमा कर फेंक दिया जाता है। रात को होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है। इसका यह आशय है कि होली के साथ भाइयों पर लगी बुरी नज़र भी जल जाए।लकड़ियों व उपलों से बनी इस होली का दोपहर से ही विधिवत पूजन आरंभ हो जाता है। घरों में बने पकवानों का यहाँ भोग लगाया जाता है। दिन ढलने पर ज्योतिषियों द्वारा निकाले मुहूर्त पर होली का दहन किया जाता है। इस आग में नई फसल कीगेहूँकी बालियों औरचनेकेहोलेको भी भूना जाता है। होलिका का दहन बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का सूचक है।
होली दहन केदूसरे दिन को धुरड्डी,धुलेंडी,धुरखेल याधूलिवंदनकहा जाता है,इसदिन बच्चे-बूढ़े,स्त्री- पुरुष संकोच और रूढ़ियों को भूलकरढोलक-झाँझ-मंजीरोंकी धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है।घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता एवं दुश्मनी को भूला कर आपस में प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं।रंग खेलने के बाद देर दोपहर तक ही लोग स्नान करते हैं और शाम को नए वस्त्र पहनकर सबसे मिलने जाते हैं। प्रीति भोज तथा गाने-बजाने के कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।
होली पर रंग खेलने से पहले अपने शरीर पर नारियल अथवा सरसों के तेल को अच्छी प्रकार से लगा लेना चाहिए|ताकित्वचापररंग या अन्य रसायनोंका दुष्प्रभाव न पड़े और मात्र साबुन लगाने से ही शरीर पर से रंग छुट जाये|रंग आंखों में या मुँह में न जाये इसकी विशेष सावधानी रखनी चाहिए|इससे आँखों तथा फेफड़ों को नुक्सान हो सकता है|जो लोग कीचड़ व पशुओं के मलमूत्र से होली खेलते हैं वे स्वयं तो अपवित्र बनते ही हैं दूसरों को भी अपवित्र करने का पाप करते हैं, यदि सावधानी,संयम तथा विवेक न रखाजायेतो येही रंग कभी कभार दुखद भी बन जाते हैं|
होली के दिन घरों में खीर,पूरी – पूड़े आदि विभिन्न व्यंजन बनाये जाते हैं ,गुझिया होली का प्रमुख व्यंजन है। श्रीखंड,आम या अंगूरी का श्रीखंड,मालपुआ,कांजी बड़ा,पूरन पोली,कचौरी,पपड़ी,मूंग हलवा , बेसन के सेव और दही- -बड़े भी सामान्य रूप से उत्तर प्रदेश में रहने वाले हर परिवार में बनाए व खिलाए जाते हैं।कांजी,भांगऔरठंडाईइस पर्व के विशेष पेय होते हैं पर ये कुछ ही लोगों को भाते हैं।
मनाये होली को अंहकार—दुर्व्यसनों एवं कुसंस्कारों को नष्ट करने के रूप में—
वर्तमान समय के परिपेक्ष में होली को मनाने का वांछनीय और सही तरीका और होली का महत्व
जरासोंचिए कि हिरण्यकश्यप की अपार शक्ति के आगे नन्हे-मासूम प्रह्लाद की क्या बिसात थी ?दानवी होलिका मात्र एक स्त्री नहीं थी बल्कि वह तो ईर्ष्या, अंहकार, तामसी प्रव्रतियों एवं समस्त दुष्कर्मों की प्रतिमाथी | लेकिन अंत में जीत तो भक्ति, विश्वास,दया एवं सत्य की ही हुई |
झूठ- फरेफ़, ईर्ष्या-लालच और मदान्धताका दानव आज भी हमारे वह आपके अंतस्थल में जिंदा है | झूठ- फरेफ़, ईर्ष्या-लालच और मदान्धताके महा दानव को हम मात्र भौतिक होलिका दहन के माध्यम से नहींजला सकते हैं | इन सभी बुराईयों को हमेशां के लिए नष्ट करने के लिए सर्वप्रथम हमें खुद सच्चाई, सोहार्द, स्नेह के सन्मार्ग पर चल कर अपने बच्चों तथा युवाओं के सामने एक आदर्श प्रस्तुत करना होगा अपने बच्चोंमें अच्छी शिक्षा,अच्छे संस्कारों को प्रतिस्थापित करना होगा | होली का यह पर्वमानव को भक्त प्रहलादकी तरह विघ्न बाधाओंके बीच भी ईश्वर पर अटूट निष्ठा टिकाए रखकर संसार सागरसे पार होने का संदेश देता है |
तो क्या आप भी अपने अंतर्मन और सच्चे दिल से तैयार हैं इस होलिका दहन पर अपनी बुराईयों को जला डालने का संकल्प लेने के लिए?यह सही है कि ऐसा हम-आप ऐसा एक दिन में नहीं कर सकते हैं, इसमें समय लगेगा ,परन्तु ऐसे पवित्र संकल्प को धारण करना ही कम नहीं होगा , हो सकता है हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति में शत-प्रतिशत सफल नहीं हो पाएं, हमें शीघ्र सफलता भी नहीं मिले किन्तु हम सभी को सतत प्रयास करना ही होगा |हमारे इन प्रयासों में छिपा होगा हमारी अग्रिम सफलताओं का राज| अब तय आपको ही करना है कि इस होली पर भी आप विगत वर्षों की होली के भाति सिर्फ घासफूस जलाने ही जा रहे हैं या फिर अपनी बुराइयों को जलाने का संकल्प भी लेने जा रहे हैं?
सकंलन कर्ता—-डा. जे. के. गर्ग
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