कैसे करें मन के भीतर उपजी ईर्ष्या को दूर

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
खोने के भय और असुरक्षा से ईर्ष्या पैदा होती है और फिर इन्हें और बढ़ाती है।
उन स्थितीयों को जानना जरूरी है जब मन में ईर्ष्या-डाह का जन्म होता है | ईर्ष्या का बीजारोपण होता जब कतिपय वस्तुयें अथवा सुख सुविधा एवं सम्पन्नता के तथाकथित साधन हमारे अपने पास तो नहीं हों किन्तु वैसी ही सुख सुविधाओं के साधन पास पड़ोसियों के पास मोजूद हों | ध्यान रक्खें कि चीजों, व्यक्तियों और जगहों से अनुचित लगाव भी हमारे मन में उनके खोने का भय पैदा करता है और यही भय मन में ईर्ष्या के पोधे को पनपाकर उसे विशाल पेड़ बना देता । सच्चाई तो यह भी है कि असीमित इच्छाओं के साथ हमारा लगाव ही परेशानियां पैदा करता है । ईर्ष्या तब भी पैदा होती है, जब किसी महत्वपूर्ण रिश्ते को किसी दूसरे व्यक्ति से खतरा महसूस हो। ईर्ष्या काम की जगह, शिक्षा, संपन्नता जैसी स्पर्द्धात्मक स्थितियों में भी पैदा हो सकती है।
कैसे पायें छुटकारा ईर्ष्या की भावना से ? ——ईर्ष्या की भावना को मिटाने का प्रभावशाली तरीका अपनी उपलब्धियों और लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करना है क्योंकि अपने लक्ष्यों पर अपनी उर्जा और ध्यान को केन्द्रित करने से आपके मन में उपजी असुरक्षा की भावना स्वत ही धीमें धीमें दूर होती जाती है | यह भी सच्चाई हमें ध्यान में रखनी होगी कि बचपन में तो कुछ भी पाने के लिए रोना ही काफी होता था। लेकिन युवा और बड़े होने के बाद हमें अपनी चाहत और लक्ष्य प्राप्त करने के लिए त्याग करने, अनुशासित होने और जोखिम लेने को तैयार रह कर सम्पूर्ण निष्ठा के साथ प्रयत्न करते रहने होगें वरना मन में ईर्ष्या पैदा होती रहेगी | जो वस्तु वर्तमान में आपके पास में नहीं है किन्तु वे वस्तुएं दूसरों के पास हों तब आत्मचिंतन करके उन वस्तुओं की आवश्यकता के बारे में सोचें और उनमें से नितांत जरूरी चीजों को ही प्राप्त करने के लिये सकारात्मक सोच के साथ पुरी निष्ठा के साथ कोशिश करें।
मित्रों/स्वजनों/सहकर्मियों की उपलब्धियों की प्रशंसा करें वरना यह भावना अंतत: ईर्ष्या-डाह का रूप ले लेगी। खुद को खुश रखने और दूसरों को भी खुशी देने के लिये अपने भीतर मौजूद प्रेम को बिना हिचक व्यक्त करना शुरू करें | में आपका सम्मान करता हूँ, आपसे स्नेह करता हूँ, आपका आभारी हूँ जैसे शब्दों का प्रयोग जरुर करें ऐसा करने से जहाँ आपके मित्रों/स्वजनों/सहकर्मियों को हार्दिक खुशीयाँ मिलेगी वहीं आपको विश्वास पात्र दोस्त भी मिल जायगें |
जीवन में क्रोध की जगह विनम्रता एवं सहनशीलता को अपनायें क्योंकि क्रोध ही हमारे मन में ईर्ष्या-जलन-डाह तथा भय के विशालु बीज बोता है | साधारणतया पेट की मांसपेशिया का सिकुड़ना या पेट दर्द का मुख्य कारण भय-ईर्ष्या की भावना से त्रस्त होना ही होता है | जब कभी आपके मन में ईर्ष्या की भावना उत्पन्न हो तो उसी वक्त तुरंत गहरी गहरी सांस लें और गहरी साँस को छोड़ें। सांस छोड़ते समय मन में कल्पना करें कि आपकी नकारात्मक भावनाएं धुएं के रूप में मुहं के जरिये आपके मन से बाहर निकल रही हैं।
अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहें, शरीर के प्रभावित हिस्से पर ध्यान केंद्रित कर यथा शीघ्र यथोचित उपचार करायें |

प्रस्तुतिकरण—डा.जे.के.गर्ग
सन्दर्भ—–मेरी डायरी के पन्ने, संतों के प्रवचन ,विभिन्न पत्र-पत्रिकाये आदि
Please visit our blog—-gargjugalvinod.blogspot.in

error: Content is protected !!