स्वामी विवेकानंद के इस संवाद को ध्यान से पढ़ें और दूसरों को भी भेजें—Part 2

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
2. मुशी जी ने पूछा, “इतने मजहब क्यों” ? स्वामी जी ने कहा, ” मजहब तो मनुष्य ने बनाए हैं, प्रभु ने तो केवल धर्म बनाया है।
“मुशी जी ने कहा कि, ” ऐसा क्यों है कि एक मजहब में कहा गया है कि गाय और सुअर खाओ और दूसरे में कहा गया है कि गाय मत खाओ, सुअर खाओ एवं तीसरे में कहा गया कि गाय खाओ सुअर न खाओ; इतना ही नही कुछ लोग तो ये भी कहते हैं कि मना करने पर जो इसे खाये उसे अपना दुश्मन समझो।” स्वामी जी जोर से हँसते हुए मुंशी जी से पूछे कि ,”क्या ये सब प्रभु ने कहा है ?”
मुंशी जी बोले नही,”मजहबी लोग यही कहते हैं।” स्वामी जी बोले, “मित्र! किसी भी देश या प्रदेश का भोजन वहाँ की जलवायु की देन है।
सागरतट पर बसने वाला व्यक्ति वहाँ खेती नही कर सकता, वह सागर से पकङ कर मछलियां ही खायेगा। उपजाऊ भूमि के प्रदेश में खेती हो सकती है। वहाँ अन्न फल एवं शाक-भाजी उगाई जा सकती है। उन्हे अपनी खेती के लिए गाय और बैल बहुत उपयोगी लगे। उन्होने
गाय को अपनी माता माना, धरती को अपनी माता माना और नदी को माता माना । क्योंकि ये सब उनका पालन पोषण माता के समान ही करती हैं।” “अब जहाँ मरुभूमि है वहाँ खेती कैसे होगी? खेती नही होगी तो वे गाय और बैल का क्या करेंगे? अन्न है नही तो खाद्य के रूप में पशु को ही खायेंगे। तिब्बत में कोई शाकाहारी कैसे हो सकता है? वही स्थिति अरब देशों में है। जापान में भी इतनी भूमि नही है कि कृषि पर निर्भर रह सकें।
व्हाट्सएप से साभार—डा.जे.के.गर्ग
Visit our blog—-gargjugalvinod.blogspot.in

error: Content is protected !!