अक्षय तृतीया–एक अबूझ मांगलिक एवं शुभ दिन 29 अप्रैल 2017 को

दयानन्द शास्त्री
दयानन्द शास्त्री
प्रिय पाठकों/मित्रों,अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। इसी दिन से सारे शुभ काम शुरू होते हैं अक्षय तृतीया 28 अप्रैल 2017 को सुबह 10.30 बजे से शुरू हो होगी जो 29 अप्रैल 2017 को सुबह 6.55 बजे तक ही रहेगी। पूजा का शुभ मुहूर्त 28 तारीख को सुबह 10:29 बजे से दोपहर के 12:17 बजे तक का है | अक्षय तृतीया भारतीय संस्कृृति एवं परम्परा का एक अनूठा एवं इन्द्रधनुषी त्यौहार है। न केवल जैन परम्परा में बल्कि सनातन परम्परा में यह एक महत्वपूर्ण त्यौहार है, इस त्यौहार के साथ-साथ एक अबूझा मांगलिक एवं शुभ दिन भी है, जब बिना किसी मुहूर्त के विवाह एवं मांगलिक कार्य किये जा सकते हैं। विभिन्न सांस्कृतिक ढांचांे में ढली अक्षय तृतीया परम्पराओं के गुलाल से सराबोर है। रास्ते चाहे कितने ही भिन्न हों पर इस पर्व त्यौहार के प्रति सभी जाति, वर्ग, वर्ण, सम्प्रदाय और धर्मों का आदर-भाव अभिन्नता में एकता प्रिय संदेश दे रहा है।

इस वर्ष वैशाख शुक्ल तृतीया शनिवार 29 अप्रैल 2017 को अक्षय तृतीय मनाई जाएगी। इसी दिन भगवान परशुराम का भी अवतार हुआ था। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। सनातन धर्म में वैशाख माह का अतिविशिष्ट महत्व है। उसमें अक्षय तृतीया का महत्व अतिविशिष्ट होता है। क्योंकि तृतीया तिथि की स्वामिनी माता गौरी हैं। ज्योतिषाचार्य डॉ. राजनाथ झा के अनुसार इस दिन किया गया धर्म-कर्म, दान, पूजा-पाठ, सदाचरण अक्षय रहता है। अक्षयतृतीया को ऐसी वस्तुओं का दान करना चाहिए, जो गर्मी में उपयोगी राहत प्रदान करने वाली हो। इस दिन दान उपवास करने का हजार गुना फल मिलता है। खासतौर से श्रद्धालु छाता, दही, जूते-चप्पल, जल का घड़ा, सत्तू, खरबूजा, तरबूज, बेल का शरबत, मीठा जल, हाथ वाले पंखे, टोपी, सुराही आदि वस्तुओं का दान करते हैं।

अबूझ मुहूर्त : ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य व चंद्रमा दोनों ही महत्वपूर्ण ग्रह हैं। चंद्रमा जहां मन का स्वामी व समस्त परिणामों को प्रत्यक्ष रूप से शीघ्रता से प्रभावित करते हैं, हीं सूर्य नक्षत्र मंडल के स्वामी व केंद्र हैं।दोनों प्रत्यक्ष देवों की श्रेणी में आते हैं इस बार आखातीज का पर्व दो दिन है। कई विद्वान अक्षय तृतीया को 29 को भी बता रहे हैं किंतु हिंदू धर्म सिंधु पंचांग के अनुसार यह 28 को ही मानी जाएगी। उदयकाल व उज्जैन कैलेंडर के अनुसार 29 अप्रैल को तृतीया रहेगी। पंचाग के अनुसार वैशाख शुक्ल तृतीया युगादि तिथि होती है। 29 अप्रैल को उदयकाल में तृतीया तिथि मात्र 2 घड़ी 35 पल है। अक्षय तृतीया के दिन दोनों ही ग्रह अपनी उच्च राशि में होते हैं। यही कारण है कि इस दिन अबूझ मुहूर्त होता है। हर बार की तरह इस बार भी तृतीया पर स्वयं सिद्ध मुहूर्त है जो अनंत अखंड अक्षय शुभ और मंगल फलदायक है। इस दिन जिसका भी परिणय संस्कार होगा उसका सौभाग्य अखंड रहेगा। इस दिन महालक्ष्मी की विशेष पूजा से विशेष धन प्राप्ति के योग बन रहे हैं अत: इस शुभ अवसर का लाभ उठाया जाना चाहिए। यह पर्व 17 साल बाद अमृतसिद्धि योग में 29 अप्रैल को मनाया जाएगा।

भविष्य पुराण में लिखा है कि इस दिन से ही सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ हुआ था। भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। माना जाता है कि ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव इसी दिन हुआ था। शास्त्रों में अक्षय तृतीया को युग की प्रारंभिक तिथि व कल्प की आदि तिथि माना जाता है । इस दिन सभी देवताओं व पित्तरों का पूजन किया जाता है। दस महाविद्याओं में भगवती पीतांबरा (बगलामुखी) के अनन्य साधक परशुरामजी ने अपनी शक्ति का प्रयोग सदैव कुशासन के विरुद्ध किया। निर्बल और असहाय समाज की रक्षा के लिए उनका कुठार अत्याचारी कुशासकों के लिए काल बन चुका था। परशुरामजी का जन्म वैशाख शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि अर्थात तृतीया को रात्रि के प्रथम प्रहर में हुआ था। अतः इस दिन को परशुराम जयंती के रूप में मनाते हैं।

अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समुद्र या गंगा स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की शांत चित्त होकर विधि विधान से पूजा करने का प्रावधान है। नैवेद्य में जौ या गेहूँ का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पित किया जाता है। तत्पश्चात फल, फूल, बरतन, तथा वस्त्र आदि दान करके ब्राह्मणों को दक्षिणा दी जाती है। ब्राह्मण को भोजन करवाना कल्याणकारी समझा जाता है। मान्यता है कि इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए तथा नए वस्त्र और आभूषण पहनने चाहिए। गौ, भूमि, स्वर्ण पात्र इत्यादि का दान भी इस दिन किया जाता है। यह तिथि वसंत ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ का दिन भी है इसलिए अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घडे, कुल्हड, सकोरे, पंखे, खडाऊँ, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककड़ी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि गरमी में लाभकारी वस्तुओं का दान पुण्यकारी माना गया है। इस दान के पीछे यह लोक विश्वास है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा, वे समस्त वस्तुएँ स्वर्ग या अगले जन्म में प्राप्त होगी। इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद कमल अथवा सफेद गुलाब या पीले गुलाब से करना चाहिये।

अक्षय तृतीया अर्थात ऐसी तृतीया तिथि जिसका कभी क्षय न हो। इस दिन करने वाले कार्य का कभी क्षय नहीं होता है, चाहे वह पुण्य कार्य हो पाप कर्म। अतः अक्षय तृतीया को पुण्य कर्म करना ही लाभकारी रहता है। इस बार अक्षय तृतीया को लेकर थोड़ा भ्रम की स्थिति बनी हुई है। कुछ पंचागों में 28 अप्रैल को अक्षय तृतीया है और कुछ में 29 अप्रैल को अक्षय तृतीया है। भविष्य पुराण के अनुसार यदि अक्षय तृतीया वाले दिन कृतिका या रोहिणी नक्षत्र हो और बुधवार या सोमवार दिन हो तो प्रशस्त माना गया है। 28 अप्रैल को सुबह 10: 31 मिनट तक तृतीया है, जो 29 अप्रैल को प्रातः 6: 56 मिनट तक रहेगी। 28 अप्रैल को अपरान्ह 1: 40 मिनट तक कृतिका नक्षत्र है तत्पश्चात रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ हो जायेगा,जो 29 अप्रैल सुबह 11 बजे तक रहेगा। इस बार चतुर्थी तिथि का क्षय हो रहा है। 28 अप्रैल 2017 को 500 सालों बाद सौभाग्य योग तथा छत्र योग का संयोग बन रहा है। अत: अक्षय तृतीया पर स्नान, दान और मांगलिक कार्यों का फल कई गुना अधिक शुभ फलदायी माना जा रहा है।शुक्र गोचर में उच्च का है जो स्पष्ट संकेत दे रहा है कि इस दिन किया गया कोई भी शुभ कार्य अक्षय प्रदान करेगा। इस दिन कृतिका नक्षत्र है जो कि सूर्य प्रधान है। वर्तमान गोचर में लग्न में सूर्य उच्च का होकर बुध की युति में व्याप्त है। अतः यह तिथि अत्यंत शुभदायी है।

खरीद्दारी का शुभ मुहूर्त-28 अप्रैल मध्यान्ह 12:20 मिमट से रात्रि 10 बजे तक रहेगा और फिर 29 अप्रैल सुबह 11 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा।

मंगल की शुभता के लिए और कर्ज से मुक्ति के लिए सत्तू, लाल चंदन, गुड़, लाल वस्त्र, ताम्रपात्र तथा फल-फूल का दान मंदिर में दें।
चंद्र की शुभता और मन की शांति के लिए चावल, घी, चीनी, मोती, शंख, कपूर का दान करें।
सूर्य की शांति के लिए जौ का सत्तू, गेहूं, मसूर, घी, गुड़, शहद, मूंगा आदि का दान करें।
बुध की अनुकूलता के लिए हरा वस्त्र, मूंग दाल, हरे फल तथा सब्जी का दान करें।
गुरु की प्रसन्नता के लिए केले के पेड़ में हल्दी मिश्रित जल चढ़ाकर घी का दीपक जलाएं। केला, आम, पपीता का दान करें।
शुक्र शांति के लिए सुहागिनों को वस्त्र एवं शृंगार सामग्री देकर सम्मानित करें। सत्तू, ककड़ी, खरबूजा, दूध, दही, मिश्री का दान करें।
शनि-राहु के लिए एक नारियल को मोती में लपेटकर सात बादाम के साथ दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर में चढ़ाएं।
केतु अनिष्टकारक हो तो सप्त धान्य, पंखे, खड़ाऊ, छाता, लहसुनिया और नमक का दान करें। इसके अलावा संबंधित अशुभकारक ग्रहों के मंत्र का जाप करें।

कोई भी शुभ कार्य करने के लिए पवित्र मानी जाने वाली अक्षय तृतीया पर्व हिन्दू श्रद्धालू उपवास और दान आदि कर्म फल को अक्षय मानते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु वैशाख मास की अक्षय तृतीया को अवतरित हुये थे। भगवान विष्णु को गरीबों की सहायता करना एंव सहयोग करना बेहद प्रिय है। वर्तमान समय में अक्षय तृतीया के दिन सोना, चॉंदी एंव आभूषण खरीदना एक तरह का फैशन बन गया है। यह चलन सिर्फ व्यावसायिकता का प्रतीक और कुछ नहीं। इसका कोई शास्त्रीय आधार या उल्लेख वर्णित नहीं है।

जिन जातकों के कार्यो अड़चने आ रही हैं, या फिर जिनके व्यापार में लगातर हानि हो रही है। अधिक परिश्रम के बावजूद भी धन नहीं टिकता है एंव घर में अशान्ति बनी रहती है। सन्तान मनोकूल कार्य न करें तथा विरोधी चॅहुओर से परेशान कर रहें। जिन महिलाओं के वैवाहिक सुख में तनाव की स्थिति बनी रहती है। उपरोक्त समस्याओं से जूझ रहे जातक अक्षय तृतीया का व्रत रखकर और गर्मी में निम्न वस्तुओं जैसे-छाता, दही, जूता-चप्पल, जल का घड़ा, सत्तू, खरबूजा, तरबूज, बेल का सरबत, मीठा जल, हाथ वाले पंखे, टोपी, सुराही आदि वस्तुओं का दान करने से उपरोक्त समस्याओं से मुक्ति मिलती है। ”शुध्यन्ति दानः सन्तुष्टया द्रवयाणि” अर्थात धन दान और सन्तोष से विशुद्ध होता है।
वैशाख के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया कहते है। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार इस दिन जो भी पुण्य कर्म किये जाते है, उनका फल अक्षय होता है।

1- भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है।
2 – सतयुग और त्रेता युग का प्रारम्भ भी इसी तिथि को हुआ था।
3- भगवान विष्णु ने नर-नारायण और परशुराम का अवतरण अक्षय तुतीया को ही हुआ था।
4- ब्रह्रमा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अविर्भाव भी इसी तिथि को हुआ था इसीलिए इसको अक्षय तिथि कहते है।
5- इसी तिथि को बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजन किया जाता है और लक्ष्मी-नारायण के दर्शन किये जाते है।
6- उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध तीर्थ-स्थल बद्रीनाथ के कपाट भी इसी तिथि को खोले जाते है।

अक्षय तृतीया का पावन पवित्र त्यौहार निश्चित रूप से धर्माराधना, त्याग, तपस्या आदि से पोषित ऐसे अक्षय बीजों को बोने का दिन है जिनसे समयान्तर पर प्राप्त होने वाली फसल न सिर्फ सामाजिक उत्साह को शतगुणित करने वाली होगी वरन अध्यात्म की ऐसी अविरल धारा को गतिमान करने वाली भी होगी जिससे सम्पूर्ण मानवता सिर्फ कुछ वर्षों तक नहीं पीढ़ियों तक स्नात होती रहेगी। अक्षय तृतीया के पवित्र दिन पर हम सब संकल्पित बनें कि जो कुछ प्राप्त है उसे अक्षुण्ण रखते हुए इस अक्षय भंडार को शतगुणित करते रहें। यह त्यौहार हमारे लिए एक सीख बने, प्रेरणा बने और हम अपने आपको सर्वोतमुखी समृद्धि की दिशा में निरंतर गतिमान कर सकें। अच्छे संस्कारों का ग्रहण और गहरापन हमारे संस्कृति बने।

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री,

error: Content is protected !!