आधुनिक भारत में प्रजातंत्र की स्थापना के शिल्पकार चाचा नेहरु

Nehruआधुनिकता का मानसिकता से, मानसिकता का जागरूकता से, जागरूकता का तर्क से, तर्क का विज्ञान से,विज्ञान का प्रयोग से और प्रयोग का परिवर्तन से गहरा संबंध है | पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मानसिक जागरूकता और वैज्ञानिक दृष्टि से आधुनिक भारत की नींव भी रखी और नव-निर्माण भी किया | उस दौर में जबकि भारत को ताजा-ताजा आजादी मिली थी और आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में पं. नेहरू के समक्ष सिर्फ समस्याएँ ही समस्याएँ थीं जिनका उन्हें समाधान तो खोजना ही था, सच्चाई तो यही हे कि पंडित नेहरूजी की समाजवादी नीति के लिये अग्रेजों के चंगुल से मुक्त भारत के तात्कालीन हालात भी बड़े स्तर पर जिम्मेवार थे | पं. नेहरू की वैज्ञानिक दृष्टिï और आधुनिक सोच का ही परिणाम है कि भारत आज अंतरिक्ष को न केवल ‘टटोल रहा है बल्कि उसके रहस्यों को भी निरंतर खोल रहा है |

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
पंचशील के प्रतिपादक नेहरु जी के अंर्तराष्ट्रीय चिन्तन और मानवतावादी दृष्टीकोंण का सर्वाधिक उज्जवल पक्ष यह था कि वे विश्वशान्ति में विश्वास रखते थे। नेहरु जी का मानना था कि युद्ध का विचार जंगली और असभ्यता का विचार है। एक बार उन्होने कहा था कि यदि हमने युद्ध को समाप्त नही किया तो युद्ध हमें समाप्त कर देगा। मिस्र के राष्ट्रपति नासीर ने कहा था कि, “नेहरु जी की जिंदगी एक मशाल की तरह थी, जिससे हिन्दुस्तान, एशिया और दुनिया को रौशनी मिलती थी” | नेहरु जी के बारे में मलेशिया के प्रधानमंत्री टुंकू अब्दुल्ल रहमान का कहना था कि, “नेहरु मेरी प्रेरणा के स्रोत थे” | नेहरु ने अपनी पार्टी के सदस्यों के विरोध के बावजूद 1963 में अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ विपक्ष की ओर से लाए गए पहले अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा कराना मंज़ूर किया और उसमें सक्रिय रूप में भाग लिया |जितना समय पंडित जी संसद की बहसों में दिया करते थे और बैठकर विपक्षी सदस्यों की बात सुनते थे उस रिकॉर्ड को अभी तक कोई प्रधानमंत्री नहीं तोड़ पाया है बल्कि अब तो प्रधानमंत्री के संसद की बहसों में भाग लेने की परंपरा निरंतर कम होती जा रही है | मुझे 27 मई 1964 का ह्रदय विदारक दिन आज भी याद (उस समय में M.Sc पूर्वाध का छात्र था) जब सारा देश शोक के क्षीरसागर मैं डूब कर विलाप कर रहा था | आज 27 मई 2017 को राष्ट्र आज नेहरुजी को उनकी 53वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करता है |
प्रस्तुत कर्ता—–डॉ. जे. के. गर्ग
सन्दर्भ—मेरी डायरी के पन्ने, विभिन्न पत्र-पत्रिकायें आदि
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