2- योगाभ्यास के लिए सामान्य सिद्धान्त
योगाभ्यास करने के संबंध में योगाचार्यों द्वारा विभिन्न निर्देश एवं सिद्धान्त प्रतिपादित किए गए है। इनका पालन करने से योगाभ्यास का परिणाम सार्थक एवं बहुआयामी होता है।
अभ्यास से पूर्व वातावरण, शरीर एवं मन की शुद्धि आवश्यक है। अभ्यास शान्त वातावरण में शनै-शनै शरीर एवं मन को श्थििल करके करना चाहिए। खाली पेट अभ्यास करने से अधिक लाभ प्राप्त होता है। कमजोरी की स्थिति में गुनगुने पानी के साथ शहद का सेवन किया जा सकता है। योगाभ्यास के समय मल एवं मूत्रा से निर्वत होना चाहिए। योगाभ्यास किसी बिछावन पर तथा सूती, हल्के एवं आरामदायक वस्त्रों के साथ करना चाहिए। थकावट, बीमारी, जल्दबाजी एवं तनाव की स्थिति में योग को विराम दे देना चाहिए। गर्भावस्था, मासिक धर्म, पुराने रोग, पीड़ा एवं हृदय संबंधी विकारों में योग विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही योगाभ्यास करना चाहिए।
अभ्यास के समय आरामदायक स्थिति में शरीर एवं श्वास-प्रश्वास की सजगता से योग आरम्भ किया जाता है। विशेष निर्देश के अलावा नासिका से ही श्वसन किया जाना चाहिए। शरीर को लचीला एवं तनावमुक्त रखकर योगाभ्यास किया जाए। साधक को अपनी शारीरिक एवं मानसिक क्षमता के अनुसार ही अभ्यास करना चाहिए। अपेक्षित परिणाम के लिए नियमित अभ्यास आवश्यक है । योगाभ्यास का समापन ध्यान एवं मौन के साथ करने से आत्मिक एवं आध्यात्मिक प्रगति में तेजी आती है। अभ्यास के लगभग आधे घण्टे पश्चात ही स्नान एवं भोजन जैसे अन्य क्रियाकलाप किए जाने चाहिए।
योग शारीरिक, स्नायु एवं कंकाल से संबंधित कार्यों के साथ-साथ हृदय और नाड़ियों के स्वास्थ्य के लिए भी हितकर होता है। यह मधुमेह, श्वसन, रक्तचाप एवं जीवनशैली के विकारों के प्रबंधन में भी अहम भूमिका निभाता है। योग अवसाद, थकान, चिंता, तनाव को कम करने में सहायक होता है। यह मासिक धर्म को नियमित करता है। योग शरीर एवं मन के निर्माण की ऐसी प्रक्रिया है जो समृद्ध और परिपूर्ण जीवन की उन्नति का मार्ग है।
संतोष प्रजापति
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