प्रथ्वी पर भगवान के देवदूत—पापा—-Part 1

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
क्या हम जानते हैं कि भगवान को परमपिता क्यों कहते है ? क्योंकि भगवान ही सारे ब्रह्मांड की सारी जिम्मेदारीयां निरपेक्ष भाव से निभाते हैं | अपनी समस्त जिम्मेदारीयां निभाने का अर्थ ही पिता होना है। हर पिता अपने-अपने बच्चों के सारी जिम्मेवारियां अच्छी तरह निभा कर उनकेअच्छे-बुरे का ध्यान रखते हैं और उन्हें सही रास्ता बताते हैं। पिता की जिम्मेदारी निभाने का हमारी संस्क्रती में उत्तम उदाहरण शकुन्तला के पुत्र सम्राट भरत हैं इन्हीं के नाम पर हमारे देश का नाम भारत है। उनके सभी नौ पुत्र अयोग्य थे। सम्राट भरत के मतानुसार शासक, प्रजा का पिता होता है, इसलिए योग्य आदमी को ही सम्राट बनाना चाहिए। इसीलिये उन्होंने अपने बेटों के बजाय गोद लिए योग्य पुत्र को सम्राट बनाया क्योंकि उनके मुताबिक मनुष्य जन्म से नहीं, कर्म से ही महान् होता है। सच्चाई यही है कि पिता बनने के लिए पिता होना भी जरूरी नहीं है। याद करें राजपाट त्यागकर और कभी भी पिता नहीं बनने की प्रतिज्ञा करने वाले भीष्म ही विश्व के पहिले पितामाह कहलाए। दृढप्रतिज्ञ भीष्म प्रत्येक पिता के प्रतीक ही तो हैं जिन्होनें परिवार की हर जिम्मेदारी खुद की सुख सुविधाओं को त्याग कर बखूबी निभाई निभायी थी। पिता के लिये बेटे-बेटियों की शादी एक प्रमुख जिम्मेवारी होती है | पैगम्बर साहब ने भी बताया है कि बेटी की शादी करने पर एक हज करने का पुण्य मिलता है। वास्तविकता के अन्दर पिता भी तो अपनी सारी जिम्मेवारीयों को न्यायसंगत तरीके से निभाते हैं।
प्रस्तुतिकरण—-डा.जे.के.गर्ग
सन्दर्भ—–विभिन्न पत्र-पत्रिकायें, मेरी डायरी के पन्ने

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