दीवाली कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष की तेरस से कार्तिक शुक्ला दूज (5दिन) यानि धनतेरस, नरक चतुर्दशी, अमावस्या (दीपावली), कार्तिक सुधा पधमी एवं यम द्वितीया या भाई दूज | तक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इन सभी दिनों के बारे में कई किंवदंतियॉं और पोराणिक गाथायें प्रचलित है। महाराष्ट्र में दीवाली का पर्व छह दिनों में पूरा होता है यानि वहां वासु बरस या गौवास्ता द्वादशी के साथ शुरू होता है और भय्या दूज के साथ समाप्त होता है ।
1. धनतृयोदशी या धनतेरस या धनवंन्तरी तृयोदशी:— धनतेरस का अर्थ है धन एवं धन का अर्थ है संपत्ति | धनतेरस को देवताओं के चिकित्सक भगवान धनवंतरी की जयंती के रूप में मनाया जाता है, पोराणिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान धनवंतरी समुद्र मंथन के दौरान अवतरित हुए थे | इस दिन को शुभ मानते हुए लोग बर्तन, सोना–चादीं आदि खरीदना शुभ एवं मंगलकारी मानते हैं।
2. नरक चतुर्दशी:— कार्तिक मास के क्रष्णपक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुदर्शी के रूप में मनाया जाता है, कुछ जगह ईसे छोटी दिवाली भी कहते हैं | कहा जाता है कि ईसी दिन भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर को मारा था। नरक चतुदर्शी को बुराई एवं अंधकार पर अच्छाई एवं प्रकाश की विजय के संकेत के रुप में मनाया जाता है। आज के दिन लोग अपने घरों के आसपास बहुत से दीपक जलाते है और घर के बाहर रंगोली बनाते है। नरक चतुदर्शी के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने का महत्व गंगा के पवित्र जल में स्नान करने के बराबर माना जाता है।
3. अमावस्या (दीपावली)—इस दिन सभी घरों,व्यापारिक प्रतिष्टान, कार्यस्थलों,ऑफिसों में धन-सम्पदा की देवी लक्ष्मी माताजी की विधी-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है और विपत्ति-कष्ट निवारक भगवान गणेशजी की भी पूजा की जाती है | ऐसी मान्यता है कि माता लक्ष्मी घर-परिवार में सुख- समृद्धि प्रदान कर समस्त परिजनों को आशिर्वाद देकर उन पर धन-धान्य की वर्षा करेंगी | नगर,गलियों, घरों,सार्वजनिक जगहों पर दिये की रोशनी से अमावस्या के अँधेरे को शीतल चांदनी मे बदल दिया जाता है |
प्रस्तुतिकरण—डा. जे.के गर्ग, Please visit our blog—gargjugalvinod.blogspot.in