महाराणा प्रताप— जाने अनजाने प्रेरणादायक पहलू

डा. जे.के.गर्ग
डा.जे.के. गर्ग
अकबर को महान कहना चाहिए या फिर महाराणा प्रताप को? यह प्रश्न पिछले सेकड़ों वर्षों से भारतीयों के मष्तिष्क में एक अनसुलझी पहेली बना हुआ है | यों तो अकबर और प्रताप दोनों अपनी अपनी जगह महान थे | दोनों के कारण भारत को फ़ायदा हुआ | दोनों से हम आज भी बहुत कुछ सीख सकते हैं, बशर्ते हमें मालूम हो कि उस समय हुआ क्या था और उस क्या हालत थे | अगर आप भारत को एक सूत्र में बांधने के काम को महान मानते हैं तो अकबर दूवारा की गई कोशिशे काबिले तारीफ थी वहीं अल्प साधनों किन्तु देश प्रेम के लिये वीरता ओर मजबूत इरादों के साथ आक्रमणकारी का सामना करते हुए आक्रान्ता को पीछे धकेलने का साहस राणाप्रताप ने ही किया इसलिये राणाप्रताप भी महान कहलाने के अधिकारी हैं | अकबर और प्रताप, दोनों के पीछे कई वफ़ादार वीर थे | अकबर को जहाँ अनेकों राजपूत राजाओं का समर्थन मिला हुआ था तो वहीं प्रताप को गद्दी पर बैठाने में उनके राज्य के लोगों का हाथ था | वरना, वचन के मुताबिक़ तो प्रताप के छोटे भाई जगमल्ल को गद्दी मिलनी थी | अकबर जहाँ हमलावर था और मेवाड़ पर हमला करके उस पर अधिकार जमाना चाह रहा था वहीं राणा प्रताप मेवाड़ के जननायक ओर लोकप्रिय शासक थे |

वफादार मुसलमान ने बचाई थी महाराणा की जान

1576 में महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच हल्दीघाटी का यह युद्ध हुआ जिसमें अकबर की सेना के सेनापति राजा मानसिंह थे, कहा जाता हैं कि मानसिंह के साथ 10 हजार घुड़सवार और हजारों की संख्या में पैदल सैनिक थे | इस युद्ध में महाराणा प्रताप मात्र 3 हजार घुड़सवारों और मुट्ठी भर पैदल सैनिकों के साथ लड़ रहे थे | इस दौरान मानसिंह की सेना की तरफ से महाराणा पर वार किया गया जिसे, महाराणा के वफादार हकीम खान सूर ने अपने ऊपर ले लिया और राणाप्रताप की जान बचा ली |

हवा से बात करता घोड़ा चेतक

महाराणा के सबसे प्रिय घोड़े का नाम चेतक था | कहा जाता है कि राणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक के सिर पर हाथी का मुखोटा लगाया जाता था जिससे दुश्मन की सेना के के हाथी कंफ्यूज हो जायें | हल्दीघाटी में महाराणा बहुत घायल हो गये थे, उनके पास कोई सहायक नहीं था. ऐसे में महाराणा ने चेतक की लगाम थामी और निकल लिए, उनके पीछे दो मुग़ल सैनिक लगे हुए थे, पर चेतक की रफ़्तार के सामने दोनों ढीले पड़ गए | रास्ते में एक 26 फीट चोडा पहाड़ी नाला बहता था | चेतक भी घायल था पर इसके बावजूद चेतक ने छलांग लगा कर नाले को फांद लिया जिससे मुग़ल सैनिक मुंह ताकते रह गए | लेकिन अब चेतक थक चुका था, वो दौड़ नहीं पा रहा था | महाराणा की जान बचाकर चेतक खुद शहीद हो गया |

राणा के विरोधी भाई शक्ति सिंह के मन में राणा के प्रति प्रेम जाग उठा और राणा के प्राणों की रक्षा की

हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा जब बचकर कुछ दूर पहुंच गए तो उसी समय महाराणा को किसी ने पीछे से आवाज लगाई- “हो, नीला घोड़ा रा असवार.” महाराणा पीछे मुड़े तो उनका भाई शक्तिसिंह आ रहा था | महाराणा के साथ शक्ति की बनती नहीं थी तो उसने बदला लेने को अकबर की सेना में शामिल हो गया था और जंग के मैदान में वह अकबर की तरफ से लड़ रहा था. युद्ध के दौरान शक्ति सिंह ने देखा कि महाराणा का पीछा दो मुगल घुड़सवार कर रहे हैं. तो शक्ति का पुराना भाई-प्रेम जाग गया और उन्होंने राणा का पीछा कर रहे दोनों मुगलों को मारकर मोत के घाट पहुंचा दिया |

सारी की सारी जनता थी राणा की सेना

विश्व की सबसे पुरानी पहाड़ियों की श्रखला अरावली की पहाड़ीयों में बने कुम्भलगढ़ के प्रसिद्ध किले में राणा प्रताप का जन्म हुआ था | राणा का पालन-पोषण भीलों की कूका जाति ने किया था | भील राणा से बहुत प्यार करते थे. वे ही राणा के आंख-कान थे | राणा उदयसिंह के पुत्र थे राणा प्रताप, उनके बचपन का नाम कीका था | जब अकबर की सेना ने कुम्भलगढ़ को घेर लिया तो भीलों ने जमकर लड़ाई की और तीन महीने तक अकबर की सेना को रोके रखा था | एक दुर्घटना के चलते किले के पानी का स्त्रोत गन्दा हो गया, जिसके बाद कुछ दिन के लिए महाराणा को किला छोड़ना पड़ा और अकबर की सेना का वहां कब्ज़ा हो गया | पर अकबर की सेना ज्यादा दिन वहां टिक न सकी और फिर से कुम्भलगढ़ पर महाराणा का अधिकार हो गया | इस बार तो महाराणा ने पड़ोस के और दो राज्य अकबर से छीन लिए |

दानवीर भामाशाह का त्याग—
मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये किन्तु वो सफल नहीं हो सका। निरंतर सघर्ष के कारण महाराणा की आर्थिक हालत दिन-प्रतिदिन कमजोर होती गई एवं एक बार तो वो विचलित भी हो गये |विपत्तियों के इन क्षणों में भामाशाह ने अपने जीवन की सारी कमाई को राणाप्रताप को अर्पित कर मेवाड़ की रक्षा हेतु लड़ाई चालू रखने का निवेदन किया | भामाशाह की यह आर्थिक सहायता लगभग 25000 राजपूतों की सेना के 12 साल तक का वेतन और निर्वाह के लिए पर्याप्त थी|अपनी दानशीलता के लिए भामाशाह भी इतिहास पुरुष बने इसीलिये आज भी कई राज्यों में उनके नाम से जन कल्याणकारी योजनायें चला रहें हैं|

झाला सरदार का बलिदान
हल्दीघाटी का युद्ध अत्यन्त घमासान हो गया था। एक समय ऐसा आया जब शहजादा सलीम पर राणा प्रताप स्वयं आक्रमण कर रहे थे,दोनों लहूलुहान हो गये थे,इस द्रश्य को देखकर कर हजारों मुगलसैनिक सलीम की रक्षा करने हेतु उसी तरफ़ बढ़े और राणाप्रताप को चारों तरफ़ से घेर कर उन पर प्रहार करने लगे। राणाप्रताप के सिर परमेवाड़का राजमुकुट लगा हुआ था अत:मुगलों ने मिलकर उन्हीं को निशाना बना लिया था वहीं दुसरी तरफ राणाप्रताप के रणबाकुरें राजपूतसैनिक भी प्रताप को बचाने के लिए अपने प्राण को हथेली पर रख कर संघर्ष कर रहे थे। दुर्भाग्यवश प्रताप संकट में फँसते जा रहे थे। स्थिति की गम्भीरता को भांपते हुए झाला सरदार मन्नाजीने स्वामिभक्ति का एक बेमिसाल आदर्श प्रस्तुत करते हुए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। झाला सरदार मन्नाजी तेज़ी के साथ युद्ध भूमी में सैनिकों को चीरते हुए आगे बढे और राणाप्रताप के सिर से मुकुट उतार कर अपने सिर पर रख लिया और तेज़ी के साथ कुछ दूरी पर जाकर मुगलों से घमासान युद्ध करने लगे।मुगलों ने झाला सरदार मुन्नाजीको ही प्रताप समझकर उस पर टूट पड़े इस तरह राणाप्रताप को युद्ध भूमि से दूर निकल जाने का अवसर मिल गया। उनका सारा शरीर असंख्य घावों से लहूलुहान हो चुका था। युद्धभूमि से लोटते समय राणाप्रताप मेवाड़ के वीर मन्नाजी को अपने प्राणों की आहुती देते देखा।

घास की रोटियां

जब महाराणा प्रताप अकबर से पराजित होकर जंगल-जंगल भटक रहे थे तब एक दिन पांच बार भोजन पकाया गया और हर बार भोजन को छोड़कर भागना पड़ा | एक बार प्रताप की पत्नी और उनकी पुत्रवधू ने घास के बीजों को पीसकर कुछ रोटियां बनाईं | उनमें से आधी रोटियां बच्चों को दे दी गईं और बची हुई आधी रोटियां दूसरे दिन के लिए रख दी गईं थी | इसी समय प्रताप को अपनी लड़की की चीख सुनाई दी, प्रताप ने देखा कि एक जंगली बिल्ली लड़की के हाथ से उसकी रोटी छीनकर भाग गई और भूख से व्याकुल लड़की के आंसू झर झर टपकने लगे | यह देखकर राणा का दिल बैठ गया | अधीर होकर उन्होंने ऐसे राज्याधिकार को धिक्कारा, जिसकी वज़ह से जीवन में ऐसे करुण दृश्य देखने पड़े. इसके बाद अपनी कठिनाइयां दूर करने के लिए उन्होंने एक पत्र लिखा जिसके जरिये उन्होंने अकबर से मिलने की इच्छा जाहीर की थी |

आजादी के दिवाने राणा के अद्धभुत जज्बे और त्याग का अकबर भी प्रसंशक था

जब महाराणा प्रताप अकबर की सेना से पराजित होकर जंगल-जंगल भटक रहे थे, तब बादशाह अकबर ने एक जासूस को महाराणा प्रताप की खोज खबर लेने को भेजा | गुप्तचर ने आकर बताया कि महाराणा अपने परिवार और सेवकों के साथ बैठकर जो खाना खा रहे थे उसमें जंगली फल, पत्तियाँ और जड़ें थीं | जासूस ने यह भी बताया कि ऐसा खाना खा कर सभी के चेहरों पर उल्लास और मुस्कराहट थी उनमें कोई भी ना तो दुखी था और ना ही उदास अथवा हताश | गुप्तचर की बातें सुनकर अकबर का हृदय भी पसीज गया और महाराणा के लिए उसके ह्रदय में सम्मान-इज्जत पैदा हो गयी | अकबर के विश्वासपात्र सरदार अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना ने भी अकबर के मुख से प्रताप की प्रशंसा सुनी थी | उसने अपनी भाषा में लिखा, “इस संसार में सभी नाशवान हैं. महाराणा ने धन और भूमि को छोड़ दिया, पर उसने कभी अपना सिर नहीं झुकाया. हिंदुस्तान के राजाओं में वही एकमात्र ऐसा राजा है, जिसने अपनी जाति के गौरव को बनाए रखा है.” उनके लोग भूख से बिलखते उनके पास आकर रोने लगते. मुगल सैनिक इस प्रकार उनके पीछे पड़ गए थे कि भोजन तैयार होने पर कभी-कभी खाने का अवसर भी नहीं मिल पाता था और सुरक्षा के कारण भोजन छोड़कर भागना पड़ता था |

महाराणा प्रताप की थीं 11 बीवियां

राजनेतिक कारणों वजह से महाराणा प्रताप ने कई शादीयाँ की थी और उनकी 11 बीवियां थीं और महाराणा की मृत्यु के बाद सबसे बड़ी रानी महारानी अजाब्दे का बेटा अमर सिंह प्रथम राजा बना था |

कहते हैं कि अकबर ने महाराणा प्रताप को समझाने के लिए 6 शान्ति दूतों को भेजा था, जिससे युद्ध को शांतिपूर्ण तरीके से खत्म किया जा सके, लेकिन महाराणा प्रताप ने यह कहते हुए हर बार उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया कि राजपूत योद्धा कभी भी अपनी आजादी और अस्मत के लिये कोई भी समझोता कर कर सकता है | यह भी कहा जाता है कि अकबर ने राणा प्रताप से कहा था कि अगर वे मेरे सामने झुक जायें तो वो प्रताप को आधा भारत दे देगें, किन्तु राणा ने उत्तर दिया कि “ मर जाऊंगा.खत्म हो जाऊंगा, किन्तु कभी भी मुगलों के सामने सिर नहीं झुकाऊँगां | लोकोक्तियों के मुताबिक बादशाह अकबर ने कहा था कि “अगर राणाप्रताप एवं जयमल मेडतिया जैसे शूरवीर योद्धा मेरी सेना होते तो में जरुर विश्वविजेता बन जाता |

राणा प्रताप की लम्बाई सात फीट से ज्यादा थी, कहा जाता है कि उनका वजन 110 किलोग्राम था | राणा प्रताप के भाले का वजन 81 किलोग्राम था वहीं उनकी छाती के कवच का वजन 72 किलो था | लोकोक्ति के मुताबिक प्रताप के भाले, कवच, ढाल,तलवार आदि का वजन 208 किलोग्राम था |

कहते है कि हल्दीघाटी युद्ध में राणाप्रताप का सेनापति अपना सिर कट जाने के बाद भी दुश्मनों से लड़ता रहा था |

नेपाल का राजपरिवार चित्तोड से निकला था अत: दोनों राज परिवारों में खून और भाई भाई का सम्बन्ध है |

हल्दीघाटी के आसपास के स्थानीय निवासी कहते हैं कि हल्दीघाटी की लडाई के लगभग 450 वर्षों बाद भी वहां की युद्ध भूमी के नीचे तलवारें मिलती रहती है |

निसंदेह हल्दीघाटी के इतिहास प्रसिद्ध युद्ध में निर्णायक रूप में ना तो अकबर जीता और ना ही मेवाड़ के रणबांकुरे आजदी के दीवाने महाराणा और उसके सैनिक हारें थे | युद्ध में जहाँ अकबर के पास विशालका्य अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित सेना थी वहीं राणा के पास देश भक्ति का मजबूत इरादा, जोश ओर जुंझारूपन था | हल्दीघाटी युद्ध की समाप्ति के तीस साल के अन्तराल के बाद भी अकबर अपनी तमाम कोशिश और ताकत के बावजूद मेवाड़ भूषण प्रताप को बंदी नहीं बना सका था |

29 जनवरी 1597 को जंगल में शिकार करते वक्त दुर्घटना की वजह से राणा की म्रत्यु हो गई और भारत एवं मेवाड़ का दुलारा पंचमहाभूतों में विलीन हो गया | प्रताप आज भी भारतवर्ष के करोड़ों लोगों के लिये प्रेरणा के स्त्रोत बने हुये हैं |

सन्दर्भ— विभिन्न पत्रिकाएँ, एम राजीव लोचन- इतिहासकार, पंजाब विश्वविद्यालय, सरकार जदुनाथ (1994).A History of Jaipur: c. 1503 – 1938,आइराना भवन सिंह 2004). महाराना प्रताप — डायमंड पोकेट बुक्स. pp.28, अंकित भटनागर (महाराणा प्रताप) आदि

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