रक्षा बंधन के बारे में प्रमुख धार्मिक, पोराणिक एवं एतिहासीक गाथायें-

डा. जे.के.गर्ग
भविष्य पुराण:—–
देव और दानवों के मध्य जब युद्ध शुरू हुआ और इस युद्ध में जब दानव जीतने लगे तो इंद्र घबरा गये और युद्ध में देवताओं की विजय का उपाय पूछने हेतु देवताओं के गुरु बृहस्पतिके पास गये । वहीं पर इन्द्र की पत्नी इंद्राणी भी बैठी हुई थी | गुरु बृहस्पति और इंद्र के मध्य हो रहें वार्तालाप को इंद्राणी भी सुन रही थी । इंद्राणी ने रेशम के धागे को मन्त्रों की शक्ति से पवित्र किया एवं इस धागे को अपने पति इंद्र के हाथ पर बाँध दिया। संयोग से यह दिन श्रावण मास की पूर्णिमाका था । इस देव-दानव के युद्ध में इंद्र की सेना विजयी हुई | लोगों का विश्वास है कि इस लड़ाई में इंद्र की जीत इंद्राणी के धागे की मन्त्र शक्ति से ही हुई थी । तभी से श्रावण पूर्णिमा के दिन रेशम का धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है। यह माना जाता है कि रेशम के धागे को हाथ की कलाई पर बांधने से धन, शक्ति, खुशी और विजय प्राप्त होती है|

स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत कहते हैं जब दानवीर बाली रसातल (पाताल लोक ) में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान विष्णुजी से रात-दिन अपने सामने खड़ें रहने का वचन ले लिया। भगवान के क्षीरसागर पर नहीं लौटने से देवी लक्ष्मी व्याकुल और परेशान हो गई | माता लक्ष्मी ने नारदजी से भगवान विष्णु को वापस क्षीरसागर लाने का उपाय पूछा तब नारद जी ने उन्हें एक उपाय बताया । नारद मुनी के बताये गये उपाय के मुताबिक लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर बलि के हाथ पर रक्षाबन्धन बांधकर राजा बलि को अपना भाई बना लिया एवं बलि से विष्णुजी को अपने साथ ले जाने की अनुमति मागीं | अपनी बहिन लक्ष्मी जी की बात को मानते हुए उन्होंने विष्णुजी को लक्ष्मी जी के साथ वापस विष्णुजी के घर क्षीरसागर भेज दिया | उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। इसीलिए श्रावण मास की पूर्णिमा को बहनें अपने भाईयों के कलाई पर राखी बांधती है |

विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन ही भगवान विष्णु ने हयग्रीवके रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिये फिर से प्राप्त किया था। हयग्रीव को विध्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
महाभारत: महाभारत में भी इस बात का उल्लेख आता है कि एक बार भगवानकृष्णसे युधिष्ठिर ने पूछा कि मैं सभी संकटों का सफलता पूर्वक सामना कर उन संकटों पर किस प्रकार से विजय प्राप्त कर सकता हूँ तब भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को पांडवों एवं उनकी सेना की रक्षा और विजय प्राप्ती के लिये राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। भगवान श्री क्रष्ण का कहना था कि राखी के रेशमी धागे में वह शक्ति है जिससे पांडव और अपनी हाथ की कलाई पर रेशमी धागा बंधवाने वाला व्यक्तिर जीवन में आने वाली हर आपत्ति से मुक्ति पा सकता हैं।
जब भगवान कृष्ण नेसुदर्शन चक्रसे शिशुपालका वध किया तब उनकी तर्जनी अंगुली में चोट आ गई थी तब द्रौपदी ने अविलम्ब अपनी साड़ी फाड़कर भगवान क्रष्ण की उँगली पर पट्टी बाँध दी थी । यह घटना श्रावण मास की पूर्णिमा को घटित हुई थी | उस वक्त भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि समय आने पर वे द्रोपदी के आंचल के एक-एक सूत का कर्ज उतारेंगे । कोरवों की राज्यसभा में दुशासन दुवारा सबके सामने द्रोपदी के चीरहरण के समय भगवान श्रीकृष्ण ने द्रोपदी की रक्षा कर अपने वचन को निभाया था। महाभारत के अन्दर ही द्रौपदी द्वारा कृष्ण को एवं कुन्तीद्वारा अपने पोत्र अभिमन्युको राखी बाँधने का उल्लेख भी मिलता हैं।

ऐसा भी कहा जाता है कि यूनान के बादशाह सिकन्दर की पत्नी ने राजा पोरष को राखी बाँधकर अपना मुँह बोला भाई बनाया और युद्ध के समय राजा पोरषसे सिकन्दर को न मारने का वचन लिया। राजा पोरष ने युद्ध के दौरान हाथ में बँधी राखी और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकन्दर को जीवन-दान दिया।

राजपूत जब भी युद्ध करने हेतु युद्ध स्थल पर जाते थे तब राजपूत महिलाएँ अपने पतियों के ललाट पर कुमकुम से तिलक लगाने के साथ साथ उनके हाथ की कलाई पर रेशमी धागा भी बाँधती थी। राजपूत महिलाओं एवं राजपूत रानीयों को यह अटल विश्वास था कि रेशम का धागा उनके पति को युद्ध में विजयश्री दिलवायेगा और उनके पति विजयी होकर सकुशल घर वापस लोटगें |
मुगलकालीन काल में हिन्दू राजपूत राजा महाराजाओं की पत्नियाँ मुसलमान बादशाहों को राखी बांधती थी,जिससे एक दूसरे समुदाय में प्रेमभाव एवं स्नेह बना रहे तथा एक राज्य का दूसरे राज्य के साथ सोहार्द पूर्ण सम्बंध भी बना रहें। यहाँ यह उल्लेखनीय होगा कि आज भी बहुत से मुसलमान भाई हिन्दू बहनों से राखी वाले दिन राखी बंधवाने उनके घर जाते हैं।
राखी के साथ एक और ऐतिहासिक प्रसंग जुड़ा हुआ है। मुग़ल काल के दौर में जब मुग़ल बादशाह हुमायूँ चितौड़ पर आक्रमण करने बढ़ा तो राणा सांगा की विधवा रानी कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर हुमायूँ से चितौड़ की रक्षा का वचन ले लिया। हुमायूँ ने इसे स्वीकार करके चितौड़ पर आक्रमण का ख़्याल दिल से निकाल दिया और कालांतर में मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज निभाने के लिए चितौड़ की रक्षा हेतु मुग़ल बादशाह हुमायूँ ने बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए रानी कर्मवती और मेवाड़ राज्य की रक्षा की ।

एक रोचक घटनाक्रम में हरियाणाराज्य में अवस्थित कैथल जनपद के फतेहपुर गाँव में सन्1857में एक युवक गिरधर लाल को रक्षाबन्धन के दिन अंग्रेज़ों ने तोप से बाँधकर उड़ा दिया, इसके बाद से गाँव के लोगों ने गिरधर लाल को शहीद का दर्जा देते हुए रक्षाबन्धन पर्व मनाना ही बंद कर दिया।प्रथम स्वतंत्रता संग्रामके 150 वर्ष पूरे होने पर सन् 2006 में जाकर इस गाँव के लोगों ने इस पर्व को मनाने का पुनः निर्णय लिया |

प्रस्तुतिकरण——-डा.जे.के.गर्ग

सन्दर्भ—– विभिन्न पत्र पत्रिकायें, समाचार पत्र, विभिन्न पुस्तकें आदि

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