भारत की आत्मा गावों के जन जन के लोक देवता तेजाजी

डा. जे.के.गर्ग
तेजाजी के मंदिर राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, गजरात तथा हरियाणा आदि राज्यों के विभिन्न स्थानों में मोजूद हैं। साधारणतया तेजाजी के मंदिरों में निम्न वर्गों के लोग ही पुजारी का काम करते हैं जिन्हें भोपा भी कहाजाता है | आम आदमीयों विशेषतया ग्रामीणों में तेजाजी के बलिदान एवं उनकी सत्यनिष्ठा की वजह से हज़ार साल बाद भी उनमें अटूट आस्था और विश्वास बना हुआ है | अजमेर जिले के प्रत्येक गांव में तेजाजी के मंदिरअथवा चबूतरे बने हुए हैं | ब्यावर का तेजाजी का मेला तो पूरे देश में प्रसिद्ध | शाहबाद (बारां), प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, बून्दी, चितौडग़ढ़ के विभिन्न स्थानों पर तेजाजी के विशाल मेले भरते है भीलवाड़ा में तेजाजी को सभी धर्मों केलोग मानते हैं | लोक देवता तेजाजी का जन्म नागौर जिले में खड़नाल गाँव के मुखिया ताहरजी थिरराज के यहाँ माघ शुक्ला, चौदस 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को हुआ था | शिवजी के परम भक्त ताहरजी थिराज-रामकुवरी के यहाँ तेजाजी का जन्म हुआ था | कुछ लोग कलयुग में तेजाजी को शिव का अवतार मानते हैं | तेजा जब पैदा हुए तब उनके चेहरे पर विलक्षण तेज था जिसके कारण इनका नाम तेजा रखा गया | कहा जाता है किउनकेजन्म के समय तेजा की माता को एक आवाज सुनाई दी – “कुंवर तेजा ईश्वर का अवतार है किन्तु यह तुम्हारे साथ अधिक समय तक नहीं रहेगा” |तेजाजी का निधन मात्र 30 वर्ष की आयु में भाद्रपद शुक्ला दसमी 1160 यानि 28 अगस्त 1103 को हो गया था | तेजाजी का विवाह बाल्यकाल में ही पनेर गाँव के रायमल्जी की पुत्री पेमल के साथ हो गया था किन्तु शादी के कुछ समय बाद दोनों परिवारों में अनबन हो जाने की वजह से तेजाजीउनके पेमल के साथ शादी के बारे में नहीं बताया | तेजाजी के गावं में ज्येष्ठ महीने की पहली बारिश हो गई थी उस वक्त गावं में परंपरा थी की वर्षा होने पर कबीले के मुखिया सबसे पहिले खेत में हल जोतने की शुरुहातकरते थे और उसके बाद ही गावं के अन्य किसान हल जोतते थे किन्तु उस समय ना तो गावं के मुखिया ताहरजी और ना ही उनका बड़ा पुत्र गाँव में मोजूद था | ईसीलिये मुखिया की पत्नी रामकुवंर ने अपने छोटे बेटे तेजाको खेतों में जाकर हळसौतिया का शगुन करने के लिए कहा | माँ की आज्ञानुसार तेजाजी खेतों में पहुँच कर हल चलाने लगे ,काम करते करते दोपहर हो गई एवं तेजाजी भूख से परेशान होकर अपनी भाभी का इंतजार करनेलगे क्योंकि वही उनके लिये भोजन लेकर आने वाली थी | भाभी काफी देरी तेजा का खाना लेकर खेतों पर पहुँची, भूख के मारे तेजाजी ने अपनी भाभी को उल्हाना देते खरी खोटी सुना दी, तेजाजी के उल्हाने से भाभीतिलमिला कर कहने लगी तुम्हें तो अपनी भूख की पड़ी है और कहा कि घर परिवार का ढेर सारा काम पूरा करते ही तुम्हारा खाना लेकर आई हूँ | अगर तुम्हें मुझ से कोई शिकायत है तो तुम्हारी पत्नी पेमल को उसके पीहरसे लिवा क्यों नहीं लाते ? भाभी की बातें तेजाजी के दिल में चुभ गई और वें तिलमिलाते हुए घर आ गये और माँ से पूछा “ मेरी शादी कहाँ और किसके साथ हुई? “ माँ ने उन्हें सारी बातें बताई और कहा तुम्हारा ससुराल गढ़पनेर में रायमलजी के घर है और तुम्हारी पत्नी का नाम पेमल है| तेजा ससुराल जाने को आतुर हो गये तब तेजाजी की जिद्द को देख भाभी बोली अपनी दुल्हन पेमल को घर पर लाने अपनी बहन राजल को तो पीहर लेकरआओ और उसके बाद ससुराल जाना | तेजाजी अपनी बहन राजल को लिवाने उसकी ससुराल के गाँव तबीजी के रास्ते में थे तब एक मेणा सरदार ने उन पर हमला किया जहाँ भयंकर लड़ाई हुई जिसमें तेजाजी जीत गए |तबीजी पहुँच करके वे अपनी बहिन राजल को खरनाल ले आए | अपनी बहिन राजल को उसके ससुराल से लोटा आने के बाद तेजाजी ने अपनी माँ और भाभी से पनेर जाने की इजाजत लेकर वे एक दिन सुबह ही अपनीपत्नी पेमल को लाने के निकल पड़े अपनी ससुराल पनेर आ पहुँचे | वहाँ किसी अज्ञानता के कारण ससुराल पक्ष से उनकी अवज्ञा हो गई। नाराज तेजाजी वहाँ से वापस लौटने लगे तभी ही पेमल की सहेली लाछा गूजरी पेमलका संदेश लेकर तेजाजी मिली और उसने तेजाजी को पेमल का संदेश दिया “ अगर तेजाजी उसे छोड़ कर गए, तो वह जहर खा कर मर जाएगी, आपके इंतजार में मैंने इतने वर्ष निकाले हैं आज आप चले गए तो मेरा क्याहोगा मुझे भी अपने साथ ले चलो | मैं आपके चरणों में अपना जीवन न्यौछावर कर दूँगी” | रूपवती पेमल की व्यथा देखकर तेजाजी उसे अपने साथ ले जाने को राजी हो गये और उससे बात करके अपने साथ चलने को कहातभी यकायक वहां लाछां ने आकर कहा कि “मेर के मेणा डाकू उसकी गायों को चुरा कर ले गए हैं, इसलिए तेजाजी आप मेरी गायों को डाकुओं से छुड़ा कर लायें | तेजाजी गायों को लाने के अपने पांचों हथियार लेकर अपनीघोडी लीलण पर सवार हए |
तेजाजी ने भाला, धनुष, तीर लेकर घोडी लीलण पर बैठ करके डाकुओं का पीछा किया, रास्ते में वे जब चोरों का पीछा कर रहे थे, उसी समय उन्हें एक काला नाग आग में झुलजता दिखाई दिया तब तेजाजी ने फूर्ती से भाले केद्वारा नाग को आग से बाहर निकाला ,यह इच्छाधारी बासक नाग था | बासग नाग ने उन्हें शाबासी देने बजकहा कि मैं तुझे डसूंगा | तेजाजी ने कहा – मरते, डूबते व जलते को बचाना मानव का धर्म है, मैंने तुम्हारा जीवनबचाया है, कोई बुरा काम नहीं किया भलाई का बदला बुराई से क्यों देना चाहते हो ? नागराज ने फुंफकार कर कहा कि वे उसकी नाग की योनी से मुक्ति में बाधक बने हैं | शूरवीर तूने मेरी जिन्दगी बेकार कर दी एवं मुझेआग में जलने से रोककर तुमने अनर्थ किया है | मैं तुझे डसूंगा तभी मुझे मोक्ष मिलेगा | तेजाजी ने प्रायश्चित स्वरूप नागराज की बात मान ली और नागराज को वापिस लौट आने का वचन देकर सुरसुरा की घाटी में पहुंचेंजहाँ मंदावारिया की पहाडियों में डाकुओं के साथ उनका भंयकर संघर्ष जिसमें तेजाजी का पूरा शरीर लहूलुहान हो गया काफी डाकू मारे गये इव बाकीके डाकू भाग गये | तेजाजी सारी गायों को लेकर पनेर पहुंचे और गायों कोलाछां गूजरी को सौंप दिया | लाछां गूजरी को सारी गायें दिखाई दी पर गायों के समूह में काणां केरडा नहीं दिखा तो वह उदास हो गई और तेजा को वापिस जाकर काणां केरडा को लाने के लिए प्राथना की जिसके फलस्वरूप वेवापस पहाड़ी में छुपे हुए डाकुओं को मार कर लाछा का केवड़ा ले आये | विजयी होकर तेजाजी राज के पास पहुंच कर उन्हें डसंने को कहा | लहूलुहान तेजाजी देख कर नागराज बोले तेजा तुम्हारे रोम रोम से तो खूनटपक रहा है, में तुम्हें कहाँ डसू | तेजाजी बोले कि मेरे हाथ की हथेली व जीभ पर कोई घाव नहीं है इसलिए आप यहाँ डसं लें नागराज ने तेजाजी से कहा“तेजा तुम शूरवीर हो, मैं तुम्हारी इमानदारी और बहादुरी पर मैं बहुतखुश हूँ, अब तुम जाओ | तुम्हारी सच्चाई के सामने में हार गया हूँ |मैं प्रसन्न होकर तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम अपने कुल के एक मात्र देवता बनोगे | आज के बाद काला सर्प का काटा हुआ कोई व्यक्ति यदि तुम्हारे नामकी तांती बांध लेगा तो उसका जहर उतर जायेगा | तेजाजी ने कहा “ नागराज आपको मुझें डसंना ही होगा | आखिर तेजाजी की जिद्द से हार कर तेजाजी की जीभ पर डस लिया |तेजाजी ने नजदीक में ही ऊँट चराने वालेरैबारी आसू देवासी को बुला कर कहा “भाई मेरी इहलीला समाप्त होने वाली है मेरे प्यार के प्रतिक इस रुमाल को पेमल को देकर उससे कहना कि में कुछ ही पलों का मेहमान हूँ| तेजाजी की हालत को देख कर उनकी घोडीलीलण की आँखों से आंसू टपकने लगे और अपनी घोडी से बोले “लीलण आज तक तूने सुख दुःख में मेरा पूरा साथ दिया है, अब तू खरनाल जाकर मेरे परिवार जनों को अपनी आँखों से मेरी इहलीला के समाप्त होने के बारेमें बता देना | आसू देवासी ने पनेर जाकर पेमल को तेजाजी के बारे में और कहा कि वे मरणासन्न हैं | “तेजाजी के बलिदान का समाचार सुनकर पेमल की आँखें पथरा गई उसने मां से नारियल माँगा, सौलह श्रृंगार किये,परिवार जनों से विदाई ली और सुरसुरा जाकर तेजाजी के साथ सती हो गई | कहते हैं कि चिता की अग्नि स्वतः ही प्रज्वलित हो गई और पेमल सती हो गई | लोगों ने पूछा कि सती माता तुम्हारी पूजा कब करें तो पेमल नेबताया कि “भादवा सुदी नवमी की रात्रि को तेजाजी धाम पर जागरण करना और दसमी को तेजाजी के धाम पर उनकी देवली को धौक लगाना, कच्चे दूध का भोग लगाना ऐसा करने से मनपसंद कार्य पूर्ण होंगे | खरनाल गाँवमें लीलण खाली पीठ पहुंची तो तेजाजी की भाभी को कोई बड़ी अनहोनी होने का डर लगा, तेजाजी की बहिन राजल बेहोश होकर गिर पड़ी और थोड़ी देर बाद अपने माँ-बाप, भाई भाभी और अन्य स्वजनों से आज्ञा लेकरखरनाल के पास ही पूर्वी जोहड़ में चिता बनवाकर भाई की मौत पर सती हो गई | भाई के पीछे सती होने का यह अनूठा एक मात्र उदहारण है | राजल बाई को बाघल बाई भी कहते हैं राजल बाई का मंदिर खरनाल में गाँव केपूर्वी जोहड़ में है जिसे बांगुरी माता का मंदिर कहते हैं | तेजाजी की प्रिय घोड़ी लीलण ने भी अपना शारीर छोड़ दिया | लीलणघोड़ी का मंदिर आज भी खरनाल के तालाब के किनारे पर बना हुआ है | तेजाजी के निर्वाण दिवसभाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है।

प्रस्तुतिकरण ——– डा.जे. के. गर्ग,
सन्दर्भ—-विभिन्न पत्र पत्रिकाएँ, ग्रामीणों एवं तेजा भक्तो और भोपओं से बात चित,मेरी डायरी के पन्ने आदि |

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