जानिये राष्ट्रपिता बापू के जीवन की अविस्मरणीय प्रेरणादायक घटनायें

डा. जे.के.गर्ग
प्रस्तुतिकरण——-डा. जे.के. गर्ग
गुरुवर टेगोर ने 1915 में गांधीजी को महात्मा कह कर सम्बोधित किया वहीं 1944 में सुभाष चंद्र बोस ने सबसे पहले राष्ट्र पिता कह कर सम्बोधित किया था जिसके बाद सभी उन्हें राष्ट्रपिता कहनेलगे। 2 अक्तूबर 2018 को राष्ट्र बापूजी की 149वीं जन्म जयंती बना रहा है, यू.एन.ओ प्रति वर्ष अहिसा ( Non Violence Day) दिवस के रूप में मनाता है | बापूजी ने विभिन्न आन्दोलनों के दोरानकरीब 79000 किलोमीटर पदयात्रा की और करीब एक करोड़ शब्द लिखे गांधीजी कहा करते थे “पैदल चलना व्यायम का राजा है” आज के धार्मिक उन्माद के माहोल में बापू के प्रिय भजन “ रघुपतिराघव राजा राम,पतित पावन सीता राम | ईश्वर अल्लाह एक ही नाम ,सबको सन्मति दे भगवान “ को हमारे आचरण में लाने की महती जरूरत है | याद रक्खें कि बापूजी ने कहा था कि “धर्मव्यक्तिगत मामला है | राज्य का मेरे धर्म से कोई समबन्ध नहीं है” | यह भी याद रक्खें कि गांधीजी के लिये स्वच्छता एक काम या आदत नहीं वरन जीने का एक तरीका था |

नकल करना गलत है—–स्कूल के पहले ही वर्ष की, परीक्षा के समय की एक घटना उल्लेखनीय हैं। शिक्षा विभाग के इन्सपेक्टर जाइल्स विद्यालय की निरीक्षण करने आए थे। उन्होंने विद्यार्थियों से अंग्रेजी के पांच शब्द लिखने को कहा उनमें एक शब्द ‘केटल’ (kettle) था। गांधीजी ने उसकी स्पेल्लिंग गलत लिखी । शिक्षक ने इशारों में उन्हें पासबैठे छात्र की पट्टी को देख कर सही स्पेल्लिंग लिखने को कहा किन्तु ईमानदार मोहनदास ने नकल नहीं की जिससे उन्हें अपने अध्यापक की डाट खानी पड़ी किन्तु वो दूसरे लड़कोंकी पट्टी में देखकर चोरी करना नहीं चाहते थे | ऐसे थे बापू
बचपन में ही पितृभक्ति और सत्यनिष्टा को अपनाने का सकंल्प लिया

बचपन में अपने पिता की किताब “श्रवण-पितृभक्ति नाटक” को पढ़ा | उन्हीं दिनों शीशे मे चित्र दिखाने वाले भी घर-घर आते थे। उनके पास भी श्रवण का वह दृश्य भी देखा, जिसमें वह अपने माता-पिता को कांवर में बैठाकर यात्रा पर ले जाता हैं। इस चित्र को उन्होंने बार बार देखा और श्रवण के चरित्र का उन पर अत्याधिक प्रभाव पढ़ा | बापू कहते थे कि इन दोनों चीजों का मुझ पर गहरा प्रभाव पड़ा। मन में इच्छा होती कि मुझे भी श्रवण के समान बनना चाहिए। इन्हीं दिनों कोई नाटक कंपनी आयी थी और उसका नाटक देखने की इजाजत मुझे मिली थी। उस नाटक को देखते हुए मैं थकता ही न था। सत्यवादी हरिशचन्द के जीवन से गांधीजी प्रभावित हुए और वो कहते थे कि मन ही मन मैने उस उस नाटक को सैकड़ो बार खेला होगा। उन्होंने इस सच्चाई को जान लिया कि सत्यवादी को अनेकों विपत्तियां का सामना करना पड़ेगा |
वास्तविकता में सत्‍यादी हरिश्‍चंद्र के सच बोलने की प्रेरणा और माता-पिता के प्रति श्रवण कुमार की प्रगाढ़ श्रद्धा ने गांधी जी को पूरे जीवन भर प्रभावित किये रखा और उन्‍हें पूरी दुनिया में महामानव बना दिया।

मतलब की चीज को सम्भाल कर रक्खों

एक अंग्रेज ने महात्मा गांधी को पत्र लिखा। उसमें गालियों के अतिरिक्त कुछ था नहीं। गांधीजी ने पत्र पढ़ा और उसे रद्दी की टोकरी में डाल दिया। उसमें जो आलपिन लगा हुआ था उसे निकालकर सुरक्षित रख लिया। वह अंग्रेंज कुछ दिनों बाद बापूजी से मिलने के लिए आया और आते ही उसने पूछा- महात्मा जी! आपने मेरा पत्र पढ़ा या नहीं?
महात्मा जी बोले- बड़े ध्यान से पढ़ा है। उसने फिर पूछा- क्या सार निकाला आपने? महात्मा जी ने कहा- एक आलपिन निकाला है। बस, उस पत्र में इतना ही सार था। जो सार था, उसे ले लिया। जो असार था, उसे फेंक दिया।

जीवित व्यक्ति की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करना बेढंगा कार्य है उसके स्थान पर उनकी शिक्षाओं और सद्गुणों को अपनायें—- एक बार गांधीजी को एक पत्र मिला, जिसमें लिखा था कि शहर में गांधी मंदिर की स्थापना की गई है, जिसमें रोज उनकी मूर्ति की पूजा-अर्चना की जाती है। यह जानकर गांधीजी परेशान हो उठे। उन्होंने लोगों को बुलाया और अपनी मूर्ति की पूजा करने के लिए उनकी निंदा की। इस पर उनका एक समर्थक बोला, ‘बापूजी, यदि कोई व्यक्ति अच्छे कार्य करे तो उसकी पूजा करने में कोई बुराई नहीं है।’ उस व्यक्ति की बात सुनकर गांधीजी बोले,
‘भैया, तुम कैसी बातें कर रहे हो? जीवित व्यक्ति की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करना बेढंगा कार्य है।’ इस पर वहां मौजूद लोगों ने कहा, ‘बापूजी हम आपके कार्यों से बहुत प्रभावित हैं। गांधीजी बोले ”आप मेरे किस कार्य से प्रभावित हैं?’ यह सुनकर सामने खड़ा एक युवक बोला, ‘बापू, आप हर कार्य पहले स्वयं करते हैं, हर जिम्मेदारी को अपने ऊपर लेते हैं और अहिंसक नीति से शत्रु को भी प्रभावित कर देते हैं। आपके इन्हीं सद्गुणों से हम बहुत प्रभावित हैं।’
गांधीजी ने कहा, ‘यदि आप मेरे कार्यों और सद्गुणों से प्रभावित हैं तो उन सद्गुणों को आप लोग भी अपने जीवन में अपनाइए। तोते की तरह गीता-रामायण का पाठ करने के बदले उनमें वर्णित शिक्षाओं का अनुकरण ही सच्ची पूजा-उपासना है। इस तरह उन्होंने अपनी पूजा रुकवाई।

अपनी गलतियों को कैसे सुधारें—–

बात उन दिनों की है जब कलकत्ता में हिन्दू – मुस्लिम दंगे भड़के हुए थे। ऐसी स्थिति में गाँधी जी वहां पहुंचे और एक मुस्लिम मित्र के यहाँ ठहरे। उनके पहुचने से दंगा कुछ शांत हुआ लेकिन कुछ ही दोनों में फिर से आग भड़क उठी। तब गाँधी जी ने आमरण अनशन करने का निर्णय लिया और 31 अगस्त 1947 को अनशन पर बैठ गए। इसी दौरान एक दिन एक अधेड़ उम्र का आदमी उनके पास पहुंचा और बापूजी से बोला” मैं तुम्हारी मृत्यु का पाप अपने सर पर नहीं लेना चाहता,लो रोटी खा लो।” और फिर अचानक ही वह रोने लगा, ”मैं मरूँगा तो नर्क जाऊँगा!”“क्यों ?”, गाँधी जी ने शालीनता से पूछा। उस आदमी ने कहा ”क्योंकि मैंने एक आठ साल के मुस्लिम लड़के की जान ले ली।” ”तुमने उसे क्यों मारा ?”, गाँधी जी ने पूछा। ”क्योंकि उन्होंने मेरे मासूम बच्चे को जान से मार दिया।” आदमी रोते हुए बोला। गाँधी जी ने कुछ देर सोचा और फिर बोले,” मेरे पास एक उपाय है।” आदमी आश्चर्य से उनकी तरफ देखने लगा।
”उसी उम्र का एक लड़का खोजो जिसने दंगों में अपने माता-पिता खो दिए हों, और उसे अपने बच्चे की तरह पालो, लेकिन एक चीज सुनिश्चित कर लो कि वह एक मुस्लिम होना चाहिए और उसी तरह बड़ा किया जाना चाहिए।” गाँधी जी ने अपनी बात ख़तम की।

जब किसी ने बापूजी के मुहं पर थूका तो वे बोले एक ने तो अपना गुस्सा थूका भले ही मेरे मुंह पर ही क्यों न थूका हो।
बात भारत-पाकिस्तान बटवारे के दौरान की है, जब देश में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हो रहे थे। तब बापू दंगे शांत कराने को बंगाल गए थे वहां पर आक्रोशित मुसलमान भाइयों को जब गांधी जी समझाने का प्रयास कर रहे थे तो एक मुसलमान ने गांधी जी के मुंह पर थूक दिया। ऐसा देख कांग्रेस सेवादल के कार्यकर्ताओं ने उसे पकड़ा तो गांधी जी ने कहा कि इन लोगों में गुस्सा है और मुझे ख़ुशी है कि किसी एक ने तो अपना गुस्सा थूका भले ही मेरे मुंह पर ही क्यों न थूका हो। इतना सुनकर वह मुस्लिम युवक उनके पैरों पर गिर पड़ा और वहां हो रहे दंगे कम हुए। बापूजी ने विभिन्न आन्दोलनों के दोरान करीब 79000 किलोमीटर पदयात्रा की और करीब एक करोड़ शब्द लिखे—–(पैदल चलना व्यायम का राजा है )

महात्मा गांधीमानते थे कि पैदल चलना व्यायाम का राजा है, इसलिए वे बहुत लंबी दूरी के लिए भी किसी साधन की बजाय पैदल चलने को तरजीह देते थे। वे अपने पूरे जीवन में औसतन रोज 18 किलोमीटर पैदल चले। इतनी पैदल यात्रा में तो वे दो बार धरती का चक्कर लगा सकते थे! 1913 से 1938 तक विभिन्न आंदोलनों के दौरान 25 वर्षों में वे करीब 79,000 किलोमीटर पैदल चले। देश केलिए चालीस साल के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गांधीजी ने करीब 1 करोड़ शब्द लिखे यानी रोज करीब 700 शब्द। उन्होंने मूल रूप से सात किताबें लिखीं और भगवद गीता का गुजराती में अनुवाद किया।

बापूजी का धर्म के बारे में विचार

बापूजी कहते थे कि”मेरी धर्म पर गहरी आस्था है, में इसके लिये अपने प्राण दे सकता हूँ | लेकिन धर्म व्यक्तिगत मामला है | राज्य का मेरे धर्म से कोई समबन्ध नहीं है | गांधीजी के लिये स्वच्छता एक काम या आदत नहीं वरन जीने का एक तरीका था |

गुरुवर टेगोर ने 1915 में गांधीजी को महात्मा कह कर सम्बोधित किया वहीं 1944 में सुभाष चंद्र बोस ने सबसे पहले राष्ट्र पिता कह कर सम्बोधित किया था जिसके बाद सभी उन्हें राष्ट्रपिता कहने लगे। 2 अक्तूबर 2018 को राष्ट्र बापूजी की 149वीं जन्म जयंती बना रहा है, यू.एन.ओ प्रति वर्ष अहिसा ( Non Violence Day) दिवस के रूप में मनाता है | आज के धार्मिक उन्माद के माहोल में बापू के प्रिय भजन “ रघुपति राघव राजा राम,पतित पावन सीता राम | ईश्वर अल्लाह एक ही नाम ,सबको सन्मति दे भगवान “ को हमारे आचरण में लाने की महती जरूरत है | याद रक्खें कि बापूजी ने कहा था कि “धर्म व्यक्तिगत मामला है | राज्य का मेरे धर्म से कोई समबन्ध नहीं है” | यह भी याद रक्खें कि गांधीजी के लिये स्वच्छता एक काम या आदत नहीं वरन जीने का एक तरीका था |

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