समाजवाद के प्रणेता— अहिंसावादी वेश्यसम्राट अग्रसेन

डा. जे.के.गर्ग
डा.जे.के.गर्ग
निसंदेह किसी भी राष्ट्र और समाज को उन्नत तथा विकसित बनाने के लिये उसके आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक स्तम्भ मजबूत होने चाहिये | इन चारों स्तंभों को दृढ़ करके ही राष्ट्र को प्रगतिशील एवं विकसित देश बनाया जा सकता है | आज से लगभग 5142 साल पहिले महाराजा अग्रसेनजी ने इन्हीं चार स्तंभों को मजबूत कर समर्द्धशाली, कल्याणकारी एवं शक्तिशाली राज्य का निर्माण किया था | एक पौराणिक कर्मयोगी लोकनायक होने के साथ समाजवाद के प्रणेता महाराजा अग्रसेन तपस्वी, महान दानवीर युग पुरुष थे जिनका जन्म द्वापर युग के अंत वह कलयुग के प्रारंभ में लगभग 5142 वर्ष पूर्व अश्विनशुक्ल प्रतिपदा के दिन प्रताप नगर के सूर्यवंशी राजा वल्लभ के यहाँ हुआ था। ऐसा भी कहा जाता है की महाराजा अग्रसेन भगवान श्रीरामके पुत्र कुश की 34 व़ी पीढ़ी के थे | कहा जाता हे कि महाभारत के दसवें दिन राजा वल्लभसेन वीर गति को प्राप्त हुए |15 वर्ष की अल्प आयु मे ही अग्रसेनजी ने महाभारत के धर्मयुद्ध में पांडवो की तरफ से भाग लिया था| कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण भी उनकी बुद्धीमता,शोर्य,पराक्रम,समझबुझ से अत्यंत प्रभावित हुए और उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि युवा अग्रसेन भविष्य में एक पराक्रमी सम्राट एवं युग पुरुष होंगे |

विवाह
युवा अग्रसेन ने सर्पों के राजा नागराज की सुपत्री राजकुमारी माधवी के स्वयंवर में अनेकों राजाओं, राजकुमारों और स्वर्ग के सम्राट इंद्रदेव केसाथ भाग लिया था | इंद्र देवता राजकुमारी माधवी की सुंदरता पर मोहित थे एवं एन कैन प्रकारेण राजकुमारी माधवी से विवाह करना चाहते थे| स्वयंवर में राजकुमारी माधवी ने राजकुमार अग्रसेन का चयन कर उनका वरण किया | अग्रसेनमाधवी के विवाह से दो भिन्न भिन्न संस्कृतियोंएवं परिवारों का मिलन हुआ क्योंकि राजकुमार अग्रसेन जहाँ एक सूर्यवंशी थे वहीं राजकुमारी माधवी एक नागवंशी थी | राजकुमारी माधवी का विवाह अग्रसेनजी के साथ हो जाने से इंद्रदेव बहुत क्रोधित हुये और इन्द्र ने प्रताप नगर के निर्दोष स्त्री-पुरुषों,बालक-बालिकाओं कोप्रताड़ित करने हेतु प्रताप नगर पर कई वर्षा तक बारिश नहीं होने दी जिससे प्रताप नगर में भयानक अकाल पड गया | सम्राट अग्रसेन ने अपनीप्रजा एवं प्रताप नगर की सुरक्षा और राजधर्म के पालनार्थ इंद्र के खिलाफ धर्मयुद्ध प्रारम्भ कर दिया | युद्ध में इंद्र की पराजय हुई | पराजित इंद्रने नारदमुनि से अनुनय-विनय कर उनकी सम्राट अग्रसेन से सुलह करवाने का निवेदन किया | नारद मुनि ने दोनो के बीच मे मध्यस्थता करसुलह करवा दी |

शिव और माता लक्ष्मी की आराधना— यहाँ यह स्मरण रखने वाली बात है कि महाभारत के युद्ध के कारण जन-धन की भारी तबाही हुई थी, इसलिये राष्ट्र के पुनर्निर्माण हेतु शांति के साथ उद्ध्योग, खेती,व्यापर की आवश्यकता थी जो वैश्यों दुवारा ही सम्भव था | महाराज अग्रसेन ने काशी जाकर भगवान शिव की कठोर तपस्या की जिससे खुश हो कर भगवान शिवजी ने उन्हें दर्शनदेकर महालक्ष्मीजी की पूजा और ध्यान करने का आदेश दिया | अग्रसेनजी ने महालक्ष्मी की पूजा- आराधना शुरू कर दी | माँ लक्ष्मी ने परोपकार हेतु की गई तपस्या से खुश होकर उन्हें दर्शन दिये और आदेश दिया कि वे अपना एक नया राज्य बनायें और क्षत्रिय परम्परा के स्थान पर वैश्य परम्परा अपना लें | माता लक्ष्मी ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि उनको और उनके अनुयायियों को कभी भी किसी चीज की कमी नहीं होगी , वे सभी सुख सुविधायुक्त जीवन व्यापन करगें। लक्ष्मी माता का आदेश मान कर अग्रसेन महाराजने क्षत्रिय कुल को त्याग वैश्य धर्म को अपना लिया, इसप्रकार महाराजा अग्रसेन प्रथम वैश्य सम्राट बने |

अग्रोहा शहर का जन्म

देवी महालक्ष्मी से आशीर्वाद प्राप्त करने के बादराजा अग्रसेन ने नए राज्य की स्थापना हेतु रानी माधवी के साथ भारत का भ्रमण किया, अपनी यात्रा के दौरान वे एक जगह रुके जहाँ उन्होंनेदेखा कि कुछ शेर और भेडीये के बच्चे साथ-साथ खेल रहे थे | राजा अग्रसेन ने रानी माधवी से कहा के ये बहुत ही शुभ दैवीय संकेत है है जो हमें इस पुण्य भूमी पर उन्हें राज्य की राजधानी स्थापित करने का संकेत दे रहा है | ॠषि मुनियों और ज्योतिषियों की सलाह पर नये राज्य का नाम अग्रेयगण रखा गया जिसे कालान्तर में अग्रोहा नाम से जाना गया। अग्रोहा हरियाणा में हिसार के पास हैं। आज भी यह स्थान अग्रवालसमाज के लिए तीर्थ स्थान के समान है। यहां भगवान अग्रसेन, माता माधवी और कुलदेवी माँ लक्ष्मी जी के भव्य और दर्शनीय मंदिर है |

समाजवाद के प्रणेता

सच्चाई तो यही है कि महाराजा अग्रसेन ने अपने विशाल परिवार को हमेशा एकता के सूत्र मे बांध कर एकजुट रक्खा | इसलिए सम्राट अग्रसेनजी ने अपने आपको एक महान एवं सफल मेनेजमेंट गुरु के रूप में स्थापित किय| महाराजा अग्रसेन ओर माता माधवी ने अपने सभी 18 पुत्रों को श्रेष्ठतम संस्कार प्रदान किये थे | महाराजा अग्रसेन को समाजवाद का प्रवर्तक ,अहिसां के पुजारी, सुयोग्य प्रशासकएवं आदर्श मेनेजमेंट गुरु के रूप में जाना जाता है | 8 करोड़ अग्रवालों के लिये उनके सिद्धांत हमेशा अनुकरणीय और प्रेरक बने रहेगें | अग्रसेनजी के 5141वें जन्म दिवस पर कोटि कोटि प्रणाम |

अग्रवालों के 18 गोत्र एवं उनका नामकरण

हममें से अधिकाक्षं लोगों की मान्यता है कि अग्रवालों के 18 ( या साढ़े सत्तराह ) गोत्रो के नाम उनके 18 पुत्रों के नाम से रक्खें गये है किन्तु वास्तविकता में गोत्रो के नाम 18 यज्ञ करवाने वाले ऋषियों के नाम से है जो यह दर्शाता है कि अग्रसेन महर्षी एवं ऋषि मुनियों का कितना आदर-सम्मान करते थे | भगवान अग्रसेन के 18 पुत्रों मे राजकुमार विभु सबसे बड़े थे। महर्षि गर्ग ने भगवान अग्रसेन को 18पुत्र के साथ 18 यज्ञ करने का संकल्प करवाया। माना जाता है कि इन 18 यज्ञों को 18 ऋषि-मुनियों ने सम्पन्न करवाया और इन्हीं ऋषि-मुनियों के नाम पर ही अग्रवंश के गोत्रों का नामकरण हुआ | प्रथम यज्ञ के पुरोहित स्वयं गर्ग ॠषि बने, उन्होंने राजकुमार विभु को दीक्षित कर उन्हें गर्ग गोत्र से मंत्रित किया। इसी प्रकार दूसरा यज्ञ गोभिल ॠषि ने करवाया और द्वितीय पुत्र को गोयल गोत्र दिया। तीसरा यज्ञ गौतम ॠषि ने गोइन गोत्र धारण करवाया, चौथे में वत्स ॠषि ने बंसल गोत्र, पाँचवे में कौशिक ॠषि ने कंसल गोत्र, छठे शांडिल्य ॠषि ने सिंघल गोत्र, सातवे में मंगल ॠषि ने मंगल गोत्र, आठवें में जैमिन ने जिंदल गोत्र, नवें में तांड्य ॠषि ने तिंगल गोत्र, दसवें में और्व ॠषि ने ऐरन गोत्र, ग्यारवें में धौम्य ॠषि ने धारण गोत्र, बारहवें में मुदगल ॠषि ने मन्दल गोत्र, तेरहवें में वसिष्ठ ॠषि ने बिंदल गोत्र, चौदहवें में मैत्रेय ॠषि ने मित्तल गोत्र, पंद्रहवें कश्यप ॠषि ने कुच्छल गोत्र दिया। सोलवें वें तैत्रिरैय ऋषि ने तायल गोत्र , सतरंवे यज्ञ में ऋषि धन्यास ने टेरन(भन्देल) गोत्र और 18वें यज्ञ ( जो पशु बली के रोके जाने से सम्पूर्ण नहीं हो पाया ) में ऋषि नगेन्द्र ने नांगल गोत्र का नाम दिया इस प्रकार अग्रवालों के 18 गोत्र हैं यथा गर्ग, तायल, कुच्चल, गोयन, भंदेल, मंगल, मित्तल, बंसल, बिंदल, कंसल, नागल, सिंघल, गोयल, तिंगल, जिन्दल, धारण, मधुकुल, एरेन | ॠषियों द्वारा प्रदत्त अठारह गोत्रों को भगवान अग्रसेन के 18 पुत्रों के साथ भगवान द्वारा बसायी 18 बस्तियों के निवासियों ने भी धारण कर लिया एक बस्ती के साथ प्रेम भाव बनाये रखने के लिए एक सर्वसम्मत निर्णय हुआ कि अपने पुत्र और पुत्री का विवाह अपनी बस्ती में नहीं दूसरी बस्ती में करेंगे। आगे चलकर यह व्यवस्था गोत्रों में बदल गई जो आज भी में प्रचलित है।

पशुबलि बंद करवाने वाले प्रथम सम्राट

कुलदेवी माता लक्ष्मी की कृपा से भगवान अग्रसेन के 18 पुत्र हुये। राजकुमार विभु उनमें सबसे बड़े थे। महर्षि गर्ग ने भगवान अग्रसेन को 18 पुत्रके साथ 18 यज्ञ करने का संकल्प करवाया। उन दिनो यज्ञों में पशुबलि दी जाती थी। जिस समय 18 वें यज्ञ में जीवित पशुओं की बलि देने की तय्यारी की जा रही थी उस वक्त एक घोडा बलीके लिए लाया गया | महाराज अग्रसेन ने देखा कि घोडा यज्ञ की वेदी से दूर जाने और वहां से भागने की कोशिश कर रहा था | इस दृश्य कोदेख कर महाराज अग्रसेन का दिल दया से भर गया और वे आहत भी हुए | उन्होंने सोचा के ये कैसा यज्ञ है जिसमें हम मूक जानवरों की बलिचढ़ाते है ? महाराजा अग्रसेनजी ने पशु वध को बंद करने के लिये अपने मंत्रियों के साथ विचार विमर्श किया और अपने मंत्रीमंडल के विचारों के विपरीत जाकर उन्हें समझाया कि अहिंसा कभी भी कमजोरी नहीं होती है बल्कि अहिसा तो एक दुसरे के प्रति प्रेम और अपनापन जगाती है| महाराजा अग्रसेन ने तुरंत प्रभाव से मुनादि करवा दी की उनकेराज्य मे कभी भी कोई हिंसा ओर जानवरों की हत्या नहीं होगी | अग्रसेन जी अहिसां परमोधर्म का संदेश देने वाले प्रथम महाराजा बने, अहिसां का संदेश उन्होंने बुद्ध, महावीर के संदेश से 2500 साल पहिले दे दिया था |

शासन– व्यवस्था

भगवान अग्रसेन ने तंत्रीय शासनप्रणाली के स्थान पर एक नयी प्रजातांत्रिक राज्य व्यवस्था——–व्यवस्था को जन्म दिया

अग्रसेनजी ने वैदिक सनातन आर्य सस्कृंति की मूल मान्यताओं को लागू कर राज्य कीपुनर्गठन में कृषि-व्यापार, उद्योग, गौपालन के विकास के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा का बीड़ा उठाया।
महाराजा अग्रसेन जी पहले शासक थे जिन्होनें सहकारिता के आदर्श को सामाजिक जीवन में प्रतिस्थापित किया।

सच्चाई तो यही है कि महाराजा अग्रसेन ने अपने विशाल परिवार को हमेशा एकता के सूत्र मे बांध कर एकजुट रक्खा | इसलिए सम्राट अग्रसेनजी ने अपने आपको एक महान एवं सफल मेनेजमेंट गुरु के रूप में स्थापित किय| महाराजा अग्रसेन ओर माता माधवी ने अपने सभी 18 पुत्रों को श्रेष्ठतम संस्कार प्रदान किये थे | महाराजा अग्रसेन को समाजवाद का प्रवर्तक ,अहिसां के पुजारी, सुयोग्य प्रशासकएवं आदर्श मेनेजमेंट गुरु के रूप में जाना जाता है | 8 करोड़ से अधिक अग्रवालों के लिये अग्रसेनजी के सिद्धांत हमेशा अनुकरणीय और प्रेरक बने रहेगें | अग्रसेनजी के 5142वें ज न्म दिवस पर कोटि कोटि प्रणाम |

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