श्री राजराजेश्वरी पुरुहुता मणिवैदिक शक्तिपीठ मंदिर पुष्कर की महिमा एवं इतिहास

*ॐ विश्वे विश्वेश्वरि प्राहुः पुरुहुता च पुष्करे !*
*पुरुहुता पुष्कराक्षे आषाढौ च रतिस्तथा !!*

राकेश भट्ट
आदि अनादि काल पूर्व जब भगवान ब्रम्हा के पुत्र महाराज दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था उसमें भगवान शंकर के अलावा सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया । ऐसा होने पर महादेव की पत्नी सती मां अपने पिता को मनाने के लिए बगैर बुलाये ही यज्ञ में पहुंच गई जहां महाराज दक्ष ने बार बार शंकर जी के लिए कटु शब्द कहकर उन्हें अपमानित किया । अपने ही पिता द्वारा भरी सभा मे किये जा रहे अपमान को सती मां सहन नही कर पाई और उसी हवन की वेदी में जलकर स्वाहा हो गई । अपनी पत्नी की मृत्यु से दुःखी भगवान शंकर ने पहले तो तांडव मचाकर तीनो लोको में हाहाकार मचा दिया और उसके बाद सती की मृत देह को लेकर इधर उधर भटकने लगे । सती के वियोग में डूबे महादेव के चलते श्रष्टि का चक्र ही थम गया । जिससे चिंतित होकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से मृत सती की देह के टुकड़े किये । देह के वह टुकड़े 52 स्थानों पर जाकर गिरे । खास बात यह थी कि जहां जहां भी सती की देह का अंश गिरा वहां वहां शक्ति पुंज स्थापित हो गया । यही वजह है कि देश के साथ साथ पाकिस्तान में भी कुछ जगह पर शक्तिपीठ की स्थापना हुई जहां हजारो सालो से श्रद्धालु भक्तो के दुःख दूर होकर मनोकामनाएं पूरी हो रही है ।

जगत जननी माँ सती के देशभर में मौजूद इन्ही 52 शक्ति पीठो में से सत्ताईसवाँ स्थान पुष्कर तीर्थ में भी मौजूद है। पुष्कर के ब्रम्हा मंदिर से दो किलोमीटर की दूरी पर सुन्दर पहाड़ियों और रंग बिरंगे फूलो के खेतो के समीप ही स्थित यह मंदिर सम्पूर्ण मनोकामनाएं पूरी कर अष्ट सिद्धियां देने वाला है। ” देवी भागवत पुराण ” के अनुसार इसी स्थान पर माँ सती के हाथो के दोनों कलाई भाग विराजित है। जिनमे से एक भाग पिंडिरूप में और दुसरा भाग माँ के साक्षात स्वरूप में विराजमान है। वह स्वरूप स्वयं शिव पार्वती [ मणिवैदिक ] उत्पत्तिस्वरूपा है और दुसरा भाग कलाई का [ मणिवैदिक ] पिण्डिस्वरूपा है।

माँ सती का यह सत्ताईसवाँ शक्तिपीठ हजारो सालो तक गुप्त व अज्ञात रहा। प्राचीन काल में माँ भगवती इसी पुरुहुता पर्वत के शिखर पर विराजमान रही। लेकिन अपने एक वृद्ध भक्त की भक्ति से खुश होकर माँ ने पहाड़ी के शिखर से नीचे आकर तलहटी में विराजमान होना स्वीकार किया। तभी से लेकर आज दिन तक इस स्थान पर माँ की पूजा अर्चना और अनुष्ठान किये जा रहे है। यहाँ पर सालभर में आने वाली चारो नवरात्रि पर विशेष अनुष्ठान और हवन का आयोजन किया जाता है साथ ही प्रति माह की शुक्ल अष्टमी को भी यहाँ विश्व शांति के लिए यज्ञ का आयोजन होता है। जिसमे शामिल होने वाले श्रद्धालु भक्तो की सभी मनोकामनाएं जरूर पूरी होती है और उन्हें धन वैभव और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

*पुरुहूता पर्वत की चोटी पर है माता का असली गर्भगृह ••••*
सतयुग काल मे मां सती की कलाई के हिस्से पुरुहूता पहाड़ी की सबसे ऊंची चोटी पर ही स्थित एक गहरे स्थान पर गिरे थे । जहां हजारो सालो तक माता जी वही विराजमान रहे । केवल चुनिंदा भक्त ही इस दुर्गम पहाड़ी की चढ़ाई कर सकते हैं । रास्ता बेहद कठिन और पत्थर की चट्टानों वाला होने के कारण भक्तों ने जगह जगह झंडे और निशान भी लगा रखे है ताकि कोई गलत दिशा में ना जा सके । बेहद संकडे और पथरीले रास्ते से चढ़ाई करने के पश्चात जब सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचते है तो वहां लगे झंडे के पास एक त्रिभुजाकार खड्डा नजर आएगा । उसमे लगभग पांच फुट गहराई में उतरने के बाद जमीन पर पैर टिकते है । इसके बाद लगभग 10 फीट तक आड़े होकर बैठे बैठे जाना पडता है तब कही जाकर असली गर्भगृह तक पहुंचा जा सकता है । आज भी नवरात्रा में एवं अन्य विशेष दिनों में कुछ गिने चुने भक्त यहां पूजा अर्चना करने जाते रहते है ।

वर्तमान में मंदिर के व्यवस्थापक दिगंबर ओमेन्द्र पूरी जी , श्री अखाड़ा , महानिर्वाणी – कनखल हरिद्धार वाले है । जिनसे अथक परिश्रम और त्याग से दिन प्रतिदिन मंदिर का स्वरूप भव्यता ले रहा है और सतत विकास के पथ पर अग्रसर है । इन्ही के प्रयास और जनसहयोग से यहां हर माह की शुक्ल अष्टमी को विश्व शांति के लिए यज्ञ भी संपादित किया जाता है । जो भी भक्त मां सती के इस अति प्राचीन स्थान के जीर्णोद्धार में आर्थिक सहायता करके इस अनुष्ठान में अपना सहयोग करना चाहता है वह दिगंबर ओमेंद्र पूरी जी से संपर्क करके पुण्य का भागी बन सकता है । आप सभी को पॉवर ऑफ नेशन की और से दुर्गाष्टमी की ढेर सारी मंगल कामनाएं { जय माता दी } •••••

*राकेश भट्ट*
*प्रधान संपादक*
*पॉवर ऑफ नेशन*
*मो 9828171060*

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