देवों के देव महादेव की पूजा अर्चना का पर्व – महाशिवरात्रि

डा.जे.के.गर्ग
सोमवार 4 मार्च 2019 को समस्त भारत एवं विश्व के अन्य देशों में जहाँ जहाँ हिन्दू और शिव भक्त निवास करते हैं वहां महाशिवरात्रि का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जायगा | निसंदेह भोले शंकर जितने रहस्यमयी हैं उतनी ही उनकी वेशभूषा भी विचित्र और अनूठी है | भगवान शिवजी से जुड़े तथ्य भी अनोखे हैं | भगवान शंकर श्मशान में निवास करते हैं, गले में नाग धारण करते हैं, भांग व धतूरा ग्रहण करते हैं। महाशिवरात्रि का पावन पर्व प्रत्येक साधक को आह्वान करता है कि “ उठो, जागो और यदि अपनी और दूसरों की सुख-शांति चाहते हो तो अपरिग्रह, सादा जीवन, उच्च विचार,परोपकार को अपनाते हुये जीवन जीयो | केवल अपनी उन्नति में ही संतुष्ट न रहो वरन दूसरों की, समाज की तथा अपने राष्ट्र की उन्नति में ही अपनी उन्नति और सफलता मानो “ |

डा. जे.के.गर्ग
जनसाधारण के मन में सवाल उत्पन्न होता है कि क्यों फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है ? ऐसा माना जाता है कि सृष्टि की रचना इसी दिन हुई थी । मध्यरात्रि में भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था । ईशान सहिंता के अनुसार फाल्गुन चतुर्दशी की अर्द्धरात्रि में भगवान शंकर लिंग के रूप में अवतरित हुए । चतुर्दशी तिथि के महानिशीथ काल में महेश्वर के निराकार ब्रहम स्वरूप प्रतीक शिवलिंग का अविभार्व होने से भी यह तिथि महाशिवरात्रि के नाम से जानी जाती है |इसी दिन, भगवान विष्णु व ब्रह्मा के समक्ष सबसे पहले शिव का अत्यंत प्रकाशवान स्वरूप प्रकट हुआ था । कहा जाता है कि शिवरात्री के दिन भगवान शिव और आदि शक्ति का विवाह हुआ था। ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही समुद्र मंथन के दौरान कालकेतु विष निकला था।भगवान शिव ने संपूर्ण ब्राह्मांड की रक्षा के लिए स्वंय ही सारा विष पी लिया था। इससे उनका गला नीला पड़ गया और तभी से शिवजी को नीलकंठ के नाम से जाना जाता है। महाशिवरात्रि को विशेष रूप से शिवलिंग की पूजा अर्चना की जाती है | आईये जाने शिवलिंग क्या है ? शिवलिंग का अर्थ होता है शुभ प्रतीक का बीज | शिव की स्थापना लिंग रूप में की जाती है,वही बीज क्रमश: विकसित होता हुआ सारे जीवन को आवृत्त कर लेता है | सच्चाई तो यही है कि वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनंत ब्रह्माण्ड की अक्स ही लिंग है। इसीलिए इसका आदि और अन्त को जानने का सामर्थ्य साधारण जनों में नहीं है यहाँ तक कि देवताओं के लिए भी यह अज्ञात ही है । सौरमण्डल के ग्रहों के घूमने की कक्ष ही शिवजी के तन पर लिपटे सांप हैं। निसंदेह भोले नाथ जन साधारण के देवता हैं, इसीलिए वों वहां रहते हैं जहाँ छोटे बड़े, जवान बुजुर्ग आसानी से पहुंच सके | इसी मान्यता के कारण शिवलिंग को मन्दिरों में बाहर ही स्थापित किया जाता है जिससे बच्चे बूढे जवान जो भी जाए छूकर, गले मिल कर या फिर पैरों में पड़कर अपना दुखड़ा सुना कर हल्के हो सकते हैं। | इसी वजह से शिवजी अकेले ही वो देव हैं जो गर्भ गृह में भक्तों को दूर से ही दर्शन देते हैं | शिवजी को भोग लगाने और अर्पण करने के लिए कुछ भी नहीं हो तो भक्त उन्हें पत्ता, फूल, या अंजलि भर के भोले नाथ को खुश कर सकता और उनकी पूजा अर्चना कर सकता है |

बड़ा या महान बनने के लिए त्याग, तपस्या, धीरज, उदारता और सहनशक्ति की आवश्यकता होती है। विष को अपने भीतर ही सहेज कर आश्रितों के लिए अमृत देने वाले होने से एवं विरोधों, विषमताओं के मध्य संतुलन रखते हुए अपने विशालकाय परिवार को एक बना रखने की शक्ति रखने वाले शिव ही महादेव हैं।

अगर आज के युग के सन्दर्भ में बात करें तो निसंकोच यह कहा जा सकता है कि भोले शिवशंकर वास्तव में सर्वश्रेष्ट लाइफ मैनेजमेंट गुरु भी हैं क्योंकि भोलेनाथ सांसारिक होते हुए भी श्मशान में निवास करते हैं, इसके पीछे लाइफ मैनेजमेंट का महत्वपूर्ण रहस्य छिपा है। जहाँ संसार मोह-माया का प्रतीक है वहीं दुसरी तरफ श्मशान वैराग्य का। भगवान शिव कहते हैं कि आदमी को संसार में रहते हुए अपने कर्तव्य पूरे करने चाहिये वहीं मोह-माया से दूर भी रहना चाहिये। क्योंकि शरीर और संसार नश्वर है। एक न एक दिन ये सबकुछ नष्ट होने वाला है। इसलिए संसार में रहते हुए भी किसी से मोह नहीं रखते हुए अपने कर्तव्य पूरे करने के साथ साथ एक वैरागी की तरह जीना चाहिये। अपरिग्रही वो होता है जो आवश्यकता से अधिक मात्रा मे धनवस्तु का संग्रह नहीं करता है | परिग्रह एक प्रकार का पाप है,क्योंकि किसी वस्तु का परिग्रह करने का अर्थ हुआ कि दूसरों को उस वस्तु से वंचित करना | समाज में वो ही व्यक्ति वंदनीय होता हैं जो अपरिग्रही हो जिसका जीवन संसार में शांति स्थापित करने के लिए हो | भगवान शिव का केवल मृगछाल धारण करना अपरिग्रह का प्रतीक है | भगवान शंकर का वाहन नंदी यानि बैल ही क्यों है इसके पीछे भी लाईफ मेनेजमेंट का रहस्य छीपा हुवा है । बैल बहुत ही मेहनती जीव है। वह शक्तिशाली होने के बावजूद शांत एवं भोला होता है। वैसे ही भगवान शिव भी परमयोगी एवं शक्तिशाली होते हुए भी परम शांत एवं इतने भोले हैं कि उनका एक नाम भोलेनाथ भी जगत में प्रसिद्ध है। भगवान शंकर ने जिस तरह कामदेव को भस्म कर उस पर विजय प्राप्त की थी, उसी तरह उनका वाहन भी कामी नही होता। उसका काम पर पूरा नियंत्रण होता है। साथ ही नंदी पुरुषार्थ का भी प्रतीक माना गया है। कड़ी मेहनत करने के बाद भी बैल कभी थकता नहीं है। यानि जीवन में लगातार निष्काम भाव से अपने कर्म करते रहना चाहिए | निष्काम भाव से जैसे नंदी शिव को प्रिय है,उसी प्रकार हम भी भगवान शंकर की कृपा पा सकते हैं। लाइफ मैनेजमेंट के अनुसार, भगवान शिव को भांग-धतूरा चढ़ाने का अर्थ है अपनी बुराइयों को भगवान को समर्पित करना। यानी अगर आप किसी प्रकार का नशा करते हैं तो इसे भगवान को अर्पित करे दें और भविष्य में कभी भी नशीले पदार्थों का सेवन न करने का संकल्प लें। ऐसा करने से भगवान की कृपा आप पर बनी रहेगी और जीवन सुखमय होगा।

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