आज होगा साल का सबसे बड़ा दिन

-परछाई होगी शून्य, साया भी छोड़ देगा साथ
आज यानी 21 जून को साल का सबसे बड़ा दिन होगा। दिन में परछाई भी आपका साथ छोड़ेगी। दरअसल ऐसा सूर्य की कर्क रेखा में स्थिति होने के चलते होगा।
21 जून को साल का सबसे बड़ा दिन और रात सबसे छोटी होगी। साथ ही दोपहर को 30 मिनट का ऐसा भी समय आएगा जब मनुष्य को अपनी ही परछाई नहीं दिखेगी। 21 जून को दिन 13 घण्टे और 44 मिनट का होगा जबकि रात 10 घण्टे 16 मिनट की होगी।

माना जाता है कि 24 घण्टे के दिन में 12 घण्टे की रात होती है और 12 घण्टे का दिन रहता है लेकिन 21 जून को सूर्य के चक्कर लगा रही पृथ्वी के कारण होगा। 21 जून को पृथ्वी सूर्य के सबसे करीब होगी जिसके कारण सूर्य की किरणें सीधी पृथ्वी पर पड़ेंगी। इसके कारण पृथ्वी पर दिन का समय सर्वाधिक लम्बा रहेगा। इसके कारण रात छोटी और दिन लम्बा होगा। 21 जून को दिन लम्बा होने के साथ ही पृथ्वी पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ेंगी। इसके कारण 21 जून को गर्मी अधिक रहेगी।

दोनों ध्रुवों पर रहेगी विपरीत परिस्थिति
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सूर्य की किरणें उत्तरी गोलाद्र्ध में भारत समेत जितने भी देश बसे हैं। वहां सभी जगह दिन सबसे बड़ा और रात सबसे छोटी रहेगी। जबकि दक्षिणी गोलाद्र्ध के सभी देशों में दिन छोटा और रात लम्बी रहेगी।

सूर्य हो जाएंगे दक्षिणायन
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21 जून के बाद सूर्य दक्षिणायन की तरफ गति प्रारंभ कर देंगे। इसी दिन से दिन छोटे और रात बड़ी होती जाएंगी।

क्या होता है उत्तरायण और दक्षिणायण?
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हिंदु पंचांग के अनुसार एक वर्ष में दो अयन होते हैं, अर्थात् एक साल में दो बार सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है और यही परिवर्तन या अयन ‘उत्तरायण और दक्षिणायनÓ कहा जाता है। कालगणना के अनुसार जब सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि तक भ्रमण करता है, तब यह तक के समय को उत्तरायण कहते हैं। यह समय छह माह का होता है। तत्पश्चात जब सूर्य कर्क राशि से सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, और धनु राशि में विचरण करता है तब इस समय को दक्षिणायन कहते हैं. इस प्रकार यह दोनो अयन 6-6 माह के होते हैं।

शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है. इन दिनों में किए गए जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व होता है। इस अवसर पर किया गया दान सौ गुना फल प्रदान करता है. सौरमास का आरम्भ सूर्य की संक्रांति से होता है. सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति का समय सौरमास कहलाता है। सौर-वर्ष के दो भाग हैं- उत्तरायण छह माह का और दक्षिणायन भी छह मास का होता है।

मकर संक्रांति के दिन सूर्य होता है उत्तरायण
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मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होता है। उत्तरायण के समय दिन लंबे और रातें छोटी होती हैं। जब सूर्य उत्तरायण होता है तो तीर्थ यात्रा व उत्सवों का समय होता है. उत्तरायण के समय पौष-माघ मास चल रहा होता है। उत्तरायण को देवताओं का दिन कहा जाता है, इसीलिए इसी काल में नए कार्य, गृह प्रवेश, यज्ञ, व्रत – अनुष्ठान, विवाह, मुंडन जैसे कार्य करना शुभ माना जाता है।

दक्षिणायन यानी देवताओं की रात्रि
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दक्षिणायन का प्रारंभ 21/22 जून से होता है। 21 जून को जब सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन होता है। धार्मिक मान्यता अनुसार दक्षिणायन का काल देवताओं की रात्रि है। दक्षिणायन समय रातें लंबी हो जाती हैं और दिन छोटे होने लगते हैं. दक्षिणायन में सूर्य दक्षिण की ओर झुकाव के साथ गति करता है।
दक्षिणायन व्रतों एवं उपवास का समय होता है। दक्षिणायन में विवाह, मुंडन, उपनयन आदि विशेष शुभ कार्य निषेध माने जाते हैं परन्तु तामसिक प्रयोगों के लिए यह समय उपयुक्त माना जाता है। सूर्य का दक्षिणायन होना इच्छाओं, कामनाओं और भोग की वृद्धि को दर्शाता है। इस कारण इस समय किए गए धार्मिक कार्य जैसे व्रत, पूजा इत्यादि से रोग और शोक मिटते हैं।

उत्तरायण और दक्षिणायण का महत्व
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हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश का पर्व मकर संक्रांति है. साल भर की छह ऋतुओं ऋतुओं में से तीन ऋतुएं शिशिर, बसन्त और ग्रीष्म ऋतुएं उत्तरायण की होती है। पौराणिक प्रसंगों में भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु के लिए उत्तरायण की प्रतीक्षा की थी और इस दिन गंगा जी के स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरने की भी मान्यता है। इसलिए माघ स्नान का महत्व भी है।
उत्तरायण में जप, तप और सिद्धियों के साथ साथ विवाह, यज्ञोपवीत और गृहप्रवेश जैसे शुभ तथा मांगलिक कार्यों की शुरूआत की जाती है। प्राचीन मान्यताओं में उत्तरायण की पहचान यह है कि इस समय आसमान साफ अर्थात बादलों से रहित होता है। दूसरी ओर दक्षिणायन के दौरान वर्षा, शरद और हेमंत, यह तीन ऋतुएं होती हैं तथा दक्षिणायन में आकाश बादलों से घिरा रहता है।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
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